घर-घर तक

पिछले साल 16 दिसंबर की रात हुई उस दर्दनाक घटना को आज भी पूरा देश भूल नहीं पाया है. इन्साफ की वो आग आज भी करोड़ों दिलों में जल रही है. यही वह समय था जब न्याय के लिए 'निर्भया' की लड़ाई दिल्ली की सड़कों से शुरू होकर देश के हर घर तक पहुंची थी. निर्भया की कुर्बानी को एक साल होने को आया है. इस एक घटना ने न केवल सत्ता पर बैठे लोगों को झकझोरा बल्कि करोड़ों खामोश लबों को भी जुबान दे दी.

देश में जगाई हिम्मत

सर्द रातों में उठी क्रांति की वो लहर आज भी बह रही है. निर्भया ने हिम्मत और आत्मविश्वास की जो लौ जलाई थी वह आज समाज के हर तबके को रोशन कर रही है. सालों से घरों में घूंघट ओढ़कर बैठी महिलाओं से शुरू करके बड़े कॉरपारेट जगत की हर नारी ने निर्भया के आंदोलन में सुर में सुर मिलाया था.

समाज को बदल दिया

ये अकेली निर्भया की लड़ाई नहीं थी, बल्कि हर उस लड़की की 'अस्मिता' की लड़ाई थी जो हर पल इस पुरुष प्रधान समाज में पिसती रहती है. निर्भया के साथ हुई इस घटना ने करोड़ों लोगों को झकझोर कर रख दिया था. इस घटना के बाद लोगों का पीड़िता के साथ उनका एक अंजाना रिश्ता बन गया था. यही वजह थी कि सर्दी की रात हो या दिन दिल्ली के वीआईपी इलाकों में हजारों लोग पुलिस की लाठियां खाने से भी नहीं हिचकिचाए. यह एक मुहिम थी निर्भया को न्याय दिलाने की जिसका असर कहीं न कहीं इस मामले पर 13 सितंबर 2013 को आए फैसले पर भी दिखाई दिया था.

रेप से जुड़े कानून की परिभाषा बदली

16 दिसंबर के बाद महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर एक नई बहस छिड़ गई. इसको लेकर जहां कानून में संशोधन तक की आवाजें उठीं वहीं मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू करने को लेकर भी मुहिम तेज हुई. इसका असर दिखाई भी दिया. घटना के बाद हुए प्रदर्शन से बैकफुट पर आई सरकार ने सदन में रेप से जुडे़ कानून और उनकी परिभाषा में भी बदलाव किया.

घर से निकली हक की आवाज

इस घटना के बाद बीते एक वर्ष में महिलाओं की सोच में कई तरह के बदलाव दिखाई दिए. अब महिलाएं अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ने के लिए ज्यादा तत्पर हो रहीं हैं. जो लड़कियां कभी अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को चुपचाप सहती थी, आज वे घर से निकलकर अपने हक के लिए आवाज उठाने लगी हैं. ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं पहली नहीं होती थी, लेकिन आज उन घटनाओं के खिलाफ आवाज बुलंद हो गई है.

सहमी आंखों में लौटा आत्मविश्वास

इस घटना ने जो सबसे बड़ा बदलाव लाया वह ये है कि सहमी आंखों में साहस की चमक दिखने लगी है, उनका खोया आत्मविश्वास एक बार फिर से वापस आ गया है. दिल्ली गैंगरेप की घटना ने उन लाखों महिलाओं को वो शक्ति दे दी जिसके दम पर वे अपने घर से इन्साफ की लड़ाई लड़ने के लिए बाहर निकल पाई है. वे भी अपने लिए जीने लगी हैं. उन लोगों ने भी ना कहना सिख लिया है. अब वे जाग चुकी हैं.

सामने आए हाईप्रोफाइल मामले

इस घटना का ही असर कहा जाएगा कि कुछ बड़े हाईप्रोफाइल मामले सामने आए और उसमें पुलिस ने भी अपना काम बखूबी निभाया. फिर चाहे वह तरुण तेजपाल हो,नारायण साई, आसाराम बापू, मुंबई गैंगरेप या फिर जस्टिस गांगुली का मामला. पीड़िता ने अपनी चुप्पी तोड़ी. ये बगैर सोचे कि आगे क्या होगा. इतने बड़े लोगों के खिलाफ आवाज उठाने पर उसे किसी का साथ मिलेगा या नहीं. उसे न्याय मिलेगा या नहीं. वह बस अपनी लड़ाई लड़ने के लिए आगे आ गई. यूं तो आसाराम और नारायण साई का मामला वर्षो पुराना था,लेकिन 16 दिसंबर के बाद हुई क्रांति ने जो चिंगारी सुलगाई उसका असर इन मामलों पर देखने को मिलता है.

'आएशा'

पटना में कार्यरत गैरसरकारी संस्था 'आएशा' की संयुक्त सचिव दिव्या गौतम ने बताया कि बिहार जैसे राज्य में जहां महिलाएं अपने घर से बाहर निकलने पर हजार बार सोचती हैं, वहां दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद आंदोलन की ऐसी झड़ी लगी कि वे अब अपने हक के लिए आवाज उठाने लगी है. इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब महिलाएं अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ सड़कों पर धरना प्रदर्शन करने लगी हैं. पुलिस की लाठियां खा रहीं हैं.

सेक्स पर खुलकर बहस

सामाजिक बदलाव के साथ-साथ उनके मानसिक स्थिति में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है. अब वे चुप नहीं बैठेंगी. वे खुलकर इन मुद्दों पर चर्चा करने लगी हैं. पहले सेक्स और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर बहस करने से वे हिचकिचाती थीं, लेकिन अब खुले आम इन बातों पर बहस करती हैं, अपनी बात रखती हैं.

पुलिस का रवैया बदला

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील कमलेश जैन बताती हैं कि कोर्ट में सालों से ऐसे मामले लंबित पड़े थे. लेकिन गैंगरेप की घटना में आए फैसले के बाद से लोगों में एक उम्मीद दिखने लगी है कि उन्हें भी इन्साफ मिल सकता है. इसलिए अब दस साल पुराने मामले पर भी बहस शुरू होने लगी है. ये तो कुछ भी नहीं है उन्होंने उम्मीद जताई है कि आसाराम और तेजपाल जैसे प्रसिद्ध व्यक्तिओं पर जब फैसला आएगा तब समाज की तस्वीर और बदल जाएगी.

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