- ऑडिटर जनरल का यूनिवर्सिटी को अल्टीमेटम

- एक हफ्ते की मिली मोहलत अनफ्रूटफुल एक्सपेंसेज पर मांगा जवाब

- वाईफाई और स्टेडियम के लिए यूनिवर्सिटी ने बर्बाद कर दिए थे रुपए

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी के लिए वाई-फाई सिस्टम गले की फांस बन गया है। ऑडिटर जनरल की ओर से मामले का संज्ञान लेने और शासन तक मामला पहुंचने की वजह से यूनिवर्सिटी की लगातार क्लास लग रही है। एक बार फिर वाई-फाई को लेकर यूनिवर्सिटी की ओर से उठाए गए कदम, फिजिकल वेरिफिकेशन, जांच और कार्यदायी संस्था के खिलाफ लिए गए एक्शन की शासन ने रिपोर्ट तलब की है। उन्होंने अक्टूबर में भेजे गए लेटर का हवाला देते हुए यूनिवर्सिटी से एक हफ्ते में सभी डॉक्युमेंट्स और बिंदुवार आख्या मांगी है। ऐसा न करने पर यूनिवर्सिटी भी कड़घरे में खड़ी होगी और कार्यदायी संस्था के साथ ही उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

मिली थी काफी खामियां

यूनिवर्सिटी में वाईफाई फैसिलिटी स्टार्ट तो कर दी गई थी, लेकिन इसमें काफी खामियां मिली थीं। पैसा पूरा लेने के बाद भी कार्यदायी संस्था ने हैकिंग और अनऑथराइज एक्टिविटी को रोकने के लिए जहां कोई सिक्योरिटी मेजर्स नहीं अपनाए थे, वहीं जिम्मेदारों ने कार्यदायी संस्था को खुली आजादी देते हुए किसी तरह के दस्तावेज पर सिग्नेचर नहीं कराए, यानि कि बिना किसी टेक्निकल सेंक्शन और बिना एग्रीमेंट के ही काम शुरू करा दिया गया।

डॉक्युमेंट्स पर भी सिग्नेचर नहीं

गवर्नमेंट ने फाइनेंशियल सेंक्शन करने के दौरान यह स्पेसिफाई किया था कि बिना डीटेल्ड एस्टिमेट बनाए और बिना किसी टेक्निकल अथॉरिटी के सेंक्शन काम नहीं शुरू किया जाएगा, जबकि यूनिवर्सिटी में यह काम शुरू कर दिया गया। इतना ही नहीं ऑडिट में यह भी बात सामने आई है कि यूनिवर्सिटी और कार्यदायी संस्था के बीच न तो एग्रीमेंट ही हुआ और न ही दस्तावेजों पर जिम्मेदारों के सिग्नेचर ही हैं। वहीं काम में देर होने पर न तो किसी की लाइबिल्टी तय की गई है और न ही पेनाल्टी क्लॉज का ही जिक्र है।

सवा दो करोड़ हो गया पेमेंट

शासन की ओर से वाईफाई के लिए 2.14 करोड़ रुपए स्वीकृत हुआ। यूपी राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) को काम सौंपा गया। इसमें कार्यदायी संस्था को मार्च 2014 में ही 1.06 करोड़ रुपए पेमेंट कर दिया। इसके बाद निर्माण कार्य तो शुरू हो गया। वहीं जुलाई 2015 में सेंक्शन 1.08 करोड़ का पेमेंट दिसंबर 2015 में कर दिया गया। फरवरी 2015 से यूनिवर्सिटी के दो हॉस्टल में इसकी फैसिलिटी भी मिलने लग गई। लेकिन ऑडिट में यह बात सामने आई कि महज तीन मंथ यानि मई 2015 में एनआईसी ने टेक्निकल सिक्योरिटी न होने की वजह से अनऑथराइज एक्टिविटी होती पाई और इससे उन्होंने इंटरनेट फैसिलिटी पर रोक लगा दी थी, अब यह व्यवस्था बहाल हो चुकी है।

अखिलेश यादव ने दी थी सौगात

गोरखपुर यूनिवर्सिटी को मार्च 2013 में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने स्टेडियम के साथ ही वाईफाई की सौगात दी थी। यूनिवर्सिटी में ऑर्गनाइज फ‌र्स्ट साइंस कांग्रेस में पहुंचे सीएम ने सौगातों का पिटारा खोलते हुए इसकी मंजूरी दी थी। यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों ने करीब 484.89 लाख रुपए से स्टेडियम बनना था, वहीं 2.14 करोड़ से वाईफाई की फैसिलिटी शुरू होनी थी।

मामले की जांच के लिए कमेटी बनाई गई थी, लेकिन उन्होंने टेक्निकल जांच का हवाला देते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए थे। अब नई टेक्निकल कमेटी बनाई जा रही है। इसकी जांच के बाद ही हकीकत पता चल सकेगी।

- सुरेश चंद्र शर्मा, रजिस्ट्रार, गोरखपुर यूनिवर्सिटी