-कभी सोन व गंगा का संगम व श्मशान घाट था

PATNA : मंगल तालाब के ईस्ट साइड में दीरापर प्राचीन काली मंदिर है। इन्हें कंकाल काली कहा जाता है। इस स्थान पर गंगा व सोन नदी का संगम था। इसी स्थान पर श्मशान घाट भी था। तब यह तंत्र साधना का बड़ा केंद्र हुआ करता था।

उत्पन्न हुई काली की प्रतिमा

पंडित शशिकांत मिश्र बताते हैं कि यहां काली कंकाली की प्रतिमा न तो बनावटी है और न ही स्थापित, यह अपने-आप उत्पन्न हुई है। बाबा बस्ती राम ने तपोबल से प्रतिमा उत्पन्न किया था। यह स्थान तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र रहा है। पहले यहां अनेक साधक तंत्र साधना को आते थे, मगर समय के साथ यह सब समाप्त हो गया। यहां भगवती काली की प्रतिमा पहली बार देखने पर लगता है जैसे हनुमान का दर्शन कर रहे हों। मगर यह कंकाल काली हैं। इनके दाहिने जया और बाएं विजया मौजूद हैं। प्रतिमा के पैर के दाहिने ओर लक्ष्मी व बायीं ओर सरस्वती हैं। बगल में भैरों नाथ भी विराजित हैं। मंदिर कैंपस में हनुमान व शिवलिंग भी स्थापित है।

चरणों का दर्शन सिर्फ नवरात्र में

शशिकांत बताते हैं कि प्रतिमा के पैरों का दर्शन आश्रि्वन व चैत्र नवरात्र के पांचवीं से नवमी तक होता है। अष्टमी की रात यहां श्मशानी विधि से पूजा होती है। यहां अष्टमी को रात क्0 बजे भगवती का पट आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जाता है। इसके बाद पूजा शुरू होती है। फिर खाजेकलां घाट श्मशान घाट पर पूजा होने के बाद नवमी की मार्निग श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पट खोला जाता है।

जब रूका था शाह आलम का हाथी

मंदिर के पौराणिक होने का प्रमाण इस आधार पर है कि शाह आलम द्वितीय अपने लाव-लश्कर के साथ क्7म्8 में जब इधर से गुजर रहे थे, तो उनका हाथी आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। काफी प्रयास के बाद भी जब हाथी आगे नहीं बढ़ा, तो पता करने पर शाह आलम मंदिर के बाहर से भगवती का स्मरण किया। तब शाह आलम ने एक दोनाली बंदूक, दो तलवार, कुछ लिखित में पूजा को हर माह चढ़ावा देने का फरमान कर आगे बढ़ा। मंदिर में महाराजा नेपाल द्वारा दिया गया अष्टधातु का घंटा आज भी टंगा है। हालांकि चारों ओर से टूटने के कारण यह महज दर्शनीय रह गया है।