- टाई बैक लिफाफों का यूपी सीपीएमटी में हुआ था इस्तेमाल, ओपन हो जाने की कंडीशन में री-सील की नहीं थी व्यवस्था

- वहीं खोलने के बाद 'ओपन' वर्ड हो जाता था हाइलाइट, यूनिवर्सिटी ने इंटरनल एग्जाम में नहीं किया अप्लाई

GORAKHPUR:

डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पेपर लीक होने के बाद यूनिवर्सिटी की छीछालेदर हो रही है। जगह-जगह लोग यूनिवर्सिटी के सिक्योरिटी सिस्टम और व्यवस्था पर उंगली उठा रहे हैं। मगर एक बार सिक्योर लिफाफे का इस्तेमाल करने और उसका इफेक्ट देखने के बाद भी यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन कोई फैसला तो दूर उसका लेकर कोई चर्चा भी नहीं कर सका है। हालत यह है कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी की ओर से 2015 में कंडक्ट कराए गए यूपी कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट में इस्तेमाल किए गए 'टाई बैक' लिफाफे को यूनिवर्सिटी के इंटरनल एग्जाम में एंट्री नहीं मिल सकी है। जबकि यह काफी सिक्योर और पोल खोलने वाला साबित हो सकता है।

साधारण लिफाफा, स्पेशल पैकिंग

यूनिवर्सिटी की ओर से इस्तेमाल किए गए इस खास अमेरिकी लिफाफे को इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता मिली हुई है। प्रदेश में इस विशेष लिफाफे का इस्तेमाल अब तक सिर्फ दो यूनिवर्सिटी में ही हुआ है, जिसमें डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी शामिल है। तत्कालीन वीसी प्रो। अशोक कुमार ने इसे यूनिवर्सिटी एग्जाम में भी इस्तेमाल करने के लिए इंटरेस्ट दिखाया था, लेकिन इसके बाद इस मुद्दे पर कोई डिस्कशन ही नहीं हो सका। इसकी खासियत क्या है बंद लिफाफे से इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। लेकिन जैसे ही इसे खोला जाएगा या खोलने की कोशिश की जाएगी, तत्काल उस पर ओपन शब्द हाईलाइट होकर सामने आ जाएगा, जिसे दोबारा सील या गायब नहीं किया जा सकता।

पेपर सिक्योरिटी पर था फोकस

लिफाफे के निर्माण में क्वेश्चन पेपर्स की सिक्योरिटी का पूरा ध्यान रखा गया है। एक बार क्वेश्चन पेपर को लिफाफे में डालने के बाद वह खुलने तक पूरी तरह से सुरक्षित होगा। नवंबर 2016 में तत्कालीन वीसी ने यह तय किया था कि यूनिवर्सिटी में आगे से होने वाली सभी परीक्षाओं में इसी लिफाफे का इस्तेमाल किया जाना था और क्वेश्चन पेपर भी इसी में भेजने की तैयारी थी। लेकिन कार्यकाल खत्म हो जाने की वजह से यह स्कीम परवान न चढ़ सकी। वहीं नए वीसी के सामने इस मामले को लेकर कोई चर्चा भी नहीं हुई और न ही कोई पेपर ही आउट हुआ, जिसकी वजह से किसी का ध्यान भी इस ओर नहीं गया।

बॉक्स

कॉस्टली होने की वजह से किनारा

यूनिवर्सिटी में इस लिफाफे का इस्तेमाल किया जाना था, लेकिन लोकल लेवल पर कॉस्टली पड़ने की वजह से कोई फैसला नहीं हो सका। यूनिवर्सिटी में सक्सेसफुली सीपीएमटी एग्जाम कंडक्ट कराने वाली टीम में शामिल एक प्रोफेसर की मानें तो यूनिवर्सिटी में जो लिफाफा इस्तेमाल किया जाता है और टाई बैक लिफाफे की कॉस्ट में करीब 10 गुना डिफरेंस है। वहीं, सीपीएमटी में तो यूनिवर्सिटी को महज दो हजार लिफाफे की परचेजिंग करनी पड़ी थी, जबकि यूनिवर्सिटी एग्जाम में 50 हजार पैकेट्स खरीदने पड़ते हैं। ऐसे में कॉस्ट कई गुना ज्यादा हो जाती, जिसकी वजह से यूनिवर्सिटी ने अब तक इस मामले में चुप्पी साधे रखी है। वहीं कई दिन रखने पर शातिर इसका भी तोड़ ढूंढ सकते हैं।

वर्जन

टाई बैक लिफाफे का इस्तेमाल हमने यूपी सीपीएमटी एग्जाम कंडक्ट कराने में किया था। उस दौरान यह टेक्नोलॉजी नई-नई आई थी और यूपी में सिर्फ दो यूनिवर्सिटी ने ही इसे अपनाया था। इसकी सील ओपन करने के बाद दोबारा इसे सील नहीं किया जा सकता था। पेपर सिक्योरिटी के मामले में यह काफी हेल्पफुल होता।

- प्रो। अशोक कुमार, फॉर्मर वीसी, डीडीयूजीयू