नई दिल्ली (पीटीआई)दिल्ली हाई कोर्ट में दुर्लभ बीमारी 'गौचर' से पीड़ित एक 18 महीने की बच्ची के पिता की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दाैरान जस्टिस प्रथिबा एम सिंह ने कहा कि आज की तारीख में, दुर्लभ बीमारियों वाले व्यक्तियों से निपटने के लिए कोई नीति नहीं है और उन्हें उपचार कैसे प्रदान किया जाना है। इस दाैरान हाई कोर्ट ने सेंटर को निर्देश दिया कि वह सुनवाई की अगली तारीख से पहले एक हलफनामा दाखिल करे, जो सरकार की मौजूदा नीति में दुर्लभ बीमारियों पर आधारित हो। कोर्ट ने 23 मार्च को पारित अपने आदेश में कहा, इस आदेश की एक प्रति चिकित्सा अधीक्षक और एम्स के निदेशक को बच्चे के उपचार को तुरंत शुरू करने के अनुरोध के साथ सूचित किया जाना चाहिए।

इस बीमारी के इलाज में लगभग 3.5 लाख रुपये महीने का खर्च

दिल्ली हाई कोर्ट बच्ची के पिता द्वारा उसके इलाज के लिए फंड की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें बच्ची के पिता ने कहा था कि बार-बार अधिकारियों से बेटी के लिए इलाज के लिए फंड मिलने में परेशानी हो रही है। बच्चे के पिता के वकील ने अदालत को बताया कि बीमारी के इलाज में लगभग 3.5 लाख रुपये महीने का खर्च है। उन्होंने अदालत को बताया कि 'गौचर' को अमेरिका और यूरोपीय संघ में ऑरफेन डिसीज यानी कि अनाथ रोग माना गया है। यह एक आनुवांशिक विकार है। इसकी वजह से स्प्लीन, यकृत, फेफड़ों, हड्डियों और कभी-कभी मष्तिष्क में बहुत अधिक वसायुक्त पदार्थ जमा हो जाते हैं। ऐसे में ये पार्ट प्राॅपर काम करना बंद कर देते हैं।

उपचार का खर्च पीड़िता का परिवार वहन नहीं कर सकता

वहीं अदालत ने भी नोट किया इस उपचार का खर्च बहुत ज्यादा जो पीड़िता का परिवार वहन नहीं कर सकता है। इस दाैरान अदालत को बताया गया कि केंद्र सरकार 2018 में दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए एक राष्ट्रीय नीति लेकर आई थी, लेकिन कुछ राज्य सरकारों की आपत्तियों के कारण इसे कथित रूप से समाप्त कर दिया गया था और 13 जनवरी, 2020को दुर्लभ बीमारियों के लिए एक मसौदा नीति दस्तावेजजारी किया गया था। अदालत ने कहा, हालांकि, यह अभी तक लागू नहीं हुआ है। ऐसे में अभी दुर्लभ बीमारियों वाले व्यक्तियों से निपटने के लिए और उन्हें कैसे उपचार प्रदान किया जाए वाले बिंदु पर कोई नीति नही है।

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