- बघेल भाषा में दानवीर कर्ण की महिमा का हुआ बखान

- आर्टिस्टों के अभिनय ने पात्रों में लाई जीवंतता

ALLAHABAD: इतिहास में हमेशा से दानवीर कर्ण को दान की सच्ची प्रतिमूर्ति कहा जाता है। अपने इन्हीं कार्यो को लेकर आज भी लोग दानवीर कर्ण की महिमा का बखान करते हैं। संडे को एनसीजेडसीसी ऑडिटोरियम में एक बार फिर कर्ण की दानवीरता का शानदार प्रदर्शन हुआ। कर्णभारम् नाटक के बघेल भाषा में हुई प्रस्तुति ने लोगों को एक नाटक के नए रूप का एहसास कराया। आर्टिस्टों ने अपने अभिनय क्षमता और डायलॉग के शानदार प्रस्तुति से पात्रों में जीवंतता ला दी। जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

बिना सोचे दे दिया कवच कुंडल

एनसीजेडसीसी में नाटक के मंचन के दौरान महाभारत के उस प्रसंग को शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया। जिसमें ब्राम्हण रूप में कवच और कुंडल का दान मांगने पहुंचे इन्द्र को कर्ण ने बिना समय गवांए अपना रक्षा कवच बड़ी ही आसानी से दे दिया। इस प्रसंग को बेहद संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया गया। आर्टिस्टों के डायलॉग अदायगी और संवाद के बीच चल रही म्यूजिक की धुन ने पूरे समय बांधे रखा। नाटक के मंचन के दौरान निर्देशक रोशनी प्रसाद मिश्र द्वारा किए गए कई नए प्रयोग ने मंचन को नया आयाम दिया। जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।