वाराणसी (अजय गुप्ता)। बनारस में ऑपरेशन से बच्चे पैदा करने के मामले में प्राइवेट हॉस्पिटल्स और मैटरनिटी होम्स सरकारी के तुलना में कहीं आगे हैं। नेशनल हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक प्राइवेट हॉस्पिटल्स में पैदा होने वाले बच्चों में से हर दूसरा बच्चा सीजेरियन ही पैदा हो रहा है। प्राइवेट में सीजेरियन डिलेवरी रेट 48 परसेंट है। जबकि सरकारी हॉस्पिटल के मामले में सीजेरियन डिलेवरी रेट महज 13 परसेंट है। प्राइवेट और सरकारी हॉस्पिटल के बीच इस गैप को लेकर मेडिकल एक्सपट्र्स के अपने-अपने तर्क हैं।

शहर-गांव में भी है फर्क  

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के रिपोर्ट के मुताबिक शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल में 46 फीसदी डिलिवरी सिजेरियन हो रही है। जबकि सरकारी अस्पताल में यह आंकड़ा 11 प्रतिशत है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों 7 फीसदी ही सिजेरियन डिलिवरी हो रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र के प्राइवेट हॉस्पिटल में यह ग्राफ 35 फीसदी है। अब ऐसे में सवाल उठना लाजमी हैं कि प्राइवेट और सरकारी हॉस्पिटल के बीच इतनी बड़ी खाई क्यों और कैसे है।

मां की खुशियों पर कमाई का टांका

विशेषज्ञों की माने तो ज्यादातर प्रेगनेंट वूमेन नार्मल डिलीवरी ही चाहती है, ताकि उसके या उसके होने वाले बच्चे दोनों की सेहत प्रभावित न हो। साथ ही उन्हें ऑफ्टर डिलेवरी पोस्ट सर्जरी की तमाम दुश्वारियां भी न झेलनी पड़े। बावजूद इसके प्राइवेट हॉस्पिटल ना तो रिस्क लेना चाहते हैं ना ही नॉर्मल डिलेवरी के लिए एक्स्ट्रा पेन। चूंकि सीजेरियन में कमाई भी अच्छी है इसलिए वह सर्जरी के लिए माहौल बनाने में भी पीछे नहीं रहते।  

सीजेरियन डिलेवरी से जुड़े फैक्ट्स  

- हेल्थ डिपार्टमेंट के क्वॉलिटी इंडीकेटर के अनुसार 5 से 15 प्रतिशत ही केसेज में ही सीजेरियन डिलीवरी की नौबत होती है।

- सरकारी अस्पतालों में क्वॉलिटी इंडीकेटर का ग्राफ नॉर्मल के करीब होता है लेकिन प्राइवेट में सर्जरी के मामले 50 प्रतिशत तक पहुंच जाते हैं।

- कुछ प्राइवेट प्रैक्टिशनर्स के यहां इंडीविजुअली ये आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंचता जाता है।

- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का मानना है कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के मैक्सिमम केसेज प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते हैं इसलिए यहां सीजेरियन का परसेंट बढ़ता है।  

- एक्सपर्ट्स कहते हैं पहले नवजात का वेट औसत 2.5 केजी होता था, वहीं अब लेडीज के रेस्ट करने से न्यू बॉर्न बेबी का वेट 3.5 केजी तक पहुंच रहा है। जिससे सीजेरियन की नौबत आती है।

- नये दौर की महिलाएं ज्यादा दर्द सहन नहीं करना चाहती ऐसे में वो खुद ही सर्जरी कराने को तैयार रहती है।

कब है जरूरी ऑपरेशन

- छोटे कद वाली महिलाओं में कूल्हे की हड्डी छोटी होने से बच्चे की नॉर्मल डिलेवरी में रिस्क होता है। ऐसी अधिकांश महिलाओं को सीजेरियन डिलीवरी करानी पड़ती है।

- ट्यूमर, हैवी ब्लीडिंग, बच्चे की धड़कन कम होना, बीपी बढऩा, बच्चे का आड़ा तिरछा होना, महिलाओं की उम्र ज्यादा होना, कई बार दवाओं से बच्चेदानी का मुंह खुला होने जैसी वजह से सीजेरियन की नौबत होती है।

ये आता है खर्च

- 01 रुपये में होती है नार्मल डिलेवरी सरकारी अस्पताल में

- 30 हजार का खर्च नॉर्मल डिलीवरी का प्राइवेट हॉस्पिटल में

- 60 हजार से एक लाख रुपये तक  सीजेरियन का खर्च प्राइवेट में

- 02 दिन तक एडमिट रहती है नॉर्मल डिलीवरी के दौरान

- 07 से 10 दिन तक एडमिट रहती है सीजेरियन डिलीवरी के दौरान

इनका रखें ध्यान

- प्रेग्नेंसी के दौरान बॉडी की मसल्स को एक्टिव रखना बेहद जरूरी।

- प्रेग्नेंसी में रेस्ट की जगह बिना लोड लिए जितना हो सके उतना वर्क करें।

- प्रेग्नेंसी में सुबह-शाम वॉकिंग जरूर करें और तनाव बिल्कुल न लें।

- पेट में पल रहे बेबी को ऑक्सीजन मिले, इसके लिए डीप ब्रिदिंग जरूरी है।

'प्राइवेट हॉस्पिटल में सीजेरियन डिलीवरी केस बढ़े है। इसके कई फैक्टर्स है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं न होने से ये प्राइवेट हॉस्पिटल में आती है। अब फीमेल्स न तो पेन बर्दाश्त कर पाती है और न ही उनकी बॉडी इसके लायक होती है। इसलिए सिजेरियन ही विकल्प बचता है।'

- डाॅ. मनीषा सिंह, एडी हेल्थ, अध्यक्ष आईएमए

'माने तो शहर में सिर्फ एक ही महिला अस्पताल है। अन्य जगहों पर ऑपरेशन की सुविधा न होने से प्राइवेट हॉस्पिटल में रेफर किए गए केस जाते है। पिछले दिनों हुई बैठक में डीएम ने सरकारी में भी 15 तक सिजेरियन का निर्देश दिया है। ताकि प्रसूता प्राइवेट हॉस्पिटल न जाए।'

- डाॅ. वीबी सिंह, सीएमओ

varanasi@inext.co.in

National News inextlive from India News Desk