DEHRADUN: दून जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का हिस्सा बनाये जाने के बाद से न सिर्फ इस हॉस्पिटल के प्रति लोगों का विश्वास कम हुआ है, बल्कि पिछले दो सालों में हॉस्पिटल आने वाले मरीजों की संख्या में भी कमी आई है। जिला हॉस्पिटल से मेडिकल कॉलेज बनने के बाद मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज बनने के बाद से हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों की संख्या में हर साल 36 हजार तक की कमी आई है, जबकि हॉस्पिटल में मरने वाले मरीजों की संख्या में हर साल 40 तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

 

क्या है स्थिति

दून जिला अस्पताल को 2016 में मेडिकल कॉलेज का हिस्सा बना दिया गया था। इससे पहले 2015 में हॉस्पिटल में कुल 5 लाख, 9 हजार 900 मरीज भर्ती हुए थे। इस साल हॉस्पिटल में कुल 828 मरीजों की मौत हो गई थी। मेडिकल हॉस्पिटल बनने के पहले साल 2016 में हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों की संख्या गिरकर 4 लाख, 73 हजार, 992 हो गई और मरने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 868 जा पहुंची। हालांकि 2017 में इस स्थिति में मामूली सुधार हुआ। इस साल मरीजों की संख्या में 2016 के मुकाबले 3032 की बढ़ोतरी और मरने वालों में 6 की कमी आई है।

 

एक नजर

वर्ष भर्ती मरीज मृतक

2015 509900 828

2016 473992 868

2017 477312 834

 

लोगों का विश्वास उठा

दून हॉस्पिटल यूपी के जमाने से ही न सिर्फ देहरादून बल्कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराता रहा है। राज्य बनने के बाद भी पर्वतीय इलाकों में डॉक्टर्स एवं अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से लोग दून हॉस्पिटल आते रहे। 2016 में दून हॉस्पिटल के मेडिकल कॉलेज का हिस्सा बन जाने से स्वास्थ्य सुविधाओं में जबरदस्त कमी आई। इस दौरान जनसंख्या में जबरदस्त बढ़ोत्तरी होने के बावजूद यहां आने वाले मरीजों की संख्या कम होने लगी।

 

डॉक्टर्स की अनिश्चितता

दून हॉस्पिटल के प्रति लोगों का विश्वास कम होने की सबसे बड़ी वजह मेडिकल कॉलेज बनने के बाद डॉक्टर्स की अनिश्चितता है। एक दिन मिलने वाला डॉक्टर आमतौर पर दूसरे दिन नहीं मिलता, ऐसे में यदि किसी मरीज की जांच लिखी जाती है तो जांच रिपोर्ट उस डॉक्टर को दिखाने के लिए एक हफ्ते तक इंतजार करना पड़ता है।

 

ज्यादातर मशीनें खराब

मेडिकल कॉलेज बनने के बाद से दून हॉस्पिटल की कई जरूरी मशीनें भी खराब पड़ी हुई है। डिजिटल एक्सरे की सीआर मशीन मेडिकल कॉलेज बनने के साथ ही बंद हो गई थीं, जो आज तक बंद है। दांतों के इलाज के लिए न तो एक्सरे मशीनें हैं और न ही रूट कैनाल की सुविधा। अन्य जांचों की मशीनें भी अक्सर खराब पड़ी रहती हैं।

 

मरीजों की संख्या में कुछ कमी आने की बात सही है, लेकिन ऐसा व्यवस्था में कमी की वजह से हुआ, ये कहना ठीक नहीं है। पुराना रिकॉर्ड देखें तो हो सकता है, मरीजों की संख्या और कम रही है। यही बात हॉस्पिटल में मरने वाले मरीजों के मामले में भी लागू होती है।

-डॉ। केके टम्टा, एमएस, दून हॉस्पिटल.