200 छोटे-बड़े कारखाने हैं शहर में आलमारी, बक्सा और कूलर बनाने के

3,000 के करीब दुकानदार हैं आलमारी, बक्सा और कूलर के बिजनेस से जुड़े हुए

500 रुपए तक एक कूलर बनाने की मजदूरी दी जाती है कारीगरों को

550 रुपया 24 गेज की हल्की आलमारी बनाने का मेहनताना दिया जाता है एक कारीगर को

1,000 रुपया 20 गेज की चादर वाली भारी आलमारी का मेहनताना दिया जाता है कारीगरों को

02 कारीगर लगते हैं एक आलमारी बनाने के प्रॉसेस में

150 से 300 रुपया दी जाती है बक्सा बनाने का मेहनताना

-10 करोड़ रुपए तक का लॉस, करीब 15 हजार लोगों का छिन गया काम

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PRAYAGRAJ: लॉकडाउन में प्रयागराज की बड़ी इंडस्ट्रीज तो ट्रैक पर आने लगी हैं। लेकिन छोटी इंडस्ट्रीज के सामने अभी भी संकट है। यह वो छोटी इंडस्ट्रीज हैं, जिनके दम पर हजारों लोगों का घर चलाती हैं। ऐसी ही स्माल इंडस्ट्रीज में से एक है आलमारी, बक्सा और कूलर की बॉडी बनाने वाले कारखाने। इनकी संख्या शहर में काफी ज्यादा है। इससे दसियों हजार परिवार जुड़े हुए हैं।

होली से पहले तैयार हो जाता है स्टॉक

शहर में कूलर, आलमारी और ट्रॉली बैग का बड़ा बाजारा है। ब्रांडेड के साथ-साथ लोकल लेवल पर इनकी काफी पूछ है। शादियों के सीजन और गर्मी के लिए शहर में मार्च से ही कूलर की बॉडी बनाने का काम शुरू हो जाता है। इसके लिए जनवरी से ही लोहे और एल्यूमिनियम की चादर, दूसरे हार्डवेयर और सामान खरीद लिए जाते हैं। इस साल भी इस बिजनेस से जुड़े लोगों ने होली से पहले शादी-विवाह के साथ ही गर्मी के लिए स्टॉक तैयार कर लिया था। होली के बाद ही कूलर की बिक्री होती है। लेकिन इसके बाद ही लॉकडाउन लग गया, जिससे स्टॉक धरा का धरा रह गया।

प्रॉफिट तो दूर, पूंजी फंसी है

इस सिचएुशन में मजदूरों व कारीगरों को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है। वह बक्सा, आलमारी और कूलर बनाने की अपनी मजदूरी मांग रहे हैं। लेकिन कारोबारी उन्हें मजदूरी और कारीगरी नहीं दे पा रहे हैं। क्योंकि पूंजी तो रॉ मैटेरियल में फंस चुका है, लाखों रुपये का स्टॉक दुकान व गोदाम में पड़ा है। अब मेहनताना कहां से देंग।

इन इलाकों में है छोटे-बड़े कारखाने

-हटिया, बहादुरगंज, नुरुल्लाह रोड, अटाला, रोशनबाग, कटरा, तेलियरगंज।

कानपुर से आती है लोहे की चादर

बिहार और पंजाब, झारखंड से लोहे की चादरें कानपुर आती हैं, जो वहां कटने के बाद प्रयागराज लाई जाती हैं। प्रयागराज में मुट्ठीगंज, हटिया में कई बड़े-बड़े व्यापारी हैं जो लोहे की चादरें बेचते हैं। कुछ व्यापारी कानपुर से डायरेक्ट मंगाते हैं।

जो आलमारी, बक्सा व कूलर बनाते थे, वो इस समय दर-दर भटक रहे हैं। हॉट पॉट में चाय लेकर बेच रहे हैं, पान बेच रहे हैं या फिर सब्जी का ठेला लगा रहे हैं। मजदूरों व कारीगरों की स्थिति बदतर है।

-इरशाद उल्ला

कारखाने के मालिक

एवं व्यापारी नेता

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से काफी नुकसान हुआ है। इनकम की बात तो बहुत दूर की रही है, यहां तो पूरी की पूरी पूंजी ही फंस गई है।

-सैफुल्ला

कूलर, बक्सा के कारोबारी

इस मौसम में तो कूलर की लूट मची रहती है। कारीगरों के पास कूलर की बॉडी बनाने का समय ही नहीं रहता है। लेकिन इस बार कस्टमर ही नहीं है।

-सोनू

व्यापारी, हटिया

शादियों के सीजन से आलमारी, बक्सा व कूलर की डिमांड बढ़ जाती है। हजारों कूलर की बॉडी बन कर गोदामों में तैयार है, लेकिन बेचें तो फिर बेचें कैसे।

-लईक अंसारी

आलमारी, बक्सा व कूलर कारोबारी