आज रिकार्ड बनाएंगे नीतीश कुमार
क्क्रञ्जहृ्र(१९ हृश1): नीतीश कुमार आज गांधी मैदान में अपने नाम एक रिकॉर्ड दर्ज करने जा रहे हैं। वे बिहार के ऐसे पहले सीएम होंगे जो पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.
नीतीश कुमार के बारे में
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना जिले के बख्तियारपुर में हुआ था। पिता का नाम स्व कविराज राम लखन सिंह और मां स्व परमेश्वरी देवी। पिता वैद्य थे। नीतीश ने 1970 में बिहार की राजनीति में कदम रखा। 1974 और 1977 में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति में शामिल हुए। वे पहली बार 1985 में विधायक बने। 1986 से 87 के बीच वे कमेटी ऑन पŽिलक अंडरटेकिंग बिहार विधान सभा रहे। 1989 में वे जनता दल बिहार के महासचिव चुने गए। 1989 में में 9 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1989-90 में में वे हाउस कमेटी में सदस्य रहे। 1990 में केन्द्रीय कृषि और सहकारिता राज्य मंत्री हुए। 1991 में वे 10 वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए। 1991-93 में जनता दल के महासचिव एवं संसद में जनता दल के उपनेता हुए। 1991-96 में रेलवे कन्वेंशन कमेटी में सदस्य रहे। 1993-96 में कमेटी ऑन एग्रीकल्चर के अध्यक्ष हुए। 1996 में 11 वीं लोकसभा के लिए चुने गए.1998 में 12 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1998-99 में केन्द्रीय रेल मंत्री, भूतल परिवहन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिला.1999 में 13 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1999 में केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री, केन्द्रीय कृषि मंत्री हुए। 2000-01 में केन्द्रीय कृषि मंत्र और 2001-02 में केन्द्रीय रेल मंत्री रहे। 2004 में वे 14 वीं लोकसभा के लिए छठी बार चुने गए.
इसकी खूब चर्चा होती है
 नीतीश कुमार राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। उनके कई राजनीतिक मित्र अब उनके साथ नहीं हैं। पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए कई नेताओं को राजनीतिक सजा इन्होंने दी। लेकिन दूसरी पार्टी  के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया। वे खुद अपने बड़े राजनीतिक दुश्मन लालू प्रसाद के गले लग गए। कई अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को इन्होंने टिकट दिया। ऐसे लोग जीते भी। अनंत सिंह को सजा देने का मामला एक यादव की हत्या से जुड़ा था जिस पर लालू प्रसाद ने कहा भी कि उनके कहने पर कार्रवाई की गई। जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से दोस्ती कर ली तो लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ? लगने लगा कि अब क्या होगा? लोग चौक-चौराहे की गप्पों में कहने लगे कि जिसके खिलाफ वोट मांगे थे उसी के साथ चले गए नीतीश कुमार। नीतीश ने लालू के आने का भय तो जनता को दिखाया ही। इस भय को वोट बैंक में बदलने में भी वे कामयाब रहे। आगे यही भय उन्होंने बीजेपी को लेकर दिखाया और फिर सत्ता में आ गए.
बुद्ध और नीतीश
 नीतीश कुमार को बुद्ध ने खूब प्रभावित किया। मुख्यमंत्री आवास में बोधि वृक्ष की टहनी तो रोपी ही पटना जंक्शन के पास पाटलिपुत्र करूणा स्तूप स्थापित कराया। बौद्ध धर्म का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कराया.
नीतीश और अध्यात्म
उन्होंने तब बिस्कुट खाया था जब सूर्य ग्रहण लगा था और बिहार के तारेगणा में देश भर के बड़े वैज्ञानिकों को जमावाड़ लगा हुआ था। लेकिन यही नीतीश बाबा से कान में मंत्र लेते दिखे.
कभी कांग्रेस के खिलाफ अब बीजेपी के
राजनैतिक जानकारों की मानें तो नीतीश ने जेपी की उस धारा को मजबूत किया जिसमें कांग्रेस को रोक ने की बात थी। वे एनडीए के बड़े नेता हुए। वाजपेयी उन्हें बहुत मानते थे। इसी बीच बिहार में बीजेपी को उन्होंने मजबूत किया। लेकिन अब उन्होंने बिहार में कांग्रेस को मजबूत किया है और बीजेपी को रोका है। ये विरोधाभाष जैसा ही है कि वे रामरथ निकालने वाले आडवाणी की तारीफ करते रहे और नरेन्द्र मोदी की आलोचना। इस बार बीजेपी को रोकने में नीतीश से ज्यादा लालू की भूमिका मानी जा रही है लेकिन नीतीश कुमार के बिना यह संभव था ही नहीं। एनडीए के खिलाफ महागठबंधन बनाने में वे सफल नहीं हो सके। लेकिन उनकी भरसक कोशिश होगी कि वे चुनाव जीत के बाद ही सही इस काम को पूरा करें। अब मुलायम भी 'मुलायमÓ हो चुके हैं और शरद पवार भी। जानकारों की मानें तो  पहले भी कई बार पीएम पद के दावेदार के रूप में नीतीश कुमार की चर्चा हो चुकी है। एक बार फिर उनकी नजर उस कुर्सी पर है जिसका नाम है प्रधानमंत्री। अब सबकी नजर शुक्रवार की शपथ पर है.

नीतीश कुमार के बारे में 

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना जिले के बख्तियारपुर में हुआ था। पिता का नाम स्व कविराज राम लखन सिंह और मां स्व परमेश्वरी देवी। पिता वैद्य थे। नीतीश ने 1970 में बिहार की राजनीति में कदम रखा। 1974 और 1977 में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति में शामिल हुए। वे पहली बार 1985 में विधायक बने। 1986 से 87 के बीच वे कमेटी ऑन पŽिलक अंडरटेकिंग बिहार विधान सभा रहे। 1989 में वे जनता दल बिहार के महासचिव चुने गए। 1989 में में 9 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1989-90 में में वे हाउस कमेटी में सदस्य रहे। 1990 में केन्द्रीय कृषि और सहकारिता राज्य मंत्री हुए। 1991 में वे 10 वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए। 1991-93 में जनता दल के महासचिव एवं संसद में जनता दल के उपनेता हुए। 1991-96 में रेलवे कन्वेंशन कमेटी में सदस्य रहे। 1993-96 में कमेटी ऑन एग्रीकल्चर के अध्यक्ष हुए। 1996 में 11 वीं लोकसभा के लिए चुने गए.1998 में 12 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1998-99 में केन्द्रीय रेल मंत्री, भूतल परिवहन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिला.1999 में 13 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1999 में केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री, केन्द्रीय कृषि मंत्री हुए। 2000-01 में केन्द्रीय कृषि मंत्र और 2001-02 में केन्द्रीय रेल मंत्री रहे। 2004 में वे 14 वीं लोकसभा के लिए छठी बार चुने गए।

इसकी खूब चर्चा होती है

 नीतीश कुमार राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। उनके कई राजनीतिक मित्र अब उनके साथ नहीं हैं। पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए कई नेताओं को राजनीतिक सजा इन्होंने दी। लेकिन दूसरी पार्टी  के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया। वे खुद अपने बड़े राजनीतिक दुश्मन लालू प्रसाद के गले लग गए। कई अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को इन्होंने टिकट दिया। ऐसे लोग जीते भी। अनंत सिंह को सजा देने का मामला एक यादव की हत्या से जुड़ा था जिस पर लालू प्रसाद ने कहा भी कि उनके कहने पर कार्रवाई की गई। जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से दोस्ती कर ली तो लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ? लगने लगा कि अब क्या होगा? लोग चौक-चौराहे की गप्पों में कहने लगे कि जिसके खिलाफ वोट मांगे थे उसी के साथ चले गए नीतीश कुमार। नीतीश ने लालू के आने का भय तो जनता को दिखाया ही। इस भय को वोट बैंक में बदलने में भी वे कामयाब रहे। आगे यही भय उन्होंने बीजेपी को लेकर दिखाया और फिर सत्ता में आ गए।

बुद्ध और नीतीश

नीतीश कुमार को बुद्ध ने खूब प्रभावित किया। मुख्यमंत्री आवास में बोधि वृक्ष की टहनी तो रोपी ही पटना जंक्शन के पास पाटलिपुत्र करूणा स्तूप स्थापित कराया। बौद्ध धर्म का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कराया।

नीतीश और अध्यात्म

उन्होंने तब बिस्कुट खाया था जब सूर्य ग्रहण लगा था और बिहार के तारेगणा में देश भर के बड़े वैज्ञानिकों को जमावाड़ लगा हुआ था। लेकिन यही नीतीश बाबा से कान में मंत्र लेते दिखे।

कभी कांग्रेस के खिलाफ अब बीजेपी के

राजनैतिक जानकारों की मानें तो नीतीश ने जेपी की उस धारा को मजबूत किया जिसमें कांग्रेस को रोक ने की बात थी। वे एनडीए के बड़े नेता हुए। वाजपेयी उन्हें बहुत मानते थे। इसी बीच बिहार में बीजेपी को उन्होंने मजबूत किया। लेकिन अब उन्होंने बिहार में कांग्रेस को मजबूत किया है और बीजेपी को रोका है। ये विरोधाभाष जैसा ही है कि वे रामरथ निकालने वाले आडवाणी की तारीफ करते रहे और नरेन्द्र मोदी की आलोचना। इस बार बीजेपी को रोकने में नीतीश से ज्यादा लालू की भूमिका मानी जा रही है लेकिन नीतीश कुमार के बिना यह संभव था ही नहीं। एनडीए के खिलाफ महागठबंधन बनाने में वे सफल नहीं हो सके। लेकिन उनकी भरसक कोशिश होगी कि वे चुनाव जीत के बाद ही सही इस काम को पूरा करें। अब मुलायम भी 'मुलायमÓ हो चुके हैं और शरद पवार भी। जानकारों की मानें तो  पहले भी कई बार पीएम पद के दावेदार के रूप में नीतीश कुमार की चर्चा हो चुकी है। एक बार फिर उनकी नजर उस कुर्सी पर है जिसका नाम है प्रधानमंत्री। अब सबकी नजर शुक्रवार की शपथ पर है।