बोस्टन (पीटीआई)। अमेरिका में हाल ही में हुई एक रिसर्च में दावा किया गया है कि ऐसे सभी लोग जो कि बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण वाले इलाकों में रहते हैं, अगर वो Coronavirus से संक्रमित हो जाएं तो उन पर खतरा सबसे ज्यादा है और ऐसे मामलों में मृत्यु दर बहुत ज्यादा होने की संभावना है। यह रिसर्च सीधे तौर पर वायु में मौजूद (fine particulate matter) महीन कणों (PM2.5) के संपर्क में लंबे समय तक रहने वालों पर कोरोना के दुष्प्रभाव से जुड़ी है। बता दें कि वायु प्रदूषण के ये महीन कण आमतौर पर ईंधन के जलने से हवा में शामिल होते हैं। खासतौर पर कारों, रिफाइनरी और पावर प्लांट्स में चलने वाले कंबशन इंजन इस तरह के महीन वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
वायु प्रदूषण और Covid-19 के बीच क्या है कनेक्शन
हावर्ड TH Chan स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने बताया है कि अमेरिका में इस तरह के वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों पर कोरोना के असर का इस रिसर्च में अध्ययन किया गया है। बता दें, अभी तक पब्लिश नहीं हुई यह रिपोर्ट बताती है, पूरे अमेरिका में तकरीबन 3000 काउंटीज यानि क्षेत्रों में अलग-अलग लेवल के एयर पॉल्यूशन और उन इलाकों में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या के विश्लेषण के आधार पर कई चौंकानें वाली बातें सामने आई हैं।
रिसर्च में पुरानी बीमारियों के असर को भी किया गया शामिल
इस रिसर्च में हर इलाके की पॉपुलेशन साइज, वहां मौजूद हॉस्पिटल बेड, उस क्षेत्र में कोरोना के लिए गए टेस्ट की संख्या, वहां की जलवायु और तमाम socio-economic फैक्टर्स जैसे मोटापा और स्मोकिंग करने जैसे तथ्यों को भी शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में शामिल किया है। इन सब के आधार पर यह बात सामने आई है कि वायुमंडल में मौजूद प्रदूषण के महीन कणों के संपर्क में लंबे समय तक रहने वालों के मामले में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफी ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर शोधकर्ताओं ने बताया कि कोई व्यक्ति जो कि 1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर वाले कम प्रदूषित क्षेत्र में रहता है तो उसकी तुलना में जो व्यक्ति 2.5 पीएम के हाई लेवल वायु प्रदूषण वाले इलाके में कई दशक से रह रहा है, उसे कोरोना होने पर उसकी मौत की संभावना 15% बढ़ जाती है।
वायु प्रदूषण के बीच लंबा वक्त बिताना कोरोना के मामले में है 20 गुना अधिक घातक
बता दें कि रिसर्च में में तो भी तथ्य सामने आए हैं, वो 2.5 महीन पार्टिकल्स वाले वायु प्रदूषण और कोरोना से होने वाली मौतों के संदर्भ में दिल की पुरानी बीमारी और सांस की बीमारियों को ध्यान में रखकर निकाले गए हैं। पूरी रिसर्च कहती है कि हाई लेवल वाले महीन वायु प्रदूषण के सम्पर्क में लंबे समय तक रहने के फैक्टर में थोड़ी सी वृद्धि कोरोना से मौत के प्रतिशत में जबरदस्त इजाफा करती है। यह वृद्धि सामान्य मृत्यु की तुलना में 20 गुना तक ज्यादा हो सकती है। इस रिसर्च से आने वाले परिणाम इस बात के महत्व को साबित करते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान और उसके बाद भी लोगों की सेहत को बचाए रखने के लिए मौजूदा वायु प्रदूषण के कानून और नियमों को लागू करते रहने की जरूरत है।
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