- डीडीयूजीयू के एमबीए फैकेल्टी में नहीं आती हैं मल्टी नेशनल कंपनियां
- छोटी-मोटी कंपनियों से स्टूडेंट्स को किया जाता है लुभाने का प्रयास
GORAKHPUR बेहतर मैनेजमेंट गुरु बनाने व मल्टी नेशनल कंपनियों में रोजगार देने की बात करने वाली यूनिवर्सिटी की एमबीए फैकेल्टी अपने ही दावों में खोखली नजर आ रही है। एमबीए की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स के लिए मल्टी नेशनल कंपनियां तो दूर नेशनल कंपनियां भी आना पसंद नहीं करती हैं, या यूं कहें की डिपार्टमेंट के जिम्मेदार बुलाना नहीं चाहते हैं। पिछले कुछ वर्षो में कुछ कंपनियां आईं भी तो 2.40 से 2.80 लाख पैकेज पर। यही वजह है कि पिछले साल एमबीए की 60 सीट पर 55 एडमिशन ही हो सके थे। अब इस बार 75 सीट होने पर कितने कैंडिडेट्स एडमिशन लेते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
केवल बेहतर प्लेसमेंट का दावा
डीडीयूजीयू की एमबीए फैकेल्टी 1995 में इस मकसद से स्थापित की गई थी कि न सिर्फ गोरखपुर बल्कि पूर्वाचल के बच्चे मैनेजमेंट गुरु के साथ-साथ देश-विदेश की कंपनियों में नौकरी प्राप्त कर इस क्षेत्र का नाम रोशन कर सकें। तब से लेकर अभी तक हजारों स्टूडेंट्स एमबीए की डिग्री प्राप्त कर बाहर निकल चुके हैं। कुछ अपने प्रयास से छोटी-मोटी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं तो कुछ स्टूडेंट्स के लिए फैकेल्टी के पूर्व एचओडी ने आसपास की कंपनियां बुलाकर अपने नंबर भी बढ़ा लिए। एचओडी का टेन्योर पूरा होता गया बच्चे भी पढ़कर निकलते गए, लेकिन इस लायक नहीं बन पाए कि कैंपस में मल्टी नेशनल कंपनियों को बुलाकर उन्हें रोजगार दिला पाए हों।
इस बार बीबीए व एमबीए की बढ़ गई फीस
अभी तक एमबीए की 60 सीट पर होने वाले एडमिशन में जहां स्टूडेंट को 36000 रुपए फीस सालाना जमा करनी पड़ती थी। वहीं इस साल से 75 सीट पर होने वाले एडमिशन में स्टूडेंट को 40,000 रुपए सालाना फीस अदा करनी होगी। बीबीए के 60 सीट पर होने वाले एडमिशन में जहां पहले 15000 रुपए था। वहीं इस बार 75 सीट पर होने वाले एडमिशन में 18000 रुपए जमा करना होगा। यानी कि यूनिवर्सिटी सिर्फ फीस वसूलने और डिग्री देने के अलावा रोजगार देने में असफल है। हालांकि एमबीए डिपार्टमेंट के जिम्मेदारों का दावा है कि स्टूडेंट्स के लिए कैंपस प्लेसमेंट की व्यवस्था है। कुछ बच्चे सेलेक्ट भी हुए हैं, लेकिन जो कुछ हुए भी हैं वे मेधा करियर सेंटर और पुराने एल्युमनाई की मदद से संभव हो सका था।
सेल्फ फाइनेंस के नाम पर कर रहे धोखा
यहीं नहीं एमबीए डिपार्टमेंट के जिम्मेदार जहां एमबीए स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वहीं इस डिपार्टमेंट में सन 1995 से काम करने वाले कर्मचारियों को परमानेंट करने के बजाय उन्हें सेल्फ फाइनेंस डिपार्टमेंट का हवाला देकर गुमराह कर रहे हैं। जबकि एकेटीयू एमबीए का एंट्रेंस कराती है और सरकारी फीस जमा कराई जाती है। जबकि सेल्फ फाइनेंस कोर्स होने पर फीस सरकारी नहीं होती।
फैक्ट फिगर
- एमबीए में पहले होता था 60 सीट पर एडमिशन
- इस वर्ष से 75 सीट पर होगा एडमिशन
- बीबीए में पहले होता था 60 सीट पर एडमिशन
- इस वर्ष से 75 सीट पर होगा एडमिशन
- एमबीए की पहले लगती थी 36000 फीस
- इस वर्ष से एमबीए में लगेगी 40000 फीस
- बीबीए की पहले लगती थी 15 हजार फीस
- इस वर्ष से बीबीए की लगेगी 18 हजार फीस
नंबर ऑफ इंप्लॉइज
बीबीए
- असिस्टेंट कंप्यूटर ऑपरेटर - 1
- एकाउंटेंट - 1
- आउट सोर्सिग प्यून - 2
एमबीएम
- कलर्क - 3
- बुक अटेंडेंट - 1
- प्यून - 2
वर्जन
हमारी तरफ से पूरी कोशिश होती है की एमबीए के बच्चों को अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें प्लेसमेंट भी कराया जाए। कुछ कंपनियां आई भी थी। बच्चे सेलेक्ट भी हुए हैं। वे आज नौकरी भी कर रहे हैं। पहले से काफी हद तक सुधरा है।
प्रो। एके तिवारी, एचओडी, एमबीए डिपार्टमेंट, डीडीयूजीयू