दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के भारी बस्ता अभियान के तहत आयोजित पैनल डिस्कशन में निकला निष्कर्ष

पैरेंट्स के साथ स्कूल प्रबंधन ने माना बच्चों पर बढ़ता बोझ उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं

आज डिजिटल युग है, तकनीकि ने दुनिया के तमाम काम आसान किए हैं। इसका इस्तेमाल करके बच्चों के स्कूल बैग का बोझ भी कम किया जा सकता है। यह निष्कर्ष निकला दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से आयोजित पैनल डिस्कशन में। स्कूली बच्चों के बैग के बढ़ते बोझ को लेकर पिछले कई दिनों से चलाए जा रहे अभियान के अंतिम पड़ाव में मंगलवार को कार्यालय में पैनल डिस्कशन का आयोजन हुआ। इसमें बड़ी संख्या में पैरेंट्स के साथ स्कूल स्टूडेंट्स, टीचर्स और प्रबंधन के लोग और डॉक्टर्स भी शामिल हुए। सबने अपने विचार खुलकर रहे। परिचर्चा का निष्कर्ष रहा कि पढ़ाई में मदद करने वाले ऐप, ई बुक्स आदि की मदद से बस्ते का बोझ कम किया जा सकता है।

बच्चों में बढ़ रही बीमारी

बच्चों पर बढ़ते बस्ते के बोझ से स्कूल प्रबंधन के खिलाफ पैरेंट्स में काफी नाराजगी दिखी। पैरेंट्स कहते हैं उनका लाडले को स्पाइनल डिजीज और न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स से जूझना पड़ रहा है। इसकी शिकायत स्कूलों से की जाती है तो बच्चों को कहीं और ले जाने की बात करते हैं। यह बात सामने आयी कि जितना बड़ा स्कूल का नाम उसके बच्चों के बस्ते का बोझ उतना ही ज्यादा है। कई बार बेवजह किताबों और कापियों की संख्या बढ़ायी जाती है।

डिजिटलीकरण पर जोर

पैरेंट्स ने कहा कि सेलेबस में हर सब्जेक्ट के साथ साइट बुक एड कर दिया गया है। इसी वजह से बस्ते का बोझ ज्यादा बढ़ गया है। जब पूरा देश डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहा है तो एजुकेशन अछूता क्यों है? बुक्स को ऐप पर लाना चाहिए और क्लास रूम में भी ऑडियो विजुअल पर फोकस ज्यादा होना चाहिए। अपना पक्ष रखते हुए स्कूलों ने कहा कि एनसीआरटी बुक की हमेशा शार्टेज रहती है। ऐसी स्थिति में साइट बुक मस्ट हो जाती है। वैसे भी भारत में भी एजुकेशन डिजिटल मोड पर आ रहा है।

स्कूलों में रैक की वकालत

पैनल डिस्कशन में चेन्नई के स्कूलों का उदाहरण देते हुए पैरेंट्स ने बस्ते का बोझ करने के लिए स्कूलों में रैक की व्यवस्था करने का सुझाव दिया। कहा कि जो बुक डेली यूज में है उन्हें स्कूल में ही रखा जा सकता है। इसका स्कूल ने भी समर्थन किया। शहर के एक-दो स्कूलों में यह व्यवस्था शुरू भी हो चुकी है। इसके अलावा भी पैरेंट्स ने कई सुझाव दिये।

स्कूल का वर्जन

भारी बस्ता वैसे तो सिर्फ दिमागी लोचा है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। फिर भी कई स्कूल सिर्फ अपने को बड़ा दिखाने में जरूरत से ज्यादा किताबें चलाते हैं। हालांकि इस मामले पर पिछले आठ साल में काम कर रहा हूं।

-अनंत चतुर्वेदी, सेंट्रल एकेडमी स्कूल

बच्चों को अच्छी शिक्षा देना हमारी जिम्मेदारी है। साथ ही एजुकेशन लेवल बढ़ाने के लिए स्कूल द्वारा कोशिश की जा रही है। हालांकि स्कूल हर स्तर से बोझ कम करने प्रयास कर रहा है।

-आशुतोष पाठक, वात्सल्य एकेडमी स्कूल

लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति गलत है। वर्तमान दौर में यह बहुत कारगर नहीं है। बुक को एप पर डाउनलोड करने की जरूरत है। वाजु समेत कई एप पढ़ाई में सपोर्ट कर रहे हैं।

-कृतिशे चतुर्वेदी, सेंट्रल एकेडमी स्कूल

पब्लिक स्कूलों में बेसिक जानकारी नहीं दी जा रही है। सिर्फ बस्ते का बोझ बढ़ाया जाता है। साइड बुक तो एकदम नहीं होना चाहिए। मार्केट में एनसीआरटी बुक उपलब्ध है। इसी बुक से पढ़ाई जरूरी है।

-विदिशा सिंह, सरस्वती कन्या इंटर कॉलेज

बैग का बोझ कम करने की बात है तो आज के युग में हमें टेक्नोलॉजी पर फोकस करना चाहिए। इसी से बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करनी चाहिए, तभी बच्चों के बोझ को कम किया जा सकेगा।

-राजकुमार उपाध्याय, काशी पब्लिक स्कूल

पैरेंट्स वर्जन

स्कूलों में नर्सरी सेक्शन के बच्चों के लिए बुक्स लाने की व्यवस्था खत्म करके स्कूल में ही सारी पढ़ाई की व्यवस्था होनी चाहिए।

-शशांक साहू

स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है। इवेंट पर ज्यादा फोकस रहता है। इससे बच्चे के साथ पैरेंट्स भी परेशान रहते हैं। स्कूलों में सिर्फ पढ़ाई होनी चाहिए।

-रोशनी हिरानी

साइड बुक्स पर रोक लगनी चाहिए। एनसीईआरटी बुक से भी अच्छी पढ़ाई हो सकती है, लेकिन स्कूल सिर्फ मनमानी के कारण साइड बुक को जरूरी बताते हैं।

-शबाना आलम

स्कूल में सभी विषयों के कॉपियों और किताबों की जरूरत होती है, ऐसे में स्कूलों में बच्चों के लिए लॉकर की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे बैग का बोझ कम हो सके।

-सुनीता भार्गव

अपने बच्चों को हमेशा घर के पास वाले स्कूलों में पढ़ाना चाहिए। दूसरों को देखकर हम अपने बच्चों को घर से 20 किमी दूर स्कूल भेज देते हैं, जो गलत है।

-इंद्रा जायसवाल

बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बोझ जरूरी है। बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए। पढ़ाई में भी मोबाइल और लैपटॉप हेल्प कर सकते हैं।

-अनुमेहा जायसवाल

स्कूल बैग ज्यादा वजनी होने के चलते बड़ी संख्या में बच्चों में स्पाइनल कर्व की प्रॉब्लम सामने आ रही है। वही शोल्डर में तमाम परेशानियों से जूझते केस भी सामने आते रहते हैं।

-डा। डीडी दूबे, आर्थो स्पेशलिस्ट