आगरा। बच्चे मोबाइल में बिजी रहते हैं। मोबाइल में गेम खेलते या वीडियो देखते आपको लगता है कि आपका बच्चा खुश है। लेकिन, ये एक्टिविटीज बच्चों को एक खतरे की ओर ढकेल रही है, इससे आप अंजान है। जिला अस्पताल में बने मन कक्ष में आए दिन बच्चों के मोबाइल एडिक्शन से जुड़े केस पहुंच रहे हैं।

बच्चों संग पेरेंट्स की काउंसलिंग

जिला अस्पताल में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत शुरू किए गए मन कक्ष में बच्चों से जुड़े केस बड़ी संख्या में आ रहे हैं। इनमें पेरेंट्स का कहना है कि उनका बच्चा मोबाइल का आदी बन चुका है। मोबाइल ले लेने पर बच्चा खाना-पीना, बात करना बंद कर देता है। मन कक्ष में बच्चों और पेरेंट्स की काउंसलिंग की जा रही है। बिहेवियर थेरेपी का प्रयोग किया जा रहा है। इसमें करीब आठ से 10 सेक्शन के बीच पेरेंट्स और बच्चों की काउंसलिंग की जाती है।

बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर

मन कक्ष के एक्जीक्यूटिव नोडल अधिकारी डॉ। एसपी गुप्ता ने बताया कि मोबाइल बच्चों के कोमल मन में घर कर जाता है। कई प्रकार के गेम और वीडियो बच्चों पर प्रतिकूल असर डालते है। जिससे बच्चों का ध्यान भटकता है और उनकी पढ़ाई में निगेटिव असर डालता है। बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो रहे है। बच्चों में एकाग्रता, चिड़चिड़ापन, जिद्दीपन और उनकी पढ़ाई में भी खासा असर पड़ रहा है। बच्चों को मोबाइल की काल्पनिक दुनिया से निकाल कर असल दुनिया का ज्ञान देना बेहद जरूरी है।

बच्चों को समय नहीं देते पेरेंट्स

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट ममता यादव ने बताया कि बच्चे अकेलेपन को दूर करने के लिए मोबाइल का सहारा लेते हैं। उनके साथ बात करने, खेलने, बाहर घूमने जाने के लिए कोई साथ नहीं है। ऑफिस के बाद घर आकर थके हारे पेरेंट्स भी बच्चों के हाथ में मोबाइल देकर खुद को फ्री कर लेते है। ऐसे में मोबाइल के प्रति बच्चों की डिपेंडेसी तेजी से बढ़ती जा रही है। जब तक मां बाप को ध्यान आता है कि बच्चे के बिहेवियर में कुछ चेंजेस आ रहे हैं, तब तक बच्चा मनोविकृति में आ चुका होता है।

मनोवैज्ञानिक बीमारियों में जोड़ा

स्मार्ट फोन ने लोगों की जिंदगी में इतनी तेजी से घर बनाया है कि आज हर दूसरा व्यक्ति इसकी गिरफ्त में है। स्मार्ट फोन और इंटरनेट के अधिक प्रयोग करने पर मोबाइल एडिक्शन की बीमारियां तेजी से लोगों में देखने को मिल रही है। जिसमें व्यक्तियों में कई तरह के शारीरिक और मानसिक लक्षण देखने को मिल रहे है। तेजी से बढ़ रही इस बीमारी को अब मनोवैज्ञानिक बीमारियों में ऐड कर लिया गया है। साथ ही इसको काउंसलिंग कर डाइग्नोस किया जा रहा है।

क्या कहती है रिसर्च

-एक रिपोर्ट के अनुसार जो छोटे बच्चे मोबाइल से खेलते हैं, वो देर से बोलना शुरू करते है।

-एम्स की स्टडी के अनुसार लंबे समय तक मोबाइल का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर का खतरा पैदा करता है।

-दक्षिण कोरियाई वैज्ञानिकों के अनुसार मोबाइल का ज्यादा प्रयोग बच्चों में ड्राई आइज की समस्या को पैदा करता है।