- मोहल्ले की हॉकी टीम से शुरू हुआ था मो। शाहिद के खेल का सफर

- हॉकी को बना लिया था हमसफर, हर वक्त खेल पर रहता था ध्यान

<- मोहल्ले की हॉकी टीम से शुरू हुआ था मो। शाहिद के खेल का सफर

- हॉकी को बना लिया था हमसफर, हर वक्त खेल पर रहता था ध्यान

VARANASI

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मोहल्ले की एक हॉकी टीम 'यंग हीरोज' से खेलने वाले उस लड़के को ये नहीं पता था कि वह अपने हुनर से हॉकी के खेल को नई बुलंदियों पर ले जाएगा। मोहल्ले में दोस्तों के साथ शुरू हुए हॉकी में इस सफर को मो। शाहिद ने अपना हमसफर बना लिया। अच्छे खेल ने उन्हें केडी सिंह बाबू और झूमन लाल शर्मा का शार्गिद बना दिया। गुरुओं ने उनके हॉकी के हुनर को निखारा और ड्रिबलिंग का किंग बना दिया। अपनी काबिलियत की बदौलत ही शाहिद ने इंडियन हॉकी टीम की कमान संभाली।

कमिश्नरी मैदान से शुरू हुआ था सफर

हॉकी की दुनिया में अपना दबदबा रखने वाले मो। शाहिद ने हॉकी की एबीसीडी अपने घर के करीब कमिश्नरी मैदान से सीखी। जेपी मेहता कालेज के स्टूडेंट रहे शाहिद की शुरू से हॉकी में बहुत रूचि थी। स्पो‌र्ट्स हॉस्टल लखनऊ में उनका हॉकी कौशल ने निखरा और उसके बाद उन्होंने हिन्दुस्तान टीम के साथ इतिहास रच दिए।

ऐसे नहीं खेलूंगा तो देश के लिए कैसे खेलूंगा

हॉकी स्टिक थामने के बाद उन्होंने इसे ही अपना जिंदगी बना लिया। उनके चाहने वाले बताते हैं कि जब वह कचहरी वाले घर के बाहर दोपहर में सड़क पर हॉकी खेलते थे तो लोग कहते थे कि इतनी गर्मी में क्यों पैर जला रहे हो। उनका जवाब होता था कि ऐसे नहीं खेलूंगा तो देश के लिए कैसे खेलूंगा। यही वो जज्बा था जिसने मो। शाहिद को एक नाम से हॉकी का बादशाह बना दिया।

हॉकी के एक युग का अंत

रिवर्स फ्लिक के बादशाह कहे जाने वाले शाहिद को खड़ी स्टिक से बॉल रोकने में महारत हासिल थी। ड्रिबलिंग और डॉज देना उनको दूसरे खिलाडि़यों से महान बनाती थी। उनकी पुश भी तेज शाट की तरह होती थी। शाहिद के निधन से हॉकी की वह पीढ़ी समाप्त हो गई जो कलात्मक हॉकी के बलबूते अपनी टीम को जिताने का माद्दा रखते थी। वे बिजली की गति से विपक्षी टीम की रक्षा पक्ति को भेदते हुए गोल पोस्ट पर हमला करते थे। अपनी टीम को पेनाल्टी कार्नर दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।