आई एक्सक्लूसिव

-कूड़ा निस्तारण और बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण का नहीं कोई इंतजाम

-शहर में बताए 441 हॉस्पिटल और मेडिकल वेस्ट कुल 9200 किलो

Meerut। सरकारी हीलाहवाली के कारण महानगर संक्रमण की जद में पहुंच गया है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि शहर से निकलने वाले सॉलिड वेस्ट और हॉस्पिटल्स से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट के प्रॉपर निस्तारण का हमारे सिस्टम के पास कोई प्रॉपर इंतजाम नहीं है। निस्तारण तो दूर की बात सिस्टम बायोमेडिकल वेस्ट के सटीक आंकड़े तक नहीं रखता।

एनजीटी में पहुंचा म़ुद्दा

दरअसल, आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश खुराना ने शहर में गंदगी और बदहाली को लेकर छह नवंबर 2015 को हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में आरटीआई कार्यकर्ता ने शहर की आबादी के हिसाब से सफाई कर्मियों की संख्या में कमी, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और बायो मेडिकल वेस्ट प्रोग्राम लागू न होने को लेकर नगर निगम, एमडीए, कमिश्नर व पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को पार्टी बनाया था। आरटीआई एक्टीविस्ट ने अब इस प्रकरण को एनजीटी में उठाया है।

तथ्यों में भी हेराफेरी

आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश खुराना ने बताया कि हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान नगर निगम की ओर से बताया कि शहर में कुल 441 हॉस्पिटल्स हैं जिनसे रोजाना 420 किलो बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है। इस हिसाब से एक हॉस्पिटल से रोजाना 1.3 किलो वेस्ट ही निकलता है। कोर्ट ने जब निगम अफसरों को फटकार लगाते हुए बायोमेडिकल वेस्ट का पैमाना पूछा तो आंकड़ों को बढ़ाकर 9200 किलो कर दिया गया।

आंकड़ों में बरगलाया

याचिका कर्ता ने बताया कि कोर्ट में पहले निगम ने शहर में 300 किलो प्रति घंटा के हिसाब से बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण की बात कही थी। जबकि दूसरी रिपोर्ट में निगम रोजाना कुल 420 किलो बायो मेडिकल वेस्ट की बात बता रहा है। निगम द्वारा कोर्ट में दाखिल की गई दोनों रिपोर्ट अलग-अलग पेश की हैं।

डिस्पोजल के नहीं इंतजाम

शहर में हॉस्पिटल, ट्रामा सेंटर और पैथोलॉजी लैब मिलाकार 441 मेडिकल संस्थान हैं। इसमें 15 बेड से लेकर 1000 बेड तक वाले हॉस्पिटल्स भी आते हैं। मेडिकल वेस्ट की रूप में यहां से रोजाना प्लास्टिक कचरा, बोतल, निडिल्स, कॉटन, मानव अंग और अन्य वेस्ट निकलता है। इस वेस्ट का तत्कालिक निस्तारण किया जाना नितांत आवश्यक है। जबकि हॉस्पिटल्स द्वारा या तो यह जमीन में दबा दिया जाता है, या फिर खुले में फेंक दिया जाता है।

फैल रहा संक्रमण

जमीन में दबने वाला मेडिकल वेस्ट जहां ग्राउंड पॉल्यूशन को बढ़ा रहा है, वहीं खुले में पड़ा संक्रमित वेस्ट मानव समाज को बीमारियों में धकेल रहा है। आलम यह है कि सड़कों पर खुले रूप में पड़े इस वेस्ट को कुत्तों घसीटते नजर आते हैं। वहीं कूड़ा बीनने वाले लोग यहां से प्लास्टिक वेस्ट बीनकर ले जाते हैं, जिसके रिसाइकल कर पुन: गलत रूप से परोस दिया जाता है।

ऐसे होता है निस्तारण

बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण उसको उच्च ताप क्षमता वाले हीटर पर डिस्ट्राय कर किया जाता है। मानव अंगों को चूना व अन्य अम्लों के माध्यम से गला दिया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि ऐसी कोई भी व्यवस्था हमारे सिस्टम के पास नहीं है।

जिला अस्पताल में बायोमेडिकल वेस्ट के लिए अलग व्यवस्था की गई है। यहां से यह सिनर्जी बायोमेडिकल वेस्ट कंपनी को भेज दिया जाता है। जहां पर इसका निस्तारण कर दिया जाता है।

डॉ। पीके बंसल, एसआईसी जिला अस्पताल

सभी प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने बायोमेडिकल वेस्ट कंपनी से कांट्रेक्ट किया हुआ है। ऐसे में हॉस्पिटल से निकलने वाला वेस्ट संबंधित कंपनी में डिस्पॉजल कराया जाता है।

-डॉ। वीरोत्तम तोमर, आईएमए अध्यक्ष