दारागंज स्थित आश्रम में लगी आग, महंत की मौत

चूल्हे की चिंगारी से भड़की थी आग, महंत के फंसे होने का पता ही नहीं चला

ALLAHABAD: दारागंज के कबीर आश्रम में महंत राम सनेही दास (70) की जीते जी चिता जल गई। शुक्रवार सुबह आश्रम में भड़की ने महंत की जान ले ली। दो घंटे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद आग पर काबू पाया जा सका। इस घटना के बाद से आश्रम में मातम का माहौल पसरा हुआ है। पुलिस का कहना है कि आग एक झोपड़े में चूल्हे की चिंगारी से भड़की थी जिसने भयावह रूप ले लिया था।

सिर्फ एक कमरा ही है पक्का

कबीर आश्रम दारागंज के मोरी गेट के समीप बना हुआ है। इसमें एक कमरा पक्का बना है जबकि बाकी के हिस्से को टिन व छप्पर से ढ़का गया है। आश्रम में कौशांबी के पिपरी के सरैया गांव के महंत राम सनेही दास अपने भाई सीताराम के साथ रहते थे। इस आश्रम में कुल आठ संत रहते थे। गुरुवार सुबह ही कुछ संत कहीं चले गए। आश्रम में रामसनेही, उनके भाई व तीन अन्य महंत ही रह गए थे। शुक्रवार को दिन में 11.30 बजे के आसपास आश्रम के बगल में एक झोपड़ी में आग लग गई। लोग आग बुझा पाते, इससे पहले लपटें आश्रम तक पहुंच गई। चंद मिनट के भीतर ही आश्रम के छप्पर व टीन शेड वाले हिस्से से ऊंची-ऊंची लपटें निकलने लगीं। आपाधापी के बीच रामसनेही को छोड़कर बाकी के संत बाहर भाग गए। फायर ब्रिगेड को भी खबर दी गई। दारागंज पुलिस के साथ ही सहायक अग्निशमन अधिकारी योगेंद्र चौरसिया, फायर फाइटर धर्मेद्र मिश्रा अपनी टीम के साथ पहुंच गए। रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू होने के बाद फायर फाइटर्स में से ही किसी को एक कमरे में महंत का पांव नजर आया। किसी के फंसे होने की आशंका को देखते हुए सबसे पहले उसी कमरे की आग बुझाई गई। कमरे से महंत रामसनेही को निकाला गया और तुरंत एसआरएन हॉस्पिटल भेजवाया गया गया। वहां पर उनको मृत घोषित कर दिया गया। उसकी मौत दम घुटने से हुई थी। आश्रम में ही कुछ और के फंसे होने की आशंका के चलते दमकल की दो और गाडि़यां बुला ली गई। आग पर पूरी तरह काबू पाने में करीब दो घंटे का समय और लग गया। आग से आश्रम में रखा करीब दो लाख रुपए का सामान खाक हो गया।

खाना बन रहा था झोपड़ी में

दारागंज थाने की कार्यवाहक प्रभारी एसआई नीलम राणा का कहना है कि आश्रम के बगल में कई परिवार झोपड़ी बनाकर रहते हैं। एक झोपड़ी में खाना बन रहा था जब आग भड़की। देखते ही देखते आग आश्रम तक पहुंच गई।

दिया होता ध्यान तो न जाती जान

आश्रम में रहने वाले संतों को अगर इस बात का ख्याल होता कि रामसनेही बाहर नहीं आए हैं तो उनको बचाया जा सकता था। आपाधापी में किसी को ख्याल नहीं रहा कि भीतर महंत रह गए हैं। आगे से घिरे महंत बाहर नहीं निकल पाए और धुएं में उनका दम घुट गया। जब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ तो भी किसी ने फायर फाइटर्स को महंत के फंसे होने की जानकारी नहीं दी थी।