पुरातत्व विभाग ने शुरू की सूची में शामिल कराने की कवायद

800 पेज का डोजियर दिल्ली भेजा

VARANASI

सारनाथ पुरातात्विक खंडहर परिसर स्थित प्राचीन पुरावशेषों को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने के लिए पुरातत्व विभाग प्रयासरत है। इस संबंध में अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ। नीरज सिन्हा ने सारनाथ के पुरावशेषों के करीब 800 पेज का डोजियर बनाकर भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण ऑफ इंडिया दिल्ली के डीजी के सामने पेश कर यूनेस्को की सूची में शामिल करने की कवायद शुरू की है। धरोहर को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया तो यह बनारस का पहला और प्रदेश का तीसरा धरोहर होगा।

लम्बे समय से चल रहा प्रयास

अभी तक प्रदेश में दो स्मारक ताज महल और आगरा फोर्ट विश्व धरोहर की सूची में शामिल हैं। सारनाथ के पुरातात्विक स्मारकों को यूनेस्को की सूची में शामिल करने के लिए पुरातत्व विभाग पहले से ही कवायद कर रहा है। पिछले 15 साल से यह यूनेस्को के टेंटेटिव लिस्ट में है। यूनेस्को की सूची में शामिल होते ही यह धरोहर दुनिया की नजरों में आ जाएगा। इससे पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा होगा। अंतरराष्ट्रीय मानकों पर धरोहर के संरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। इसी के अनुरूप यहां की सुविधाओं का विकास किया जाएगा। धमेख स्तूप सारनाथ स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल है।

भगवान बुद्ध ने दिया था उपदेश

माना जाता है कि धमेख स्तूप ही वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था। धमेख स्तूप की नींव अशोक के समय में रखी गई, जबकि विस्तार कुषाण काल में हुआ। गुप्त काल में यह पूर्णत: तैयार हुआ। धमेख स्तूप एक ठोस गोलाकार बुर्ज की भांति है। इसका व्यास 28.35 मीटर (93 फीट) और ऊंचाई 39.01 मीटर (143 फीट) है। इस स्तूप को छह बार बड़ा किया गया था। इसके बावजूद भी इसका ऊपरी हिस्सा अधूरा ही रहा। एक चीनी यात्री जुआनच्वाग ने पाचवीं शताब्दी में सारनाथ का भ्रमण किया था। उन्होंने लिखा है कि उस समय यहां की कॉलोनी में 1500 से ज्यादा धर्माचार्य थे और मुख्य स्तूप करीब 300 फीट ऊंचा था।

धमेख स्तूप पर पड़े काले धब्बे

सारनाथ बौद्ध धर्म स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां की आत्मा धमेख स्तूप को माना जाता है। इस पर काले धब्बे पड़ गए हैं। स्तूप पर गुप्त काल की बनीं कलाकृतियों का क्षरण हो रहा है। यह विभागीय लापरवाही का नतीजा है। क्षरण इस कदर हुआ है कि वर्तमान में स्तूप पर गुप्त काल की बनी कलाकृतियां बहुत कम ही बची हैं।