क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से देवी मंडप स्थित ऑफिसर्स कॉलोनी में राजनी-टी का आयोजन, मिलेनियल्स ने खुलकर रखे विचार मिलेनियल्स स्पीक के तहत सोमवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम देवी मंडप स्थित ऑफिसर्स बैंक कॉलोनी पहुंची. यहां राजनी-टी के तहत एजुकेशन व महंगाई सिस्टम पर युवाओं ने अपनी बात रखी. मिलेनियल्स ने कहा कि एजुकेशन सिस्टम सुदृढ़ करे, महंगाई से जो निजात दिलाएगी उसे ही हमारा समर्थन मिलेगा. शुरुआत रेडियो सिटी की फेमस आरजे सान्वी के सवालों के साथ हुई.

चर्चा में नेहा शर्मा ने कहा कि बेसिक से लेकर हायर एजुकेशन तक के फॉर्मेट में लंबे समय से बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है. वहीं, नीतू गुप्ता ने अपनी बेबाक राय में कहा कि वैल्यू बेस्ड एजुकेशन का होना आज के सिस्टम में जरूरी हो गया है. सरकारी डिपार्टमेंट में काम कर चुके राजेश्वर सिंह कहते हैं, एजुकेशन हो या कोई और डिपार्टमेंट, पूरे सिस्टम में करप्शन फैला हुआ है. उसे मिटाया जाए. मोदी सरकार से देशवासियों को काफी उम्मीदें हैं. इन उम्मीदों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए सरकार ने पहल भी शुरू कर दी है. अपने दस सूत्री एजेंडे में उन्होंने एजुकेशन को भी प्रिऑरिटी दी है.

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मेरी बात

आम जनता महंगाई और असमय मौत का मातम मना रही है. वहीं सरकार जश्न मनाने में व्यस्त है. सरकार पब्लिक से चलती है, लेकिन यहां की सरकार प्रचार तंत्र से चल रही है. अस्पतालों में हो रही बच्चों की मौतें, किसानों की आत्महत्या और जहरीली शराब से हुई मौतों पर सरकार मौन है. कोई भी जीते या कोई भी हारे, जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग कर रही सरकार या विधायक को आम जनता का भी ख्याल रखना होगा.

नीतू गुप्ता

कड़क बात

पेरेंट्स की आकांक्षाएं बढ़ने से प्राइवेट स्कूलों में बच्चों के एडमिशन की होड़ मची रहती है. इसकी वजह है एजुकेशन के मॉडर्न स्टाइल को समय-समय पर एडॉप्ट करते रहना ताकि स्टूडेंट्स को अपटूडेट रख सकें. इसके उलट सरकारी स्कूलों में बेसिक चीजों तक का अभाव है. हफ्ते भर में 4-5 दिन ही टीचर आते हैं और जो आते भी हैं, वे समय पर नहीं आते. यही कारण है कि कोई भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजकर उनका भविष्य खराब नहीं करना चाहता. प्राइवेट में एजुकेशन इतना हावी है कि कुछ कहा भी नहीं जा सकता.

नेहा शर्मा, सतमोला विनर

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सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

लोकसभा चुनाव में सबके अलग-अलग मुद्दे बन सकते हैं. ये इत्तेफाक़ ही था कि आम चुनाव से करीब 2 महीने पहले ही पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकी हमला हुआ और भारतीय जवानों ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक के ज़रिए उसका जवाब भी दिया. इसे भुनाने में पीएम और उनके मंत्रियों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. ये मुद्दा विपक्ष और सत्ता पक्ष के लिए अहम हो सकता है.

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वर्जन

एजुकेशन मतलब सिर्फ किताबी जानकारी होना नहीं है. यह चार तरह का होता है-पर्सनल, प्रोफेशनल, वैल्यू बेस्ड व सोशल. आजकल स्कूलों में प्रोफेशनल एजुकेशन दी जाती है. वैल्यू-बेस्ड और सोशल एजुकेशन आपको एक अच्छा नागरिक बनाता है. एक परफेक्ट सिटीजन के लिए इन चारों तरह की शिक्षा जरूरी है. टीचर्स को इस तरह ट्रेंड करने की जरूरत है कि वह अपने स्टूडेंट्स को सोशल लीडर्स बना सकें, उनका भविष्य निर्माण कर सके.

-आभा देवी

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मैंने सरकारी सरकारी डिपार्टमेंट में किया है. एजुकेशन हो या कोई और डिपार्टमेंट, पूरे सिस्टम में करप्शन फैला हुआ है. सरकार को पहले करप्शन हटाने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से योजनाएं तो अच्छी-अच्छी बनती हैं, लेकिन उनका फायदा आम आदमी नहीं उठा पाता. एजुकेशन के साथ भी यही है. सवाल ये है कि कोई चेक करने वाला होना चाहिए कि जो पैसा गया वो यूज हुआ या नहीं.

राजेश्वर सिंह

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शिक्षा का पूरा दारोमदार एक टीचर पर डिपेंड करता है. हमारे यहां अभी ट्रेंड और एकेडमिक ओरिएंटेड टीचर्स की बहुत कमी है. आज टीचर्स में डेडिकेशन की कमी है. जरूरी है कि एक सिस्टम डेवलप किया जाए, जिसमें टीचर्स को कुछ जिम्मेदारी दी जाए. स्टूडेंट को एक शिक्षित नागरिक बनाने के साथ-साथ इस काबिल भी बनाना कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके, इन सबकी जिम्मेदारी टीचर की होती है.

अनिता

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गवर्नमेंट स्कूलों में आज भी मूलभूत सुविधाओं की काफी कमी है. आज भी बहुत सी लड़कियां स्कूल जाना सिर्फ इसलिए छोड़ देती हैं कि वहां टॉयलेट की फैसिलिटी नहीं होती है. स्कूलों में टीचर्स ऐसे होने चाहिए कि स्टूडेंट्स उन्हें अपना रोल मॉडल समझें. स्कूलों में सुधार के लिए जरूरी है कि टीचर्स पंक्चुअल हों. इसके अलावा सिलेबस में भी हर पांच साल में चेंज जरूरी है.

अंजना

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मेरा अपना मानना है कि देश में शिक्षा की बदतर स्थिति को सुधारने के लिए सिर्फ सरकार के भरोसे रहना ही ठीक नहीं है. इसके लिए कॉरपोरेट कंपनियों और प्राइवेट कॉलेजों/यूनिवर्सिटीज को कम से कम एक गांव में जाकर वहां के स्कूल गोद लेने की पहल करनी चाहिए और उसके संचालन, सुधार और विकास पर आने वाला खर्च खुद उठाना चाहिए.

दिनेश

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कई स्कूलों को गोद ले रखा है. वह कहते हैं, हमने पश्चिमी देशों से वहां का रहन-सहन तो बहुत सीख लिया, पिच्जा-बर्गर खाने से लेकर छोटे कपड़े भी पहनने लगे, लेकिन जिन चीजों को वाकई फॉलो करने की जरूरत है, उन पर कभी ध्यान नहीं दिया, उनमें से एक एजुकेशन सिस्टम भी है. यहां बड़ी-बड़ी कंपनियां और बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने खुलकर सामने आते हैं और सरकारी स्कूलों को अनुदान देते हैं या एडॉप्ट कर लेते हैं. राजधानी में इसे बढ़ावा मिले.

बनीत

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इस समय एजुकेशन सिस्टम असलियत से कोसों दूर है. सिर्फ किताबी ज्ञान दिया जा रहा है, जिसका यूज जॉब में नहीं होता. प्राइवेट कॉलेज या इंस्टीट्यूट्स जॉब ओरिएंटेड कोर्स करा तो रहे हैं, लेकिन उनके द्वारा कराए जाने वाले कोर्सेज के बारे में गांव और छोटे शहरों के स्टू्डेंट्स को पता नहीं चल पाता है और न ही भरोसा हो पाता है. 8वीं-10वीं के बाद ही यह तय हो जाना चाहिए कि स्टूडेंट्स को किस दिशा में बढ़ना है.

इंदु देवी

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एजुकेशन जॉब ओरिएंटेड हो. जब वे किसी कॉलेज में कैंपस सेलेक्शन के लिए जाते हैं, तो यही देखते हैं कि कैंडिडेट कितना कॉन्फिडेंट है और ऑर्गेनाइजेशन को कितना फायदा पहुंचा सकता है. कैंडिडेट का बॉडी लैंग्वेज, उसकी टेक्निकल स्किल्स और एजुकेशन को सेलेक्शन का क्राइटेरिया माना जाता है.

जानकी देवी

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एजुकेशन एक टू-वे प्रॉसेस होता है. टीचर पूरी ईमानदारी और डेडिकेशन के साथ अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. इन दिनों स्टूडेंट्स की ही पढ़ाई में दिलचस्पी कम हो गई है. इसकी एक वजह बोर्ड एग्जाम का डर खत्म होना भी कहा जा सकता है. दसवीं या बारहवीं की बोर्ड परीक्षा के क्वेश्चन पेपर पहले से कहीं ज्यादा सरल हो जाने से बच्चों को नंबर तो काफी अच्छे आ रहे हैं, लेकिन एजुकेशन की क्वालिटी गिर गई है.

नीलम किरण

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बमुश्किल 2 फीसदी पेरेंट्स ही अपने बच्चों की पढ़ाई और उनके प्रोग्रेस को लेकर गंभीर होते हैं. इससे टीचर्स को ही पेरेंट्स की भी भूमिका निभानी पड़ती है. इसके अच्छे नतीजे भी आते हैं. आज रांची के सरकारी स्कूलों के बच्चे भी 90 परसेंट तक मा‌र्क्स ला रहे और इकोनॉमिक्स जैसे सब्जेक्ट्स में ग्रेजुएशन तक कर रहे हैं. ऐसे में जरूरत सिर्फ लोगों के नजरिए में बदलाव लाने की है.

पायल सोनी

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बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए बहुत कोशिशें करनी पड़ती है. तमाम जागरुकता कार्यक्रमों के बावजूद लोगों की यही मानसिकता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़-लिखकर क्या करना है. लोग लड़कियों को घर के काम-काज में ही लगाए रखते हैं. दूसरे कुछ संपन्न घरों के लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते भी हैं, तो इंग्लिश का बोलबाला होने की वजह से इंग्लिश स्कूल में ही एडमिशन कराना प्रीफर करते हैं. इसलिए पूरे सिस्टम को सुधारने की बेहद जरूरत है.

रागिनी देवी

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कई स्कूली बच्चे स्कूलिंग कर कॉलेज नहीं जा पाते, इससे 10 प्रतिशत ग्रेजुएट्स ही अच्छी जॉब के योग्य होते हैं. 75 फीसदी स्टूडेंट्स के पास कॉलेज की फीस जमा करने के पैसे नहीं होते. आजादी से पहले नामी गिरामी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजेस थे. आज कई हजार में उनकी गिनती आ रही है.

राजा

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आज किसी विभाग में कोई काम नहीं हो रहा है, सभी कर्मचारी एवं पदाधिकारी अपने में व्यस्त हैं. जनता के सहयोग से इस बार लोकसभा में लोगों ने ऐसे कैंडिडेट को वोट करने का निर्णय लिया जो करप्शन हटाने, रोजगार बढ़ाने की दिशा में काम करेगा. लोगों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करेगा.

शीला साहू