-काउंसिलिंग के फेर में लग रहा थाना-कचहरी का चक्कर

-महिला थाना में पहुंच रही पैरेंट्स के बीच विवाद की शिकायतें

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्ररु

शहरों में पति-पत्नी के बीच बढ़ती खटास का खामियाजा मासूम बच्चों को झेलना पड़ रहा है। कोर्ट तक मामला पहुंचते-पहुंचते कई बच्चे बड़े हो जाते हैं। उनके मां-बाप की लड़ाई में बचपन गुजर जाता है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लड़ाई में बच्चों को नुकसान उठाना पड़ता है। वह इसकी भारी कीमत चुकाते हैं। इस दौरान बच्चे अपने माता-पिता का प्यार और दुलार पाने से वंचित रह जाते है। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने महिला थाना पर आई शिकायतों की पड़ताल की। इस दौरान पता लगा कि मामला सामने आने पर थाने से पंचायत शुरू होती है। सुलह-समझौते से बात न बनने पर केस कोर्ट की दहलीज पर पहुंचता है। एक साल के भीतर ज्यादातर मां-बाप के बीच विवाद के मामले सामने आए। महिला थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अर्चना सिंह ने बताया कि मोबाइल फोन पर बात को लेकर शुरू हुए विवाद में बच्चों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

शक पर टूट रहे रिश्ते

पूर्व में महिला थाना पर दहेज की मांग को उत्पीड़न की शिकायतें आती थी। लेकिन पिछले दो साल से यहां के हालात बदल गए हैं। हाल में जितनी शिकायतें आई हैं उनमें अधिकांश दंपति के बीच शक को लेकर शुरू हुई हैं। एप्लीकेशन आने पर पति का आरोप होता है उसकी बीवी किसी अन्य से मोबाइल पर बात करती है। पत्नी का आरोप होता है कि उसके पति का प्रेम संबंध किसी अन्य से चल रहा है। एक दूसरे पर किसी न किसी बात को लेकर दोष मढ़ने वाले पति-पत्‍‌नी के बीच विवाद बढ़ने पर फैमिली मेंबर्स भी शामिल हो जाते हैं। ऐसे में बात घर से निकलकर थाने तक पहुंच जाती है। इसलिए कोर्ट ने ऐसे मामलों में काउंसिलिंग के जरिए विवाद सुलझाने को कहा है।

तीन बार होती काउंसिलिंग

महिला थाना प्रभारी ने बताया कि पति-पत्‍‌नी के बीच होने वाले विवादों की शिकायत पर उनकी काउसिलिंग कराई जाती है। महिला थाना पर मौजूद टीम दोनों को समझाती है। साथ ही उनके फैमिली मेंबर्स को समझाबुझाकर राजी किया जाता है। थाना पर तीन बार काउंसिलिंग कराई जाती है। यहां बात न बनने पर उनको कचहरी के मीडिएशन सेंटर में भेजते हैं।

2019 में महिला थाना में आई शिकायतें

कुल शिकायतों की तादाद- 2000

न्यायालय में भेजी गई शिकायतें- 200

पीडि़त और आरोपितों के बीच समझौते- 1300

महिला थाना पर दर्ज हुई एफआईआर- 94

बिना बच्चों के परिजनों के बीच एफआईआर- 18

2020 में सामने आए एप्लीकेशन

महिला थाना में पहुंची शिकायतें- 58

कुल मामलों में दर्ज हुई एफआईआर- 08

बिना बच्चों वाले दंपति के बीच मुकदमा- 03

बच्चों को क्या होती है प्रॉब्लम, क्या पड़ता है असर

-शादी के बाद इस तरह के मामलों में बच्चों का फ्यूचर बर्बाद हो रहा है। अक्सर वह अपने मां-बाप संग महिला थाना का चक्कर लगाते हैं।

-बच्चों की परवरिश को लेकर कोई इंतजाम नहीं हो पाता। मां के मायके या अन्य किसी जगह पर रहने पर पिता अकेले देखभाल नहीं कर पाते।

-पिता के अपने कामकाज में बिजी होने, किसी अन्य से संबंध की दशा में भी बच्चों की प्रॉपर केयरिंग नहीं हो पाती।

-स्कूल से लेकर खेलने जाने तक बच्चों का मजाक बनता है। उनको अपराध बोध महसूस करना पड़ता है।

-रिश्तेदारों के भरोसे पल रहे बच्चों को अक्सर यातना झेलनी पड़ रही है। मां-बाप का प्यार दुलार उनको नहीं मिल पाता।

-मां-बाप की लड़ाई में बच्चों को बोझ समझकर रिश्तेदार पालन-पोषण करते हैं। इसलिए वह खुद को पीडि़त मानते हैं।

-इस तरह के बच्चों में डिप्रेशन ज्यादा पाया जाता है। उनके मन में डर समा जाता है। वह मानसिक रूप से ज्यादा परेशान रहते हैं।

-ऐसे बच्चों में गुस्सा बहुत होता है। वह कभी किसी अन्य पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। वह खुद को एक प्रॉब्लम समझते हैं।

वर्जन

महिला थाना पर आने वाले मामलों को काउंसिलिंग के जरिए सुलझाने की कोशिश की जाती है। ज्यादातर मामलों में मां-बाप के बीच विवाद सामने आए हैं। तीन-चार राउंड की काउसिलिंग के बाद भी बात न बनने पर केसेज को मीडिएशन के लिए भेज दिया जाता है। हमारी कोशिश होती है कि थाना स्तर से विवादों केा निपटा लिया जाए।

अर्चना सिंह, एसएचओ, महिला थाना