Choked Paisa Bolta Hai Movie Review: एक औरत है, सिंगल कमाई करने वाली। बैंक में काम करती है। उसकी जिन्दगी में किस तरह तूफ़ान आता है और वह किस तरह इससे डील करती है। अनुराग की नयी फिल्म आम आदमी के जीवन में पैदा होने वाले उसी थ्रिल पर आधारित है। चोक्ड शब्द को मेटाफर के रूप में इस्तेमाल किया है। यह अनुराग कश्यप की कम बैक फिल्म मानी जा सकती है। लंबे समय के बाद उन्होंने कुछ जबरदस्त थ्रिलर और वह भी सहजता से पेश किया है, जो कि अमूमन उनकी फिल्मों में होता नहीं है। पढ़ें पूरा रिव्यू।

फिल्म: चोक्ड- पैसा बोलता है

कलाकार: सयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष

निर्देशक: अनुराग कश्यप

ओटीटी चैनल: नेटफ्लिक्स

रेटिंग: 3.5 STAR

क्या है कहानी

मुंबई की कहानी है, एकदम लोअर मिडिल क्लास की। एक कॉलोनी है। सरिता ( सयामी खेर ) अपने पति सुशांत (रोशन) और अपने बच्चे के साथ रहती है। कभी सुशांत और सरिता गाना गाते थे और संगीत बनाते हैं। लेकिन अब उनकी जिंदगी बदल चुकी है। सुशांत लाइफ को लेकर फोकस्ड नहीं है। सरिता बैंक में है। उनके किचन का सिंक खराब है, हर वक़्त जाम हो जाता है. सरिता के कई बार बोलने के बावजूद उसके निठ्ठले पति को उसको ठीक कराना नहीं होता है। ऐसे में एक रात अचानक सिंक से पैसों की गड्डी निकलती है। मोहल्ले में ताई (अमृता सुभाष) की बेटी की शादी है, सरिता अब खुश है, क्योंकि पैसा बोलता है। उसके हाथ में पैसा है। लेकिन अचानक नोट बंदी होती है और सबकुछ बदल जाता है। ताई की बेटी की शादी अटक जाती है। एक आम आदमी की जिन्दगी से लेकर कालाबाजारी तक को नोट बंदी ने किस तरह प्रभावित किया। अनुराग ने इसे बखूबी दिखाया है। फिल्म का एक जबरदस्त सीक्रेट है, जो आपको फिल्म देखने पर ही पता चलेगा। यह सच है कि अचानक नोट बंदी के बाद आम आदमी की जिंदगी चोक्ड सी हो गई थी। देखें तो नोट बंदी पर बनी यह भारत की पहली फिल्म है, इसमें अनुराग ने इनडायरेक्टली सरकार को खूब खरी खोटी सुनाई है। लेकिन दिलचस्प बात है कि सहजता के साथ।

क्या है अच्छा

अव्वल तो कांसेप्ट ही एकदम तगड़ा है और ऐसी उपज की उम्मीद हम अनुराग जैसे निर्देशक से ही कर सकते हैं. अनुराग ने पहली बार एकदम सहजता से, बिना बहुत ताम झाम किए कांसेप्ट को दिखाया है। कलाकारों का चयन, कहानी के ट्रीटमेंट में एकदम रियलिस्टिक अप्रोच दिखाता है। बैंक में हमदर्दी नहीं पैसा मिलता है, हाथ जाकर उनको जोड़िये, जिन्होंने हाथ जोड़ कर वोट माँगा था, जैसे कई बेहतरीन संवाद फिल्म की जान हैं।

क्या है बुरा

मुद्दतों बाद ऐसा लगा कि इस विषय पर फिल्म की बजाय वेब सीरीज बनती तो ज्‍यादा मजा आता। इस कहानी के साथ खेलने के लिए स्कोप बहुत थे।

अदाकारी

सयामी खेर, राकेश ओम प्रकाश मेहरा की खोज हैं, लेकिन संवरी इस फिल्म से ही सामने आई हैं। अनुराग ने उन्हें इतने बेहतरीन तरीके से किरदार में ढाला है। बहुत ही बढ़िया काम किया है। एकदम नेचुरल. उन्हें ऐसी फिल्में और करनी चाहिए. बेवजह बॉलीवुड की चलताऊ फिल्मों में न फंसे तो अच्छा। रोशन मैथ्यू ने भी सहजता से किरदार निभाया है। अमृता सुभाष के किरदार को आप इग्नोर नहीं कर पाएंगे।

वर्डिक्ट

लंबे समय बाद नेट फ्लिक्स पर कुछ बेहतरीन हिंदी कंटेंट देखने को मिला है। अनुराग कश्यप के फैन्स के लिए ये लॉक डाउन गिफ्ट की तरह है।

Review by: अनु वर्मा

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