1. आपकी राय में इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या है?

करप्शन- 59 फीसदी, महंगाई- 22 फीसदी, बेरोजगारी- 17 फीसदी, पता नहीं- 2 फीसदी

इस सवाल के जवाब में यंगिस्तान की तरफ से एकसुर में जो आवाज आई, उसे सुनकर आप चौंक जाएंगे. यूथ इश्यूज की बात करें तो पहली नजर में एजुकेशन और इंप्लायमेंट जैसे मुद्दे ही हमारे सामने आते हैं, लेकिन यूपी के यूथ के एजेंडे में एक समस्या इन सबसे बड़ी है और वह है- करप्शन. हमारे सर्वे में पार्टिसिपेट करने वाले आधे से काफी ज्यादा यूथ यानी 59 फीसदी ने कहा कि करप्शन को इस इलेक्शन में वह सबसे बड़ा इश्यू मानते हैं. अगर इसे लार्जर पर्सपेक्टिव में देखें तो यूथ यह मानते हैं कि करप्शन हमारी सोसायटी में सारी बीमारियों की जड़ है. अगर ये खत्म हो गया, तो आधी से ज्यादा दूसरी समस्याएं भी उसी के साख खत्म हो जाएंगी.

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जिस बेरोजगारी को यूथ की सबसे बड़ी प्रॉबल्म माना जाता है, उसे यूथ ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी और यूथ की नजर में यह तीसरा बड़ा मुद्दा रहा. सिर्फ 17 फीसदी यूथ ने इसे इलेक्शन में बड़ा मुद्दा माना. दूसरे नंबर पर रही महंगाई, जिसके फेवर में 22 फीसदी यूथ ने अपना ओपिनियन दिया. यह देखना दिलचस्प है कि करप्शन के बाद महंगाई हमारे यूथ को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है. सिर्फ 2 फीसदी यूथ इनमें से किसी को बड़ा मुद्दा नहीं मानते.

2. इस इलेक्शन में आपकी पसंद कैसे कैंडिडेट हैं?

नैशनल पार्टी के कैंडिडेट- 32 फीसदी

रीजनल पार्टी के कैंडिडेट- 13 फीसदी

कोई भी अच्छा इंडिपेंडेंट कैंडिडेट- 48

पता नहीं- 7 फीसदी

इस सवाल के जवाब में यूथ ने जो कहा, वो किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के कान खड़े करने के लिए काफी हैं. डेमोक्रेसी में अब तक ये कहा जाता रहा है कि एक बड़ी आबादी पार्टी को देखकर वोट करती है, कैंडिडेट को देखकर नहीं. लेकिन यूपी के यूथ ने इस बात को पूरी तरह झुठला दिया है. करीब-करीब आधे यूथ मतलब 48 फीसदी ने कहा कि वो किसी नैशनल या रीजनल पार्टी को देखकर वोट नहीं करने जा रहे. इसकी बजाय वो किसी भी अच्छे इंडिपेंडेंट कैंडिडेट को वोट करेंगे.

संकेत साफ हैं. पार्टी और कास्ट लाइन में बंटी यूपी की पॉलिटिक्स में यहां के यूथ विश्वास नहीं करते. उनका वोट तो काम करने वाले किसी भी अच्छे कैंडिडेट के फेवर में जाएगा. दूसरी चौंकाने वाली चीज यह रही कि लोकल मुद्दों पर होने वाले स्टेट असेंबली इलेक्शन में भी यूथ रीजनल पार्टीज की बजाय नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट को ज्यादा तवज्जो देते हैैं. ये हाल तब है, जब राज्य में बीएसपी और एसपी जैसी रीजनल पार्टीज मजबूत स्थिति में हैं. ढाई गुना से ज्यादा यूथ ने रीजनल पार्टी की बजाय नैशनल पार्टी के कैंडिडेट को चुनने की इच्छा जताई. जहां 32 फीसदी यूथ नैशनल पाटीर्ज के फेवर में दिखे, वहीं महज 13 फीसदी यूथ ने रीजनल पार्टीज को चुना. सिर्फ 7 फीसदी अनडिसाइडेड थे.

3. क्या उम्रदराज कैंडिडेट्स की तुलना में आप यंग कैंडिडेट को चुनना पसंद करेंगे?

हां- 74 फीसदी

नहीं- 34 फीसदी

कह नहीं सकते- 6

इससे फर्क नहीं पड़ता-15

कहते हैं पॉलिटिक्स में आप जितने पके चावल हैैं यानी आपके पास जितना ज्यादा तजुर्बा है, आपकी कद्र उतनी ही ज्यादा है. लेकिन यंगिस्तान अब चेंज लाने के मूड में है. हमारे सर्वे में करीब तीन चौथाई यूथ ने कहा कि वे पुराने उम्रदराज कैंडिडेट की बजाय यंग कैंडिडेट को चुनना पसंद करेंगे. लगभग इतनी ही तादाद में फस्र्ट टाइम वोटर्स ने भी यंग कैंडिडेट के फेवर में अपनी राय दिखाई थी. नतीजे इशारा कर रहे हैं कि सिर्फ हाईकमान लेवल पर एक-दो यंग फेस दिखाने से पॉलिटिकल पार्टीज का काम नहीं चलने वाला. अगर उन्हें यंगिस्तान का साथ चाहिए, तो ज्यादा से ज्यादा यंग कैंडिडेट्स को टिकट देना होगा.

हालांकि 15 फीसदी की एक ठीक-ठाक तादाद ने कहा कि इलेक्शन में सिर्फ यंग कैंडिडेट खड़ा करने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. जाहिर है, ये वो तबका है जो पुराने कैंडिडेट्स के कामकाज के बेसिस पर उन्हें भी वोट करने को तैयार हैं. अगर इस रिजल्ट को कम्प्लीट पिक्चर में देखें तो यह बात सामने आती है कि कैंडिडेट का यंग फेस यंगिस्तान को भाता है और पुराने कैंडिडेट्स को काम करना पड़ेगा, सिर्फ वादों से उनका काम अब नहीं चलने वाला.

4. क्या आपके अपने एरिया के कैंडिडेट्स के बारे में सारी डिटेल्स पता हैं?

हां- 42 फीसदी

नहीं- 28 फीसदी

पता नहीं यह जानकारी कहां से मिलेगी- 30

चूंकि इस इलेक्शन में यूथ वोट का स्विंग किसी भी सीट के नतीजे में ड्रामाटिक फेरबदल कर सकता है, सो ऊपर पूछे गए सवाल के जवाब में यूथ ने जो कहा वो पॉलिटिकल पार्टीज को अपनी स्ट्रैटजी पर सोचने को जरूर मजबूर कर देगा. एक तिहाई

यूथ ने यह लाचारी जताई कि उन्हें अपने एरिया के कैंडिडेट के बारे में जानना तो है, लेकिन इसे कैसे जानें, उस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं. जाहिर है इंटरनेट और हाईटेक गैजेट्स का यूज करने वाले यूथ जब ऐसी बात करते हैं, तो इलेक्शन लड़ रहे कैंडिडेट्स के यह सोचना पड़ेगा कि उनके कम्यूनिकेशन स्ट्रैटजी में कहां कमी रह गई, जो यूथ इंटरनेट पर उनके सोशल नेटवर्किंग प्रोफाइल, पेज या पार्टी की वेबसाइट के बारे में ज्यादा नहीं जानते.

इन यूथ को ये भी पता नहीं कि इंटरनेट के  अलावा और कहां से वो कैंडिडेट्स के बारे में फुल डिटेल्स पता कर सकते हैं. हालांकि एक तिहाई से ज्यादा यूथ यानी 42 फीसदी ने यह माना कि उन्हें डिटेल्स पता हैं. लेकिन जिन एक तिहाई को डिटेल्स पता नहीं है, उनका वोटिंग पैटर्न कोई बड़ा गुल खिला सकता है.

5. कैंडिडेट्स की डिटेल पता करने का सबसे आसान तरीका क्या है?

इंटरनेट सर्च इंजन- 18 फीसदी

पॉलिटिकल पार्टी-कैंडिडेट की वेवसाइट या फेसबुक पेज-10

मीडिया के माध्यम से-45

एक-दूसरे से सुनकर-24

पता नहीं- 19 फीसदी

इस सवाल के जवाब में हैरान करने वाली बात यह रही कि इंटरनेट से हर तरह की इन्फार्मेशन जुटाने वाला यूथ जब कैंडिडेट की  डिटेल्स जानना चाहता है, तो उसका एक बड़ा तबका मीडिया पर डिपेंडेंट हो जाता है. आधे से थोड़ा कम यानी 45 फीसदी यूथ ने कहा कि इस बारे में मीडिया ही उनके आंख-कान हैं. संकेत साफ हैैं. इलेक्शन में मीडिया का रोल और ज्यादा जिम्मेदार हो जाता है ताकि वो वोटर्स को एजुकेट और इन्फॉर्म करने के लिए सही इन्फॉर्मेशन उन तक पहुंचाए. जिस तरह यंगिस्तान ने मीडिया को इन्फॉर्मेशन जानने का सबसे बड़ा जरिया माना है, उससे साफ है कि मीडिया चाहे तो किसी की भी इमेज बना या बिगाड़ सकता है.

यूथ की दूसरी पसंद वर्ड ऑफ माउथ रहा यानी वो यार-दोस्तों-लोगों से सुनकर भी अपनी राय बनाता है. इसलिए ‘बदनाम हुआ तो क्या नाम न हुआ’ वाली कहावत यहां नहीं चलेगी क्योंकि अगर पब्लिक ने किसी कैंडिडेट के बारे में खराब बातें कहनी शुरू कर दीं तो करीब एक चौथाई यूथ वोटर्स यानी 24 फीसदी का ओपिनियन उसी के अनुसार बन सकता है.

सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी निकलकर आई कि लगभग दोगुने यूथ (18 फीसदी) कैंडिडेट या पार्टी की वेबसाइट पर जाने की बजाय इंटरनेट सर्च इंजन का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करेंगे ताकि उन्हें अलग-अलग वेबसाइट्स से कैंडिडेट के बारे में ऑब्जेक्टिव इन्फॉर्मेशन मिल सके. उन्हें पता है कि कैंडिडेट या पार्टी की वेबसाइट पर उनके बारे में सिर्फ अच्छी-अच्छी बातें ही लिखी मिलेंगी. सिर्फ 10 फीसदी यूथ ने कैंडिडेट या पार्टी की वेबसाइट पर जाने की इच्छा जताई.

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