संडे हो या मंडे, हाथ में रखे डंडे

शहर के अधिकारी सकते में हैं कि उनके मंत्री ने आखिर ऐसा क्यों कह दिया! दरअसल डंडे को रखना कोई कानूनी जुर्म भी नहीं है। किसी तरह की परमीशन और लाइसेंस की जरूरत भी नहीं होती। डंडा लेकर चलना हमारी पुरानी परंपरा भी रही है। और डंडा रखने भर से ही काम हो जाए तो लेकर चलने में शर्म कैसी?

डंडे के फायदे

कल्पना कीजिए। आप लाइसेंस बनवाने के लिए डंडा लेकर आरटीओ चले गए। वहां फार्म लिया। फीस जमा की। अगर दो दिन बाद भी काम नहीं हुआ और डंडा लेकर पहुंच रहे हैं तो निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। हां, इतना ध्यान रखें डंडा ना चलाएं, धमकाएं भी नहीं। नहीं तो आपके खिलाफ सामने वाला केस दर्ज करा सकता है। केवल साथ रखेंं इस डंडे में इतनी आंच होती है कि उससे ही काम हो जाता है।

आओ सिखाएं डंडे का फंडा

यकीनन सफलता मिलेगी

अगर लोग डंडा हाथ में लेकर किसी सरकारी डिपार्टमेंट में एंट्री करेंगे तो सामने वाले पर असर तो पड़ेगा ही। मोहल्ले के लोग इकट्ठे होकर डंडे के साथ नगर निगम जाएंगे तो अगले दिन स्ट्रीट लाइट भी जल जाएगी, सडक़ें ठीक हो जाएंगी। डंडे के डर से पब्लिक के उठने से पहले ही सुबह सफाई हो जाएगी। यूनिवर्सिटी में समय से माइग्र्रेशन, डिग्र्री मिल जाएगी। बिजली विभाग भी पूरी तरह चौकन्ना हो जाएगा। बिजली समय से मिलने लगेगी। बिल में कोई गड़बड़ी है तो वो ठीक हो जाएगी। नाला सफाई नहीं हो रही है तो वो भी हो जाएगा। बस शहर के लोगों को हाथ में डंडा लेकर सरकारी दफ्तर जाने की आदत बना लेने की जरूरत है।

डंडे में शक्ति है

मेरठ तो डंडे का जोर पहले भी देख चुका है। अगस्त 2012 में कुछ स्टूडेंट्स जब रजिस्ट्रार साहब को कुछ स्टूडेंट यूनियन के नेता बिना कपड़े पहने घर से बाहर लेकर आए थे। खूब सुर्खियों में रहे रजिस्ट्रार साहब। स्टूडेंट्स का काम अगले दिन हो गया था। बिजली की समस्या उसी दिन हल हो जाती है जब डंडे लेकर पब्लिक ऊर्जा विभाग घेर लिया। कमेले को ध्वस्त होते हुए सभी ने देखा। कमेले का टूटना लोगों के लिए सपना था। आजम खां का स्पेशल डंडा था जिसके सामने सबको झुकना पड़ा।

आओ सिखाएं डंडे का फंडा

बोले डीएम साहब

क्या पब्लिक के डंडा लेकर सरकारी दफ्तरों में पहुंचने पर आसानी से काम हो जाएगा? सवाल सुनकर डीएम हंसते हैं। फिर कहते हैं। अब मैं इस पर क्या कहूं फिर एक बार हंसते हैं। फिर कहा, मैं इस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा। हंसते है

हर जगह नहीं चलेगा डंडे का फॉर्मूला

मंत्री जी के डंडा शास्त्र पर जब आई नेक्स्ट ने शहर के कुछ अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कुछ इस तरह राय दी।

'अब मंत्री जी ने ऐसा क्यों और किनके लिए कहा मुझे पता नहीं। जब वो मेरठ आए थे तो प्रशासन की काफी तारीफ करके गए थे। वैसे भी हमारे यहां ऐसी कोई नौबत नहीं आने वाली है। कुछ अधिकारी हैं जिनका बिहेवियर पब्लिक के प्रति सही नहीं है। उन्हें अपने अंदर सुधार करने की जरुरत है। क्योंकि हम पब्लिक के ही रुपयों से ही सैलरी पा रहे हैं.'

- राजकुमार सचान, नगर आयुक्त

'अपने यहां तो काफी अच्छा काम चल रहा है। मैं तो किसी तो दोबारा फोन करने की नौबत नहीं आने देता। पूरा काम फिट करके रखता हूं। वैसे भी हमारे डिपार्टमेंट में इस तरह की नौबत नहीं आएगी.'

-डॉ। राजबीर सिंह, एनएसए

'हमारे यहां तो काफी परफेक्ट काम चल रहा है। ऐसी वक्त तो कभी नहीं आएगा कि पब्लिक हमारे दरवाजों के बाहर डंडे लेकर खड़े हों.'

-ओम प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार, सीसीएसयू

'देखिये सभी काम करने का तरीका अलग-अलग होता है। आजम खां साहब मंत्री हैं। कुछ कह सकते हैं। उनके बयान के बारे में हम क्या कह सकते हैं.'

-यशपाल सिंह, चीफ टाउन प्लानर, एमडीए

'मैं तो इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि डंडे के बल पर सभी काम हो जाएंगे। हर जगह अलग माहौल होता है। काम हमेशा प्यार से ही होता है। और बात रही मेरे डिपार्टमेंट की तो मैं जब तक हूं ऐसा माहौल कभी पैदा नहीं होने दूंगा.'

-डॉ। विनय अग्रवाल, प्रिंसीपल, मेडिकल कॉलेज

'अब डंडे से तो कोई काम नहीं हो सकता है। वैसे भी हमारे यहां तो ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी। पब्लिक को पूरी सुविधा मिल रही है। अगर कोई शिकायत होती है तो तुरंत दूर कर दी जाती है.'

- डॉ। अमीर सिंह, सीएमओ

डंडे लेकर चलने का फायदा

आओ सिखाएं डंडे का फंडा

1 - डंडा लेकर निकलने पर कोई आंख उठाकर देखने की हिमाकत नहीं करेगा

2 - डंडा देखकर कोई दंबग अपनी दबंगई नहीं दिखा सकेगा।

3 - चेन स्नेचर डंडा देखकर चेन स्नेचिंग से पहले दस बार सोचेगा।

4- लुटेरे लूट करने के लिए पास आने को घबराएंगे।

5- डंडे से लफंगों को लड़कियां अच्छी तरह सबक सिखा सकती हैं।

6- डंडा रखने से किसी बेकाबू जानवर से बच सकेंगे।

7- बंदूक, कïट्टा, पिस्टल भूल से भी चल गया तो जान जा सकती है लेकिन डंडा केवल रखने भर से ऐसा कोई रिस्क नहीं है।

नब्बे रुपए का डंडा

मेरठ। डंडा बाजार में तेजी आ गई है। लगता है ये आजम खां के बयानों का असर है। कल तक पचास रुपए का मिलने वाली बेंत नब्बे रुपए की मिल रही है। सदर बाजार के एक दुकानदार ने बताया कि मजबूत और हल्के बेंत की काफी डिमांड है।

आओ सिखाएं डंडे का फंडा

हर हाथ में डंडा

घर के बालिग सदस्य डंडा रखना शुरू करे तो दस से बारह लाख लाख डंडे चाहिए। बाजार में इतने डंडे उपलब्ध नहीं हैं। दुकानदारों का कहना है कि अगर मांग बढ़ी तो इसे मंगाने में कुछ दिनों का वक्त लगेगा।