आगरा। आरटीओ ऑफिस में दलाल एकबार फिर सक्रिय हैं। छापे के बाद सतर्क दलालों ने अपने काम का तौर तरीका और ठिकाना बदल दिया है। पहले जहां सड़क किनारे व ऑफिस के सामने उनकी दुकानें सजी थीं, वहां से बाबुओं की पटल पर पहुंच गई हैं। जहां वह बेधड़क ऑफिस में एंटर होते थे, अब चेहरा बचाकर एंट्री करते हैं। शुक्रवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के रियलटी चेक में खुलासा हुआ कि प्रशासन की तमाम कोशिश के बाद भी बाबुओं और दलालों का गठजोड़ टूटने का नाम नहीं ले रहा। लोगों से खुलेआम वसूली के साथ दलालों से लेनदेन होता है।

गाड़ी ट्रांसफर को मांग 2500

बुधवार को कासिम अपनी गाड़ी ट्रांसफर कराने के लिए आरटीओ ऑफिस पहुंचे। वह सीधे बगैर किसी दलाल के ही बाबू के पास पहुंचे। कासिम ने बाबू से कहा कि गाड़ी ट्रांसफर करानी है। बाबू तो कुछ बोला नहीं, पर वहां पटल के पास मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि 2500 हजार रुपये लगेंगे। वह सन्न रह गए जिस व्यक्ति ने 2500 हजार रुपये बताए, उसकी बात की पुष्टि इशारों ही इशारों में बाबू ने भी कर दी। वह बगैर गाड़ी ट्रांसफर कराए ही वापस आ गए। पूरे विषय के संबंध में उच्च अधिकारियों से शिकायत करने की बात कही है।

कौन निकाले फाइल

दयालबाग निवासी रमेश कुमार आरसी से लोन कटवाने के लिए पहुंचे थे। वहां पर बतौर बाबू मैडम मौजूद थीं। वे बातों में मस्त थीं। रमेश कुमार ने मैडम को अपना काम बताया। मैडम ने कहा कि इसमें समय लगेगा। फाइल निकलवानी पडे़गी। रमेश ने कहा कि फाइल तो अभी निकल सकती है। इसपर मैडम ने कहा कि कौन निकालेगा। हकीकत ये है कि फाइल निकाले जाने का कार्य प्राइवेट लोग ही करते हैं। इसके पीछे आरटीओ ऑफिस के अधिकारियों का यह भी कहना है कि स्टाफ की भारी कमी है। जितना स्टाफ होना चाहिए, उसका आधा है।

सक्रिय हो गए हैं दलाल

भ्रष्टाचार और दलालों की शिकायत पर डीएम ने आरटीओ में 12 जुलाई को छापेमारी कराई थी। टीम ने आते ही दो दलालों के नाम भी पूछे थे, लेकिन उनमें से कोई भी मौके पर नहीं मिला था। यही नहीं टीम के हाथ कोई भी दलाल नहीं लगा था। लेकिन, आरटीओ ऑफिस में भ्रष्टाचार के प्रमाण टीम के हाथ लगे थे। हालांकि, अभी तक कार्रवाई तो किसी के विरुद्ध नहीं हो सकी है। छापे का असर कुछ दिनों तक आरटीओ ऑफिस में देखने को मिला। अब धीरे-धीरे फिर से दलाल सक्रिय हो गए हैं। वहीं आरटीओ और एआरटीओ दलालों को लेकर सख्त हैं। उन्होंने सभी बाबुओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि दलाली प्रथा को खत्म कर जनता का कार्य सीधे तौर पर किया जाए। आदेश फेल साबित हो रहे हैं।