जरूरी 50 सांसदों ने हस्ताक्षर भी कर दिए

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए मंगलवार की देर रात तक जरूरी 50 सांसदों ने हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, राकांपा के शरद पवार, वंदना चव्हाण, प्रफुल्ल पटेल समेत कई नेताओं ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। ऐसे में अब इस मामले में एक-दो दिनों में ही राज्यसभा में नोटिस दिया जा सकता है। दीपक मिश्रा पहले न्यायाधीश नहीं होंगे जिनके खिलाफ ऐसा प्रस्ताव आएगा। इनसे पहले दो न्यायाधीश कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन और पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी ऐसे प्रस्ताव आ चुके हैं।

कांग्रेस की ओर से इसकी शुरुआत की गई

बतादें कि जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की बात अचानक नहीं है। इसकी मांग पिछले कई दिनों से चल रही है। हाल ही में बीती जनवरी जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों जस्टिस जे.चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ ने उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। उस समय वामदल ने इसकी मांग की थी। वहीं अब पिछले दो-तीन दिनों में संसद के अंदर विपक्ष ने इसे धार दी है। बताते हैं कि कांग्रेस की ओर से इसकी शुरुआत की गई ताकि दूसरे दल भी इसका समर्थन करें। वकील प्रशांत भूषण ने इसका एक ड्राफ्ट तैयार किया सूत्रों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस को भी इसमें साथ जोड़ने की कोशिश हुई।

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दीपक मिश्रा अक्टूबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं

हालांकि उसकी ओर से हस्ताक्षर किए जानें की पुष्टि नहीं हुई। मंगलवार को ममता बनर्जी ने दिल्ली में कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मुलाकात की थी। इसमें इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई थी। इस कथित ड्राफ्ट में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ पांच आरोप लगाए गए हैं। दीपक मिश्रा पर प्रशासनिक अधिकारों के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया जा रहा है। यह भी आरोप है कि उन्होंने वांछित फैसले के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील कुछ मामलों की सुनवाई खास जजों को सौंपी है। मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली पीठ अयोध्या विवाद जैसे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रही है। दीपक मिश्रा अक्टूबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

ऐसे होता है महाभियोग और हटता चीफ जस्टिस

देश के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के किसी जज को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही होता है। वह भी संसद से अनुरोध मिलने के बाद ही हटा सकते हैं। वहीं महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों का हस्ताक्षर जरूरी होता है। प्रस्ताव पारित होने के बाद पीठासीन अधिकारी की ओर से तीन जजों की समिति गठित होती है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक कानूनविद् शामिल होता है। समिति आरोपों की जांच करती है और आरोप साबित होने पर सदन में प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति उसे पद से हटा देते हैं।जानिए उत्तर प्रदेश विधानसभा में पास यूपीकोका की खास बातेंविधानसभा चुनाव: कर्नाटक में आचार संहिता लागू , 12 मई को मतदान और 15 मई को आएंगे परिणाम

 

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