टोक्यो (एएफपी)। कोरोना महमारी के चलते जापान के टोक्यो में ओलंपिक का रद होना बताता है कि, इस शहर का खेलों के महाकुंभ से कुछ अलग ही कनेक्शन है। इससे पहले 1940 ओलंपिक की मेजबानी भी टोक्यो को मिली थी, मगर अंतिम समय में इसे स्थानांतरित कर दिया गया था। उस वक्त टोक्यो से ओलंपिक मेजबानी छीनने की वजह विश्व युद्घ थी। लेखक डेविड गोल्डब्लेट ने ओलंपिक पर एक किताब लिखी है जिसका नाम है 'द गेम्स', इसके मुताबिक साल 1923 में जापान में भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी, जैसे-तैसे देश संभला और अगले कुछ सालों में 1940 ओलंपिक मेजबानी के लिए तैयार हो गया। इसे बदकिस्मती ही कहेंगे कि बाद में ये आयोजन न हो सका। ठीक ऐसी ही परिस्थिति इस बार भी है, 2011 में जापान ने भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को झेला, उसके बावजूद 2020 में ओलंपिक मेजबानी के लिए खड़ा हुआ। मगर इस बार खेलों का यह महाकुंभ महामारी के चलते स्थगित हो गया।

ऐसे मिला जापान को अधिकार

टोक्यो की 1940 ओलंपिक बोली में जूडो और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के पहले जापानी सदस्य, संस्थापक, जिगोरो कानो ने भाग लिया, जिन्होंने पहली बार खेलों को एशिया में लाने के महत्व पर जोर दिया। कानो ने आईओसी को अपनी याचिका में कहा, "मैं गंभीर रूप से संकल्प लेता हूं। ओलंपिक स्वाभाविक रूप से जापान में आना चाहिए। अगर वे नहीं करते हैं, तो यह अन्याय होगा।' खैर इस बोली में टोक्यो के सामने हेलिंस्की ने भी अपना दावा किया, मगर आखिर में बोली जापान के पक्ष में रही और उन्हें मेजबानी का अधिकार मिला।

दुनिया से लड़ा जापान

बोली लगाने से पहले जापान ने 1931 में मंचूरिया के चीनी प्रांत पर आक्रमण किया और दो साल बाद राष्ट्र संघ से अपना नाम वापस ले लिया था। न्यूयॉर्क के फोर्डहम विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर, असातो इकेदा के अनुसार, जिन्होंने 1940 के खेलों के काफी जानकार है, उनके मुताबिक जापान का इस ओलंपिक बोली में हिस्सा लेना अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को किनारे करने का एक प्रयास था। इकेदा ने एशिया-पैसिफिक जर्नल के एक निबंध में लिखा, जापान की बोली "पश्चिमी लोकतांत्रिक राष्ट्रों, विशेष रूप से ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को संशोधित करने के लिए अपनी अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा थी।" खैर मेजबानी मिलने के बाद खेलों की तैयारियां होने लगी। एक शेड्यूल तैयार किया गया और पोस्टर छपवाए गए। उद्घाटन समारोह 21 सितंबर, 1940 को निर्धारित किया गया था। हालाँकि कुछ लोग संशय में थे, उनके मन में सवाल था कि क्या सम्राट खेलों के आयोजन की अनुमति देगा क्योंकि जापानी तब उसे पूर्ण सरकार का दर्जा नहीं देते थे।

फिर भी छीन गई मेजबानी

जापान पर बाहर से कूटनीतिक दबाव बढ़ता गया, देश के अंदर नकदी को सैन्य उद्देश्यों के लिए डायवर्ट करने की होड़ बढ़ती गई। तब जापानी राजनयिकों ने टोक्यो में चिंता व्यक्त की कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसी शक्तियां जापान की युद्ध जैसी गतिविधि पर खेलों का बहिष्कार कर सकती हैं। फिर भी, 2020 ओलंपिक की तरह उस वक्त भी टोक्यो ओलंपिक के आयोजन पर अड़ा रहा। मगर आयोजन से ठीक पहले जापान और चीन के बीच युद्घ शुरु हो गया और अंत में ओलंपिक को टोक्यो से हेलिंस्की स्थानांतरित करना पड़ा।