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RANCHI: लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने ही वाला है। राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम लोग भी इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस चुनाव में कौन-कौन मुद्दे हावी रहेंगे, इसे लेकर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से मिलेनियल्स स्पीक जेनरल इलेक्शन-2019 चलाया जा रहा है। इस सिलसिले में सोमवार को 'राजनी-टी' का कारवां कचहरी स्थित दीदी कॉफी डे पहुंचा जहां एम्पावर झारखंड के मेंबर्स ने देश के आर्थिक विकास की रफ्तार पर रखी बेबाक राय।

रिमोट एरियाज तक पहुंचे विकास
एम्पावर झारखंड के सभी युवा सदस्यों ने रिमोट एरियाज में रहने वाले किसान, गरीब और जरुरतमंदो के लिए विकास की बात कही। गांव का विकास होगा और ग्रामीणों की इन्कम बढ़ेगी तो देश का जीडीपी ग्रोथ भी बढ़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। इसके लिए जरूरी है कि रुरल एरियाज मे इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के साथ बेसिक फैसिलिटीज उपलब्ध कराई जाए।

फंड का नहीं हो रहा सदुपयोग
मिलेनियल्स ने कहा कि सरकार की ओर से शिक्षा और स्वास्थ्य पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, फिर भी लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना नहीं चाहते और सरकारी स्कूलों मे बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं। आखिर ऐसा क्यों? सरकार को इस बात को गंभीरता से समझने की जरूरत है। बेहतर होगा कि सरकारी अस्पतालों व स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर व फैसिलिटीज देने के साथ उसके बेहतर सदुपयोग पर ज्यादा फोकस करना होगा।

अपनी ही मशीनरी पर भरोसा नहीं
देश के आर्थिक विकास के स्तर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मशीनरी पर खुद सरकार के नुमाइंदों का ही विश्वास नहीं है। 130 करोड़ की पापुलेशन वाले हिंदुस्तान में महज 21 प्रतिशत लोगों को ही सरकारी नौकरियां मिल पाती हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि बदलती रहने वाली सरकारों के पास आम लोगों के लिए कितने अवसर हैं।

सतमोला खाओ कुछ भी पचाओ
राजीव कुमार ने कहा कि रोजगार के मौकों से ज्यादा घोटालों की संख्या होती जा रही है। मोमेंटम झारखंड और कौशल विकास महज आश्वासनों का खेल बनकर रह गए हैं। कौशल विकास के तहत लोगों को 10 से 15 हजार की नौकरी का प्रलोभन देकर स्किल्ड करने की बात कही जा रही है जबकि स्किल्ड होने के बाद उन्हें 5 हजार से लेकर 8 हजार तक की नौकरी देकर खानापूर्ति की जा रही है। ऐसे में लोगों की व्यक्तिगत आय कैसे बढ़ेगी, मौके कैसे मिलेंगे और आर्थिक विकास की रफ्तार कैसे तेज होगी।

कड़क मुद्दा
प्रजातंत्र में सरकारें बदलती रही हैं और आगे भी बदलती रहेंगी। जीडीपी, अर्थव्यवस्था की बड़ी -बड़ी डींग हांकने वाले लोग बताएं कि डेवलपिंग स्टेट में लिटरेसी रेट, महिला हिंसा, रुरल अवेयरनेस आदि के क्या हालात हैं। सरकारी से ज्यादा प्राइवेट सेक्टर पर लोगों का भरोसा क्यों बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज होने के बावजूद लोग प्राइवेट हॉस्पिटल में महंगी इलाज कराने के लिए भाग रहे हैं। स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना नही चाहते, ऐसे में अर्थव्यवस्था में सुधार और विकास की बातें बस मन बहलाने का बहाना हैं और कुछ नहीं। इनमें व्यापक सुधार और बदलाव के लिए दूरदर्शिता की जरुरत है।

आकांक्षा

 

मेरी बात
एडम स्मिथ को फादर ऑफ द इकोनॉमिक्स कहा जाता है। उन्होंने कहा था कि देश तभी मजबूत होगा जब वहां रहने वाला व्यक्ति मजबूत होगा। हमारे देश का आधार ही किसान हैं लेकिन वे आत्महत्या कर रहे हैं। उनमें तकनीकि विकास की कमी है, शिक्षा का अभाव है और सबसे ज्यादा घातक उन्हें मिलने वाले लोन की पॉलिसी है। जरुरत है किसानों को मजबूत करने का। कृषि योग्य भूमि को इंडस्ट्रीज के हवाले नहीं करने के साथ मुआवजा व पुनर्वास नीति को बेहतर बनाने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

आदित्य विक्रम जायसवाल (प्रेसिडेंट, एम्पावर झारखंड)

 

आंकड़े बयां करते हैं कि साल 2000 (झारखंड गठन) से लेकर अबतक सैकड़ों बार झारखंड किसी न किसी बंद के बहाने झुलसता रहा। अब जहां 18 साल में एक साल कोई काम ही नहीं हो पाया वहां का आर्थिक विकास कैसे तेज हो पाएगा। हमारे देश में 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल मुद्रा का 90 प्रतिशत भाग है, जबकि 90 प्रतिशत लोगों के पास कुल मुद्रा का मात्र 10 प्रतिशत हिस्सा है जिससे जीवन यापन करना है। हमें चुनाव करना होगा कि सात्त में आने वाले नेताओं में लोगों को जागरुक करने, लोगों के प्रति संवेदनशीलता रखने जैसी क्वालिटी है भी या नहीं। वह लोग जनता के साथ जुड़ाव में हैं या केवल सत्ता हासिल करने के फिराक में.
राकेश

 

साल 2015 में देश की जीडीपी जहां 8.1 प्रतिशत थी वहीं अब यह करीब करीब 7.36 है। माना जा रहा है कि वर्ष 2018.19 में यह फिर से बढ†ाकर 8.1 हो सकती है लेकिन यह अभी केवल कयास ही कहा जा सकता है। गरीबी, भूख , इंडस्ट्रीज के साथ साथ लाइफ ऑफ लैंड और लाइफ ऑफ वाटर दो महत्वपूर्ण पैरामीटर हैं जिनपर काम ही नहीं होता है। 60 से 80 प्रतिशत लोगों का शैक्षणिक स्तर सवालों के घेरे में है। केवल कागजों पर विकास दर्शाने से देशवासियों को क्या लाभ हो पाएगा।

मिथिलेश

योजनाएं खूब बनती हैं, लेकिन लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती, शिलान्यास होने के बाद फाइलों में घुमती रह जाती हैं। ्रग्रामीण इलाकों में जहां लोग हर दिन अपने पेट की भूख और गंभीर बीमारियों से लड़ने की फिराक में लगे रहते हैं। वहां योजनाओं को लेकर कितनी जागरुकता हो सकती है। और जब लोग जागरुक ही नहीं हैं , योजनाओं का लाभ ले ही नहीं पा रहे हैं तो ऐसे में जीडीपी, पर कैपिटा इनकम और देश के आर्थिक विकास की बात कहां तक संभव है.
अमरप्रीत

 

अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए नोटबंदी औ्र जीएसटी को लागू किया गया। करप्शन पर इसे करारा प्रहार माना जाता है। इस नोटबंदी से जाली नोट से लेकर कैश फ्लो तक को कम किया गया जो आर्थिक विकास के लिए काफी जरुरी है। देश के निचले स्तर पर मौजूद लोगों के विकास के लिए कई योजनाएं बनती हैं लेकिन उसका क्रियान्वयन प्रॉपर वे में नहीं हो पाता है। हम नागरिकों को भी अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरुक होने की जरुरत है। विकास की गति में भागीदार बनने के लिए जरुरी है कि हम अपने कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही अपने इलाके के नेता का चुनाव करें.
शिवांगी

 

देश के आर्थिक विकास के लिए मीडिल क्लास और लोअर क्लास लोगों का विकास जरुरी है। इनके लिए आगामी चुनाव में नेताओं के पास क्या प्लानिंग है और सिस्टम उसे कैसे सपोर्ट करेगा। व्यवस्था अपना काम अपनी गति से करती है, लेकिन यह जरुरी है कि देशवासी भी अपने हिस्से की ईमानदारी रखें। हमलोग हर चुनाव में छले जाते रहे हैं। देश की आबादी के 50 प्रतिशत से भी कम लोग अपनी भागीदारी सही तरीके से निभा पाते हैं.लोगों का विकास होगा तभी देश का विकास संभव है।

शालिनी

 

चुनाव से पहले तो दरवाजे पर आकर हर नेता बड़े-बड़े वादे करता है लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई भी उसे निभाता नहीं है। विकास की रफ्तार तेज होनी चाहिए, लेकिन यह धीरे धीरे गिरती ही जा रही है। तकनीकी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बन रही हैं लेकिन लोगों तक इन कल्याण योजनाओं को कैसे पहुंचाया जाए इसका कोई पुख्ता रास्ता नहीं दिखता।
श्रीकांत

 

देश के हालात बदल रहे हैं। यूथ धीरे धीरे राजनीति में पांव जमाने लगे हैं। देश का इकोनामिक डेवलपमेंट जिसकी बात हर कोई करता है, लेकिन जिसपर किया गया काम दिखाई ही नहीं पड़ता है। अब यूथ की सहभागिता से बदलाव संभव है। आगामी चुनाव में आर्थिक विकास एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा जिस कसौटी पर परखने के बाद ही वोट दिया जा सकता है.
आयुषी

 

विकास को कागजों से निकलकर धरातल पर लाना होगा। हर सरकार दावा करती है कि आय बढ़ेगी और रोजगार मिलेगा, लेकिन नतीजा सिफर रहता है। जीडीपी रेट बताता है कि आजादी के बाद हमारी स्थिति कैसी रही है और इसमें कितना सुधार आवश्यक है। चुनाव में वोट लेने के लिए नेताओं के पास डेवलपमेंट के सशक्त प्लान होने चाहिए.
मेघा