-घर की चहारदीवारी में अपने कर रहे अपनों का कत्ल

-इच्छाओं की पूर्ति के लिए रिश्तों के मायने तक नहीं समझ रहे

केस-वन

चेतगंज थाना के सेनपुरा में 21 जुलाई की रात रूपा ने प्रेमी संग मिलकर अपने पति संतोष चौरसिया की हत्या कर दी। सात जन्मों के रिश्ते को कलंकित करते हुए तीन बच्चों की मां ने परिवार और समाज की चिंता किए बगैर यह खौफनाक कदम उठाया और अब सलाखों के पीछे है।

केस-टू

सिगरा के सिंधु नगर कालोनी में 26 जुलाई की रात बेटे ने पिता की गला दबाकर हत्या कर दी। आरोपित पुत्र नरेश मौर्य ने पिता मुन्नीलाल मौर्य से रुपये मांगे थे। इनकार करने पर वह आगबबुला हो गया और पिता पर जानलेवा हमला कर दिया। पुलिस ने आरोपति बेटे को गिरफ्तार कर लिया है।

केस-थ्री

लोहता थाना के कोटवां में 26 जुलाई की रात बुनकर पति ने अपनी पत्‍‌नी की चाकू गोदकर हत्या कर दी। छह माह की बच्ची के लिए दूध की मांग कर रही पत्‍‌नी की निर्मम हत्या करने के बाद आरोपी पति गुलजार फरार हो गया। पुलिस उसकी तलाश कर रही है।

खून के रिश्तों का खून बह रहा है। ये तीन बता रहे हैं कि जिनके बीच प्यार पनपता है उनमें ही नफरत की तलवार चल रही है। कोई बेटा नशे के लिए रुपये नहीं मिलने पर पिता की हत्या कर दे रहा है। पत्‍‌नी प्रेमी से आंखे चार होने पर सुहाग की बलि चढ़ा दे रही है। कोई पति इतना क्रूर हो गया है कि पत्‍ि‌न या बच्चों द्वारा दूध-खाना की मांग पर पत्‍ि‌न की चाकू गोदकर हत्या कर दे रहे हैं। घर की चहारदीवारी में पनप रहे इस अपराध ने पुलिस के माथे पर भी बल ला दिया है। समझ नहीं आ रहा कि सड़कों पर घूमने वाले अपराधियों पर तो लगाम लगा सकते हैं लेकिन एक भरे-पूरे परिवार में मौजूद अपराधी की पहचान कैसे करे।

एकल परिवार में हिंसा ज्यादा

रिश्तों के बीच हो रही हिंसा में एक बात साफ दिख रही है कि ऐसे ज्यादातर अपराध एकल परिवार में ही हो रहे हैं। मनोचिकित्सक मानते है कि पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे। एक साथ रहना लोग पसंद करते थे, आज परिवार टूट रहे हैं। अब एकल परिवार की संख्या बढ़ रही है। व्यक्ति की इच्छाएं बढ़ती जा रही हैं। कोई किसी तरह से संतुष्ट नहीं हो रहा है, अधिक के लालच में लोग गलत कदम उठा रहे हैं। यही आजकल के सामाज में देखने को भी मिल रहा है।

आज इंसान छोटी-छोटी बात पर बड़ी टेंशन लेता है। कोई समस्या आती है तो पल भर में उसका निदान चाहता है। जबकि ऐसी स्थिति में संयम और सहनशीलता की जरूरत होती है। मानसिक नियंत्रण हर हाल में जरूरी होता है, लाइफ स्टाइल को ऐसा न बनाएं कि जिंदगी बोझिल होने लगे। कानून के साथ ही सामाजिक व्यवस्था का भी मजबूत होना जरूरी है, तभी परिवारिक हिंसा पर रोक लगेगी।

डॉ। संजय गुप्ता, मनोचिकित्सक

बीएचयू

आज जिंदगी में कुंठा, निराशा और अनिश्चिता ने जगह बना ली है। सिर्फ शारीरिक आवश्यकताओं और स्वार्थ पूर्ति की दौड़ चल रही है। अधिकार हर कोई पाना चाहता है लेकिन कर्तव्यों से विमुख हो रहा है। संयुक्त परिवार का होना बेहद जरूरी है।

डॉ। रविंद्र यादव, मनोचिकित्सक, मंडलीय हॉस्पिटल कबीरचौरा