- लखनऊ में बनने वाले चिकन के कपड़ों की विदेशों में भी है बड़ी डिमांड

- मगर कारीगरों को बिचौलियों के चलते नहीं मिलता जायज हक

- दिन पर दिन घटती जा रही कारीगरों की संख्या, दो जून की रोटी को तरस रहे हुनरमंद

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LUCKNOW: हुसैनाबाद में रहने वाली साबरा। उम्र म्भ् साल। चेहरे पर झुर्रियां और आंखों में सूनापन। जिंदगी पर अब भरोसा ही नहीं रहा। पिछले फ्0 सालों से चिकन की कारीगरी कर रही हैं। लेकिन जिंदगी वहीं टिकी है। चार साल पहले शौहर मो.उमर को ब्लड कैंसर हो गया। इलाज कराया। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। वह दुनिया छोड़कर चल बसे। अभी तक कर्ज में डूबी हैं। केवल साबरा ही नहीं बल्कि उन जैसी कई चिकन कारीगर समय की मार का शिकार हैं। कमरतोड़ महंगाई के बावजूद रोज फ्0 से भ्0 रुपए रोज की कमाई ही हो रही है। हद तो यह है कि चुनाव के मौके पर ही इन कारीगरों की फिक्र किसी पॉलिटिकल पार्टी को नहीं है।

चिराग की रोशनी में करती हैं कढ़ाई

मोहनीपुरवा में रहने वाली साबरा ने बताया कि छह महीने से लाइट नहीं है। अंधेरे में ही कढ़ाई करनी पड़ती है। आंखों से दिखना भी बंद हो गया है। पिछले छह महीने से पेंशन भी नहीं आई है। कढ़ाई का जो पैसा पहले मिलता था वही आज भी मिल रहा है। पजामा सिलने का ढाई रुपए, कुर्ते का क्0 रुपए टॉप का पांच रुपए ही मिलता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो बमुश्किल रोज करीब 70 रुपए की ही कमाई हो पाती है।

लड़कियां नहीं कर पा रही पढ़ाई

पिछले ख्0 साल से चिकन कारीगरी करने वालीं चंदा ने बताया कि हर इलेक्शन में नेता आते हैं। वोट मांगते हैं लेकिन कोई काम नहीं करता। पति मजदूरी करते हैं। छह लड़कियां और एक लड़का है। इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि लड़कियों को पढ़ा सकें। मन तो बहुत करता कि लड़कियों को पढ़ा सकें लेकिन क्या करें मजबूरी है। रोज करीब भ्0 रुपए ही कमा पाती हूं। क्क् साल का बेटा है सुमित। बस, उसे ही पढ़ा रहीं हूं। हुसैनाबाद में ब्वायज किंग में क्लास भ् का स्टूडेंट है। लेकिन इस समय तो रातों की नींद ही हराम है। इकलौते बेटे की आंत में सूजन आ गई है। डाक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा है। लेकिन पैसे ही नहीं हैं। आंख इतनी कमजोर हो गई हैं कि दूर का दिखना ही बंद हो गया है। कुछ महीने पहले उन्हें भी हार्ट अटैक पड़ गया था। उस समय तो वह कर्ज में डूब गई थीं। परिवार जब आर्थिक तंगी से जूझ रहा थो तो किरन ने भी परिवार की कमान संभाली और चिकन कारीगरी में आ गई। दो बच्चें हैं उनके। पैसा भले ही न हो लेकिन हौसला बुलंद है और किसी तरह अपने दोनो बच्चों को पढ़ा लिखा रही हैं।

मजदूरी तक की

वजीरबाग में रहने वाल बेबी की कहानी भी कुछ कम दर्द बयां नहीं करती है। तीन लड़कियों और एक बच्चे की मां बेबी को जब बीच मे चिकन का काम मिलना बंद हो गया तो ईट-गुम्मे तक ढेाए। क्0 घरों में काम भी किया। वजह यह थी कि उनके पति मजदूरी करते हुए छत से गिर गए थे और पैर टूट गया था। फिलहाल वह घर पर ही चिकन की कढ़ाई कर रही हैं।

शोरूम में पहुंचते ही बढ़ते हैं दाम

चिकन के थोक कारोबारी वसीम ने बताया कि अमीनाबाद, हजरतगंज, चौक के शोरूम में पहुंचते ही चिकन के सूट, साडि़यों के दाम आसमान छूने लगते हैं। उदाहरण के लिए जो सूट हम लोग 700 रुपए में तैयार कराते हैं। वह शोरूम पहुंचते ही ख्भ्00 रुपए का हो जाता है। पुराने लखनऊ की तंग गलियों में कोई कस्टमर आना नहीं चाहता है और शोरूम की चकाचौंध में कस्टमर फंस जाता है।

डेढ़ से दो करोड़ करोड़ का कारोबार

चिकन कारीगरों की हालत भले ही दयनीय है। खाने के लाले हों। लेकिन चिकन कारोबारियों की बल्ले-बल्ले है। एक अनुमान के मुताबिक लखनऊ में चिकन का रोज का कारोबार करीब डेढ़ से दो करोड़ रुपए का है। एक चिकन कारोबारी के अनुसार देश का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां लखनऊ का चिकन न भेजा जा रहा हो। विदेशों में इस समय दुबई, कराची और मलेशिया में बेहद डिमांड है। यही सूट जो लखनऊ में क्000 रुपए का मिल जाएगा वह विदेश पहुंचते ही पांच गुना बढ़ जाता है।

प्रत्याशियों से बातचीत

चिकन कारीगरों की समस्याओं को सुना जाएगा। उनके लिए जो भी हो सकता है, उसे दूर किया जाएगा। यह एक गंभीर मामला है।

अभिषेक मिश्रा

सपा प्रत्याशी

बसपा सरकार बनने पर चिकन कारीगरों के लिए एक अलग पॉलिसी बनाई जाएगी। ऐसा प्लान तैयार किया जाएगा कि ज्यादा से ज्यादा चिकन प्रोडक्ट सरकार खरीदे और कारीगरों को अच्छे दाम दिए जाएं।

नकुल दुबे

प्रत्याशी बसपा

धोबी समाज से बातचीत

चिकन की कढ़ाई के बाद उसे धोबी घाट पर धोने के लिए लाया जाता है। बीएसपी सरकार ने घाट बनाए लेकिन शहर से क्ख् किलोमीटर दूर। ऐसे में धोबी समाज के लोग भी परेशान हैं।

जावेद मकसूद अहमद

अध्यक्ष, धोबी समाज

हाथ की खाल गल गई

शमशाद ने बताया कि धुलाई के लिए हम लोगों को केवल क्0 से ख्0 रुपए मिलते हैं। चिकन के कपड़े धोने के लिए कोई प्लांट भी नहीं है। गोमती में ही धोना पड़ता है। कास्टिक, सोडा और तेजाब से कपड़े की धुलाई होती है। ऐसे में हाथ की त्वचा ही गल गई है। खाना तक नहीं खा पाते हैं।

इंटरनेशनल मार्केट में कीमत हजारों में

लोगों को अनोखे और शालीन फैशन की सौगात देने वाले चिकन के कारीगरों की जिंदगी को तो आपने जान लिया। मगर आपको यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि लखनऊ की तंग गलियों से निकलकर जब यही चिकन के कपड़े मुंबई पहुंचते हैं तो उनकी कीमत सैकड़े से तब्दील होकर हजार रुपये में पहुंच जाती है। फिर ज्यों ही वे इंटरनेशनल बायर्स के हाथों में पहुंचते हैं तो उनकी कीमत दसियों हजार की हो जाती है। ऑनलाइन स्टोर्स पर जाकर देखें तो इन कपड़ों की कीमत ख्भ् डॉलर से शुरू होकर ख्भ्0 डॉलर तक हो जाती है। इसके साथ ही इम्ब्रॉयडरी का काम बढ़ने के साथ ही उसमें इजाफा भी होता जाता है। मगर शर्म की बात यह है कि चिकन के कारीगर फिर भी दो से ढाई हजार रुपये पर मंथ तक की ही कमाई कर पाते हैं।

क्यों नहीं हुआ विकास?

चिकन के कारीगरों की दयनीय आर्थिक दशा के बारे में बात करने पर लखनऊ के चिकन क्लॉथ्स के सप्लायर फैज फारुकी कई अहम बातें बतातें हैं। वे कहते हैं कि यह व्यवसाय कोई संगठित व्यवसाय नहीं है। इस कारण चिकन के कारीगरों का दर्द सियासतदारों तक नहीं पहुंच पाता है। वहीं, बिचौलिए कारीगरों के घरों तक माल पहुंचाने के साथ ही उन्हें मुख्य बाजार में नहीं आने देते। इस कारण नेशनल और इंटरनेशनल मार्केट में तो भले ही चिकन की डिमांड बनी रहती है मगर उनके कारीगरों की हालत खस्ता ही रहती है। मगर अपनी बातचीत में वे यह कहना नहीं भूलते कि हाल के दिनों में चिकन के कपड़ों की जबर्दस्त डिमांड बनी हुई है। लखनऊ में कारीगरों की घटती संख्या के चलते बायर्स को भरपूर सप्लाई नहीं हो पा रही है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य सरकार को चाहिए कि चिकन उद्योग से जुडे़ लोगों को राहत पैकेज देकर इस अमूल्य कारीगरी को बढ़ावा दिया जाए।

चिकन उद्योग हमेशा सरकारी उदासीनता का शिकार रहा है। बीजेपी की केंद्र में सरकार बनने पर इस उद्योग की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया जायेगा और इसके निर्यात के लिए विशेष प्रबंध किए जायेंगे।

अमित पुरी

वरिष्ठ नेता बीजेपी