खतरनाक खेल

चार साल का आदित्य अपनी छोटी बहन का गला जोर से दबा रहा था कि अचानक मां की निगाह पड़ी। मां ने दोनों को अलग किया और पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहा था? आदित्य ने बेहद भोलेपन से कहा - मैं तो खेल रहा था। मां ने पूछा कि यह कौन-सा खेल है, तो वह बोला - टॉम भी तो जेरी के साथ ऐसे ही खेलता है।

छोड़ी पढ़ाई

पांच साल की चाहत ने पढऩा बंद कर दिया है, वो सारा दिन अब सिर्फ सोना चाहती है। स्कूल से भी उसकी कंप्लेन आने लगीं। जब उसकी मम्मी ने उससे पूछा कि वो पढऩा क्यों नहीं चाहती? पढ़ेगी नहीं तो आगे कैसे बढ़ेगी? इस पर चाहत ने जवाब दिया कि नोबिता भी तो नहीं पढ़ता। डोरेमॉन उसकी मदद करता है। ऐसा ही एक डोरेमॉन मैैं भी ढूंढ लूंगी।

पहली क्लास में ही रेस्टीकेट

सिटी के एक जाने-माने कॉन्वेंट स्कूल के बच्चे को पिछले दिनों स्कूल से रेस्टीगेट कर दिया गया है क्योंकि उसकी शरारतें लिमिट्स क्रास कर गई थीं। इस बाबत जब उसके पेरेंट्स से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वो कार्टून कैरेक्टर्स की तरह ही काम करता था। यह काम शरारतों में बदल जाते हैैं।

बच्चों को कैसे करें इनसे दूर

बच्चे से इंटरेक्शन बढ़ाया जाए। उसे दूसरी रोचक गतिविधियों में शरीक किया जाए। उसे फैंटेसी का सही मतलब समझाया जाए। हकीकत और फैंटेसी की दूरी बताई जाए और फैंटेसी को सिर्फ हल्के-फुल्के मनोरंजन तक सीमित रखने का तरीका सिखाया जाए। पेरेंट्स अपनी गाइडेंस में ही बच्चों को टीवी देखने दें। अपना काम निपटाने के लिए बच्चों को टीवी के सहारे ना छोड़ें। टीवी देखने का भी एक टाइम फिक्स कर दें।

पेरेंट्स हो जाते हैैं बेफिक्र

जब घर के अंदर लिविंग एरिया में बैठे बच्चे टीवी पर कार्टून देखकर हंसते-खिलखिलाते नजर आते हैं तो पैरेंट्स बेफिक्र हो अपने काम में जुट जाते हैं। दरअसल, उन्हें लगता ही नहीं है कि ये छोटे-छोटे कैरक्टर उनके बच्चों पर क्या असर डाल रहे हैं? कहीं ये प्रोग्राम बच्चों को हिंसक तो नहीं बना रहे या उनमें कुछ गलत आदतें तो डेवेलप नहीं कर रहे। आमतौर पर कार्टून शŽद का सीधा-सा मतलब निकलता है फनी। बड़े लोग अक्सर कार्टून को इसी अंदाज में लेते भी हैं लेकिन बच्चे इन्हें पूरी गंभीरता से लेते हैं। वे न सिर्फ उन्हें देखते हैं, बल्कि उनकी कॉपी भी करने लगते हैं। मसलन अगर डोरिमॉन में जियान नोबिता को मारता है, मिकी माउस ऐंड डोनल्ड डक में प्लूडो (डॉग) डोनल्ड का पीछा करता है या टॉम एंड जेरी में स्पाइक (बुल डॉग) टॉम पर अक्सर हमला कर रहा होता है तो छोटे बच्चों को लगता है कि यह फन है और वे भी ऐसा कर सकते हैं। इसीलिए ज्यादातर बच्चे टेबल-चेयर, सोफा आदि पर चढ़कर उछल-कूद करते या एक-दूसरे को हिट करते नजर आते हंै। बच्चे देखते हैं कि कोई कार्टून कैरक्टर दूसरे की मार से पिचक जाता है और फौरन सही सलामत उठ खड़ा होता है। बच्चों को लगता है कि वे अगर किसी को मारेंगे तो वह भी उठ खड़ा होगा। वे फैंटेसी और असलियत का फर्क नहीं कर पाते। अक्सर पैरेंट्स बच्चों को समझाते भी नहीं हैं कि जो टीवी पर दिख रहा है, वह कोरी कल्पना है।

लत बनते कार्टून

एंटरटेनमेंट के सबसे पॉपुलर जरियों में से है टीवी। करीब छह महीने की उम्र से ही बच्चा टीवी पर नजरें टिकाना शुरू कर देता है, खासकर रंग-बिरंगे और उछलते-कूदते कार्टूनों पर और दो-तीन साल की उम्र तक उनमें टीवी की लत लग जाती है। अक्सर पैरेंट्स शौकिया तौर पर बच्चों को टीवी दिखाना शुरू करते हैं। काम पूरा करने या फोन पर बात करने में कोई रुकावट न हो इसलिए भी कई माएं बच्चे को टीवी के सामने बैठा देती हैं। बस, धीरे-धीरे बच्चों में टीवी की लत लग जाती है।

यू मस्ट नो

अमेरिका में की गई एक रिसर्च में चौंकानेवाले नतीजे सामने आए। रिसर्च के मुताबिक स्कूल से लेकर ग्रेजुएशन तक बच्चे 13,000 घंटे स्कूल में बिताते हैं, जबकि 18,000 घंटे टीवी के सामने। है न, चौंकानेवाला आंकड़ा! जरूरत से ज्यादा टीवी देखना बच्चों पर तीन तरह से असर करता है। पहला, फिजिकली एक्टिव न होने से बच्चे मोटापे का शिकार हो जाते हैं। उनमें स्टेमिना नहीं बन पाता। साथ ही पास से या गलत तरीके से देखने से आंखों पर भी बुरा असर पड़ता है। दूसरा असर होता है, बच्चे के मानसिक विकास पर। रिसर्च बताती हैं कि ज्यादा टीवी देखने से बच्चे के सोचने की क्षमता कमजोर होती है.तीसरा और सबसे बुरा असर यह है कि टीवी पर हिंसा देख देखकर वे हिंसक और दूसरे की तकलीफ के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं। वे हिंसा से डरना बंद कर देते हैं और ज्यादा अग्रेसिव हो जाते हैं। इसमें कार्टूनों का काफी बड़ा रोल होता है।

अच्छे भी हैैं कार्टून

गुड कार्टून्स की बात करें तो बॉब द बिल्डर, डोरेमॉन, नॉडी, पोपॉय, ऑसर्वल्ड आदि को इस कैटिगरी में रखा जा सकता है। बेहद शांति और तमीज से बोलनेवाला ऑसर्वल्ड बच्चों को संयम की सीख देता है तो नॉडी उन्हें अच्छी लैंग्वेज, तहजीब और दूसरों की मदद करना सिखाता है। इसी तरह डोरेमॉन बेहद डिसेंट है और अच्छी आदतें सिखाता है। ड्रिम किक्स बच्चों में टीम स्प्रिट जगाता है.  इसके अलावा, पौराणिक चरित्रों पर बने कृष्ण-बलराम, छोटा भीम जैसे प्रोग्राम अच्छी शिक्षा भी देते हैं।

पॉकेमन पर लगा था बैन

कार्टून की दुनिया में जितना फेमस पॉकेमन हुआ है, उतना शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन इसका विरोध भी इतना ही हुआ। पॉकेमॉन का पश्चिमी देशों में चर्च ने इसका विरोध किया है। सऊदी अरब में इसके खिलाफ फतवा जारी हुआ है। रूस में इस पर पाबंदी की मांग उठी है। तुर्की में पोकेमॉन एनीमेशन बैन कर दिया गया है और अमेरिका में कई स्कूलों ने इस पर रोक लगा दी है। कारण अलग-अलग हैं , लेकिन मुख्य आपत्ति यह है कि पोकेमॉन या उस जैसे दूसरे गेम जरूरत से ज्यादा जादुई , तिलिस्मी , चमत्कारी , हिंसक और आक्रामक हैं। वे बच्चों को उनकी सामान्य दुनिया से काट कर एक ऐसी फैंटेसी में ले जाते हैं , जहां जादू टोने , दैत्यों और अति मानवीय शक्तियों का राज चलता है। इन सब चीजों की छाया बच्चे के दिमाग पर इतनी गहरी पड़ जाती हैं कि वह युद्ध , मृत्यु और प्रतिशोध को जायज मानने लगता है।

Character in Bad category!

शिनचैन नामक कार्टून कैरक्टर अपनी मां के साथ जिस बदतमीजी से बात करता है। यह हमारे संस्कारों के बिल्कुल उलट है। इसी तरह मिस्टर बीन, पॉकिमॉन, पावर ऑफ गल्र्स  जैसे प्रोग्राम बच्चों पर नेगेटिव असर डालते हैं। यहां तक कि बच्चों में सबसे पॉपुलर टॉम ऐंड जेरी में इतनी लड़ाई दिखाई जाती है, कि बच्चे जाने-अनजाने वही सीख लेते हैं।

डॉक्टर्स के यहां पहुंच रहे cases  

साइकेट्रिस्ट डा। विशाल सिन्हा बताते हैं कि हमारे पास ऐसे बहुत-से केस आते हैं, जिनमें बच्चों को कार्टून की इस कदर लत लग चुकी होती है कि

उनके खानपान से लेकर पढ़ाई-लिखाई तक पर असर पडऩे लगता है।

कई बच्चे तो इन कैरक्टर को कॉपी करने के चक्कर में वैसी ही गलत भाषा भी बोलने लगते हैं। हम ऐसे बच्चों को प्रोग्राम देखने से नहीं रोकते, क्योंकि इससे बच्चा और चिड़चिड़ा हो जाता है। हम उन्हें बेहतर कार्टून प्रोग्राम देखने की सलाह देते हैं।

शक्तिमान देख उडऩे की कोशिश में गिरे थे बच्चे

असलियत और फैंटसी का फर्क नहीं कर पाने का ऐसा ही बड़ा उदाहरण सामनड्डे आया था बरसों पहले, जब सीरियल शक्तिमान को देखकर उडऩे की कोशिश में बहुत-से बच्चों के छत से कूदने के मामले सामने आए थे। ऐसे और भी कई मामले सामने आ चुके हैं।

-मनीष अरोरा, मैनेजर, बचपन प्ले ग्रुप स्कूल

बच्चे कार्टूनों से सीखते भी हैं क्योंकि बच्चा जो देखता है, उसी में जीने लगता है। एनवायरमेंट, जानवरों आदि की हिफाजत पर बनाए गए कार्टून बच्चों को अच्छी सीख देते हैं। फिर ये प्रोग्राम बच्चों को बिजी भी रखते हैं। पैरंट्स को यह जरूर मॉनिटर करना चाहिए कि उनके बच्चे कौन-सा प्रोग्राम देख रहे हैं क्योंकि

ज्यादातर कार्टून प्रोग्राम सेंसर्ड नहीं होते। ऐसे प्रोग्राम्स का बच्चों के वैल्यू सिस्टम पर असर पड़ता है।

डा। केसी गुरनानी,साइकेट्रिस्ट

जरूरत से ज्यादा टीवी देखना या कार्टून्स देखने से बच्चों के दिमाग पर असर होता है। मेरे पास हर हफ्ते सात से आठ बच्चों के पेरेंट्स इस प्रॉŽलम के साथ आते हैैं कि बच्चा पढ़ता नहीं है क्योंकि कार्टून ज्यादा देखता है। फिर उसकी काउंसलिंग की जाती है। मेरे पास आने वाले बच्चों की उम्र पांच से 12 साल के बीच है.