- बरसों मेहनत कर अपने करियर की राह संवारने वाले हजारों लाखों स्टूडेंट्स का भविष्य जालसाज दांव पर लगा रहे

LUCKNOW: बीते कुछ समय से प्रतियोगी परीक्षाओं की सुचिता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। पीसीएस, सीपीएमटी, एआईपीएमटी के साथ ही यूपीटीयू के सेमेस्टर एग्जाम तक में जालसाजों ने अपनी पैठ बना ली है। बरसों मेहनत कर अपने करियर की राह संवारने वाले हजारों लाखों स्टूडेंट्स का भविष्य जालसाज दांव पर लगा रहे हैं। अपने इनसाइड स्टोरी में आई नेक्स्ट आज इसी बात की पड़ताल करेगा कि आखिर कैसे अचानक परीक्षा के पेपर लीक कराने में बाढ़ आ गई है। कौन लोग हैं जो इस बड़े खेल में शामिल हैं और हमारी जांच एजेंसियां और परीक्षा कराने वाले क्यों इन जालसाजों के आगे घुटने टेक रहे हैं। श्याम चंद्र सिंह और यासिर रजा की रिपोर्ट।

एग्जाम पास करने का शार्टकट

एग्जाम चाहे सीपीएमटी का हो या फिर रेलवे या कोई और, हर लोगों की ख्वाहिश होती है कि वह किसी तरह रिटेन एग्जाम क्वालीफाई कर ले। उसके लिए चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े। ऐसी ही चाहत रखने वालों ने सॉल्वर गैंग को खुराक दी। और देखते देखते ठेके पर नकल का गेम चल निकला। नकल रोकने में नाकाम रहने पर एग्जाम्स कंडक्ट करने वाले पुलिस की मदद की गुहार लगाने लगे। यूपी एसटीएफ ने ऐसे मामलों की पड़ताल स्टार्ट की बड़े-बडे़ लोगों के नाम सामने आने लगे।

बिहार और हरियाणा के गैंग ने पसारे पांव

नकल गिरोह और एग्जाम में फर्जीवाड़ा करने में वैसे तो कई गिरोह सक्रिय हैं लेकिन बिहार का बेदी राम गिरोह सबसे माहिर खिलाड़ी है। इसी तरह बिहार का ही शैलेंद्र उर्फ डब्बू पांडे, आरडी सिंह और दीना राम गिरोह ने एक बड़ा नेटवर्क तैयार कर लिया। बिहार के साथ बेदी राम और दीना राम अब यूपी में अपना सेंटर बना चुके हैं और कई एग्जाम में पेपर लीक के मामले में इनका सीधा नाम आ चुका है। वहीं हरियाणा के इमरान और यूपी के डॉ केडी सिंह गिरोह का भी नाम पेपर लीक कराने से जुड़ा है।

नकल का हाईटेक तरीका

ये गिरोह नकल के ऐसे तरीके इजाद करते हैं जिसे सुनकर और देख कर आप भी दंग रह जाएंगे। नकल कराने में टेक्नालॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। ब्लूटूथ डिवाइस और जीपीआरएस के थ्रू नकल की ऐसी टेक्निक अपनायी जाती है कि एग्जाम करा रहे अच्छे-अच्छे भी उसे न भांप पायें। पेन में लगा स्कैनर और गेंहू के दाने के बराबर ब्लू टूथ के जरिये नकल कराते हैं।

कमाल की है स्कैनिंग पेन

कुछ दिनों पहले पुलिस के हत्थे चढ़े शैलेंद्र से जब पूछताछ हुई तो उसने हैरान करने वाले खुलासे किये थे। शैलेंद्र ने बताया था कि कई बार कैंडीडेट की जगह पर गिरोह के स्कैनिंग एक्सपर्ट को बिठाया जाता है। एग्जामिनेशन हाल में पेपर मिलते ही गिरोह का मेंबर पेपर को पेन के थ्रू स्कैन करता है। स्कैनिंग सिस्टम ब्लू टूथ से लैपटाप से कनेक्ट रहता है और स्कैन होते पूरा पेपर बाहर बैठे गिरोह के दूसरे मेंबर को बाहर दिखायी देने लगता है। इसके बाद असली खेल शुरू होता है। ब्लूटूथ के जरिये कान में लगे हेडफोन पर जवाब बताया जाने लगता है। शैलेंद्र ने कुबूल किया था कि वह यूपी और बिहार में पेपर लीक कराने में माहिर है और इसी से कई पेपर लीक करा चुका है।

पहले होती है शिकार की तलाश

एसटीएफ के एक सीनियर अधिकारी की मानें तो पेपर लीक कराने वाले गिरोह में शामिल लोग सबसे पहले छोटे-छोटे कोचिंग सेंटर को निशाना बनाते हैं। कुछ गिरोह तो ऐसे भी हैं जो खुद कोचिंग सेंटर चलाते हैं और वहीं के स्टूडेंट्स से नकल कराने के नाम पर लाखों ऐंठ लेते हैं। इन पैसों से हाईटेक डिवाइस लाई जाती है जो कैंडीडेट्स को मुहैया करायी जाती है।

फिर साल्वर की होती है खोज

गिरोह इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स को अपने साथ शामिल करने पर फोकस करते हैं। उनमें से सॉल्वर गैंग उन स्टूडेंट्स को खोजता है, जो पढ़ाई में बेहतर हो और अपने सब्जेक्ट पर अच्छी कमांड हो। असल में किसी भी एग्जाम की सबसे बड़ी कड़ी फिजिक्स, मैथ्स, केमेस्ट्री व रीजनिंग होते हैं। जिसे सॉल्व करना इनके बायें हाथ का खेल होता है। उनको यह गैंग मोटी रकम का लालच देकर इस काम के लिए तैयार कर लेते हैं।

अलग अलग गैंग में फ्00 से अधिक मेंबर्स

एसएसपी एसटीएफ अमित पाठक की मानें तो यूपी के अलावा यूपी के आसपास के स्टेट्स में फ्00 से अधिक अलग-अलग गैंग्स के मेंबर्स सक्रिय हैं। इनमें से यूपी के अधिकतर लोगाें पर एसटीएफ शिकंजा कस चुकी है। हाल ही में लखनऊ के जियामऊ से पकड़े गये गिरोह के क्ख् सदस्यों का संबंध भी यूपी से ही नहीं बल्कि एमपी, बिहार, हरियाणा, रोहतक, दिल्ली और चंडीगढ़ के गिरोह से संबंध थे।

लचर सेंटर पर रहती है निगाह

नकल माफिया के पास पेपर लीक कराने के और भी तरीके हैं। हाईटेक तरीकों के अलावा पेपर आउट कराने के लिए किसी ऐसे सेंटर पर फोकस करता है, जहां पर एग्जाम के दौरान सुरक्षा लचर हो। जिसमें आसानी से सेंध लगाकर पेपर सेंटर के बाहर ले जाये जा सके। पेपर एग्जाम सेंटर के बाहर निकलने के बाद असली खेल शुरू होता है। पेपर को व्हाट्एप और वाइबर के जरिये पेपर सॉल्व करने वाली टीम तक पहुंचाया जाता है। जिसके बाद टीम उसको सॉल्व कर उसी माध्यम के जरिये तय सौदे के अनुसार कैंडीडेट को मुहैया करा देते हैं।

जैमर लगा तो खोज निकाला नया रास्ता

हाल में जब एक परीक्षा में एसएमएस के जरिये पेपर लीक होने का खुलासा हुआ तब से एग्जाम सेंटर्स पर जैमर लगाना शुरू हो गया। इसके बाद गिरोहों ने स्टै्रटजी भी बदल ली। अब गिरोह पेपर लीक कराने के लिए कैंडिडेट से पैसे लेते हैं, उसे अपने वॉट्सअप ग्रुप का मेंबर बना लेते हैं। इसके माध्यम से एग्जाम हाल में आंसर-की उपलब्ध करा देते हैं। इसके अलावा सिम लगा ऐसा मोबाइल डिवाइस मुहैया कराते है। जिसमें सिर्फ कॉल रिसीव की जा सकती है। ताकि कैंडीडेट्स को आसानी से उसके फोन पर आंसर की जानकारी दी जा सके।

एग्जाम सेंटर्स की होती है रेकी

एक बार कोचिंग सेंटर्स से कैंडीडेट्स की सेटिंग कर पैसे वसूलने के बाद गिरोह अपने एजेंट के माध्यम से सेंटर्स सर्च करना शुरू करते हैं। यह एजेंड जिस एग्जाम का पेपर लीक कराना है उसकी पूरी डेट निकलवाने के बाद सेंटर्स सर्च करना शुरू करते हैं। इसके बाद कुछ दिनों में सेंटर्स से संपर्क कर उनकी हेल्प से एक अच्छा खासा नेटवर्क खड़ा कर लेते हैं। इस काम में ऐसे लोग होते हैं जो कुछ पैसों के लालच में इनके लिए काम करते है।

एग्जाम के हिसाब से तय होती कीमत

पेपर लीक कराने वाला गिरोह एग्जाम का स्तर देख कर उसकी आंसर-की मुहैया कराने के पैसे तय करता है। उसी के हिसाब से रेट तय होता है। सरकारी नौकरी के पेपर आउट कराने के लिए करीब ब् लाख, बड़े एग्जाम जैसे लोक सेवा आयोग के लिए भ् लाख और बड़े कॉम्पटीशन जैसे एआईपीएमटी, सीपीएमटी और इसी लेवल के एग्जाम के लिए क्0 लाख रुपये तक हर कैंडीडेट से वसूले जाते हैं।

काफी तेजी से बढ़े केसेज

पिछले दो सालों में पेपर लीक होने के मामले में एकाएक बढ़ोत्तरी हो गई है। राजधानी में ही पिछले तीन मंथ में तीन बडे़ पेपर आउट हो चुके है। इन घटनाओं से इस बात का पता आसानी से चल सकता है पेपर लीक कराने वाले गिरोह कितने सजग और हाईटेक हो गए है। मार्च में यूपी लोक सेवा आयोग, मई में यूपीटीयू के पेपर और सीपीएमटी का पेपर आउट हुए। इन तीनों पेपर को आउट करने में गिरोह ने व्हाट्सएप का ही प्रयोग किया गया था। इस नए तकनीकों ने एग्जाम आयोजित कराने वाली एंजेसियों के लिए काफी परेशानियां खड़ी कर दी है। ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि अगर थोड़ी सी सावधानी बरती जाएं तो ऐसे मामलों पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकती है।

एसटीएफ ने दिए थे सुझाव

पिछले साल ख्ख् जून को हुए सीपीएमटी के एग्जाम के बाद एसटीएफ ने पूरी प्रक्रिया के बारे में पड़ताल की थी जिसमें कई खामियां पायी थीं। इसके बाद एसटीएफ ने संबंधित अधिकारियों को एक लेटर लिख कर सुरक्षा संबंधी सुझाव दिये थे।

-पेपर तैयार करने वाली टीम को प्रिंटर तक पहुंचाने के लिए पासवर्ड प्रोटेक्ट ही पर्याप्त नहीं होना चाहिए। डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

-एक स्थान से दूसरे स्थान तक पेपर की साफ्ट कॉपी भेजने के लिए सिक्योर डोमेन जैसे द्दश्रक्.द्बठ्ठ या ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ का इस्तेमाल हो

-सिक्योरिटी ऑडिट होनी चाहिए

-वाईफाई नेटवर्क से पेपर संबंधी डाक्यूमेंट भेजने से परहेज करना चाहिए, वाईफाई सिक्योरिटी को ऑडिट कराना चाहिए।

-सिक्योरिटी मैनेजमेंट की जानकारी होनी चाहिए

-सिस्टम की सिक्योरिटी ऑडिट होनी चाहिए

-आईसीओ 9000 सर्टिफाइड साफ्टवेयर व हार्डवेयर ही इस्तेमाल हो

- पेपर को कूरियर से भेजने के बजाय निजी वाहनों से भेजना सुरक्षित

-पेपर की जिम्मेदारी पेपर प्रिंटर पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए।

-निगरानी के लिए सुरक्षा सलाहकार की मदद ली जानी चाहिए।

बचानी होगी साख

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सेंटर सुपरिंटेंडेंट और डिप्टी सुपरिंटेंडेट तय हों

आम तौर पर ज्यादातर एग्जाम सेंटर्स प्राइवेट स्कूलों या संस्थानों को बनाया जाता है। इन सेंटर्स के प्रभारी के तौर पर यहां पर इन्हीं कॉलेजों के शिक्षकों, प्रिंसिपल या डायरेक्टर्स को इंचार्ज बना दिया जाता है। ऐसे में प्राइवेट कॉलेजों के भरोसे पूरे एग्जाम आयोजित होते है। अभी तक जितने भी पेपर लीक होने के मामले हुए है। उनमें ऐसे ही प्राइवेट कॉलेजों के नाम सामने आए है। ऐसे में इस पर लगाम कसने के लिए सरकार या एग्जाम आयोजित कराने वाले संस्था को सेंटर सुपरिंटेंडेंट और डिप्टी सुपरिंटेंडेट के तौर पर यूनिवर्सिटी, गवर्नमेंट डिग्री कॉलेजों या गवर्नमेंट स्कूल के टीचर्स को नियुक्त किया जाना चाहिए। जिसे ऐसे प्राइवेट सेंटर्स पर होने वाले एग्जाम की सुचिता कायम हो सके। इसके अलावा गवर्नमेंट का एग्जाम सेंटर्स बनाने में गवर्नमेंट कॉलेजों को तरजीह देनी चाहिए।

-प्रो। कृपा शंकर, यूपीटीयू के पूर्व वाइस चांसलर

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हर पेपर का विकल्प रखें तैयार

पेपर आउट होने की कंडीशन में हमेशा दूसरे पेपर सेट की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे में अगर पेपर लीक होने की सूचना आती है भी तुरंत पेपर चेंज कर एग्जाम आयोजित कराया जा सके। इससे स्टूडेंट्स का नुकसान भी नहीं होगा। पेपर लीक कराने वाले गिरोह के मनोबल को इस व्यवस्था

से तोड़ा जा सकता है।

-प्रो। एसके शुक्ला, एलयू एग्जाम कंट्रोलर और राजधानी में सीपीएमटी के नोडल अफसर

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सेंटर्स पर निगरानी बढ़ाएं

एग्जाम आयोजित करने से ज्यादा उसके पेपर की सुरक्षा करना आवश्यक है। आम तौर एग्जाम सेंटर्स पर पेपर पेपर एक घंटे पहले पहुंचाया जाता है। ऐसे में पेपर की सुरक्षा उस सेंटर प्रभारी की होती है। पर जब पेपर जिस बक्से में बंद होकर आता है तब उसकी सील किसी को भी खोलने की इजाजत होती है। आमतौर पर इस ओर कोई ध्यान नहीं देते है। हर सेंटर्स पर पेपर की जिम्मेदारी अगर किसी एक या दो की तय की जाएं तो इस प्रॉब्लम को काफी हद तक काबू किया जा सकता है।

प्रो। वाइके शर्मा, कोऑडिनेटर, बीएड एडमिशन, ख्0क्भ्

ख्9 मार्च, ख्0क्भ्

पीसीएस का पेपर आउट

परीक्षा के लिहाज से यूपीएससी देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्था में शुमार है। लेकिन यूपी पीसीएस की परीक्षा से ठीक पहले पर्चा लीक ने सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी। संडे ख्9 मार्च, ख्0क्भ् को सुबह नौ से परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले पेपर बाजार में आ गया.पेपर लीक होने के बाद इस रद्द कर दिया गया। पेपर राजधानी के ही आलमबाग के आदर्श भारतीय विद्यालय (एबीवी) से आउट हुआ था। ये पेपर लीक सेंटर्स मैनेजर के बेटे ने ही किया था। पेपर को पांच-पांच लाख रुपये में बेचा गया था।

क्फ् जुलाई, ख्0क्ब्

रेलवे का पेपर लीक

लखनऊ में रेलवे भर्ती बोर्ड का पेपर परीक्षा से लगभग एक घंटे पहले लीक हो गया था। इसके बाद यूपी में आनन-फानन में इस परीक्षा को रद्द कर दिया गया, जबकि बाकी जगहों पर यह पेपर आयोजित कराया गया था। लखनऊ एसटीएफ ने पेपर लीक करने के मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया था। यह परीक्षा पश्चिम बंगाल में लोको पायलट के लिए आयोजित की गई थी। परीक्षा शुरू होने से एक घंटे पहले पेपर लीक हो गया। इस पेपर को लेकर कराने के लिए गिरोह ने हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया था। आलम यह कि पकड़े गए कैडीडेट्स के बालों में ब्लू टूथ मिले थे। जिससे उन्हें आसंर की मुहैया कराई गई थी।

क् जून, ख्0क्भ्

यूपीटीयू सेमेस्टर एग्जाम का पेपर बाहर

यूपीटीयू के बीटेक सेकंड सेमेस्टर के अनिवार्य विषय प्रोफेशनल कम्यूनिकेशन का पेपर लीक हुआ। सुबह साढ़े नौ बजे से शुरू होना था। पेपर शुरू होने से पहले ही लीक पेपर को यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर प्रो। ओंकार सिंह के पास ईमेल के माध्यम से भेजा गया। जिसके बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने लीक पेपर के स्थान पर दूसरे सेट का पेपर सभी एग्जाम सेंटर्स पर मुहैया कराया गया। इससे पहले बीते शुक्रवार को आयोजित हुए बीटेक सेकेंड सेमेस्टर के इंजीनियरिंग फिजिक्स का पेपर आउट होने का मामला प्रकाश में आया था। हालांकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस पूरे मामले को अफवाह बताते हुए इसे अपना पल्ला झाड़ लिया था। मामले में यूनिवर्सिटी ने पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के साथ तीन सदस्यीय जांच टीम बना दी है।

ख्भ् मई, ख्0क्भ्

सीपीएमटी का पेपर लीक

मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए होने वाले कॉमन प्री मेडिकल टेस्ट सीपीएमटी को पेपर भी बीते मंथ ख्भ् मई को लीक हो गया था। मामले में एसटीफ ने पेपर सॉल्व कर सर्कुलेट करने की कोशिश कर रहे क्ख् लोगों को अरेस्ट किया था। पेपर सॉल्व करने वाले गैंग में पकड़े गए लोगों में केजीएमयू से फाइनल इयर की पढ़ाई करने वाले मेडिकोज भी शामिल थे। इसके अलावा, कानपुर मेडिकल कॉलेज के डॉ। अंशुमान मिश्रा भी इस गैंग के साथ पकड़े गए थे। इस गैंग ने पेपर लीक कराकर इसे क्भ् लाख रुपए में बेचने का सौदा किया था। मामले की जांच एसटीएफ के पास है।