अगर डिलीवरी करवानी है, तो अपने रिस्क पर करवाओ
अगर डिलीवरी करवानी है, तो अपने रिस्क पर करवाओ। डिलीवरी के दौरान कोई गड़बड़ी होती है, तो हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं। एमजीएम हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाने वाली महिलाओं और उनके परिजनों के अनुसार सीजेरियन से पहले डॉक्टर्स उन्हें कुछ ऐसी ही हिदायत देते हैं। कई पेशेंट्स ने ये आरोप तक लगाया है कि ऑपरेशन से पहले उनसे Žलैंक पेपर पर साइन करवाया जाता है। ये महज कुछ एग्जांपल हैं। हॉस्पिटल में बच्चे की डिलीवरी के लिए आने वाली ज्यादातर महिलाओं को किसी न किसी परेशानी से गुजरना पड़ता है। गवर्नमेंट हॉस्पिटल होने के बावजूद एक तरफ जहां पेशेंट्स को मेडिसीन और दूसरी चीजों के नाम पर चार से पांच हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं, वहीं दूसरी तरफ डिपार्टमेंट में कई तरह की सुविधाओं की कमी अक्सर मुश्किलें खड़ी करती हैं।

Risky है इलाज
आमतौर पर ट्रीटमेंट से पहले डॉक्टर पेशेंट का विश्वास और मनोबल बढ़ाते हैं, लेकिन एमजीएम हॉस्पिटल में पेशेंट्स को डराया जाता है। इस बात को वहां एडमिट पेशेंट खुद बता रहे हैं। भाटिया बस्ती की रहने वाली रूबिना डिलीवरी के लिए हॉस्पिटल में एडमिट है। बच्चे की डिलीवरी सीजेरियन होनी है। रूबिना ने बताया कि डॉक्टर ने उनसे कहा है कि ऑपरेशन करवाना है, तो अपने रिस्क पर करवाओ। अगर ऑपरेशन के दौरान कोई गड़बड़ी होती है, तो इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं। कुछ ऐसी ही बात बारीडीह की बिनोता और वहां एडमिट कई दूसरे पेशेंट्स और उनके अटेंडेंट्स ने कहीं।

 

नहीं होता proper देखभाल
डिलीवरी के लिए हॉस्पिटल आए ज्यादातर लोग सही तरीके से देखभाल ना किए जाने की बात भी कह रहे हैं। डिलीवरी के लिए आई एक पेशेंट की अटेंडेंट मंगली कर्मकार ने कहा कि पेशेंट को कोई परेशानी होती है, तो हर बार उन्हें खुद से पेशेंट को लेकर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। इसके बावजूद प्रॉपर रिस्पांस नहीं मिलता है। एक अन्य पेशेंट ने बताया कि कई बार बुलाते रहने पर भी कोई पेशेंट को देखने नहीं आता और वहां मौजूद हॉस्पिटल स्टाफ द्वारा सही बर्ताव भी नहीं किया जाता है। कई पेशेंट्स ने हॉस्पिटल में एडमिट करने को लेकर आनाकानी बरतने की बात भी कही। एक पेशेंट के अटेंडेंट नंदलाल कर्मकार ने बताया कि 19 अप्रैल की रात करीब 12 बजे वो अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए हॉस्पिटल लाए, पहले तो उसे एडमिट करने से मना किया गया, लेकिन किसी तरह एडमिशन हो जाने के बाद उसी वक्त एक यूनिट Žलड  लाने को कहा गया। एमजीएम स्थित Žलड बैंक में Žलड ना मिलने पर उसे रात के वक्त जमशेदपुर Žलड बैंक जाना पड़ा। नंदलाल ने बताया कि वो रात में Žलड लेकर आया, लेकिन ऑपरेशन अगले दिन 12 बजे किया गया।

ढीली करनी पड़ती है जेब
गवर्नमेंट हॉस्पिटल होने के बावजूद एमजीएम हॉस्पिटल में डिलीवरी के लिए आने वाले लोगों को काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। सीजेरियन डिलीवरी होने पर मेडिसिन, Žलड जैसी चीजों का खर्च पेशेंट को खुद उठाना पड़ता है। धालभूम से अपनी वाइफ की डिलीवरी के लिए एमजीएम आए गोपाल दत्ता ने बताया कि डिलीवरी के दौरान उन्हें दवाइयों के लिए करीब चार से पांच हजार रुपए खर्च करने पड़े। राजनगर से डिलीवरी के लिए माया मार्डी ने भी करीब तीन हजार रुपए की दवाइयां खरीदने की बात कही। इनके अलावा ज्यादातर पेशेंट्स ने डिलीवरी के बाद तीन हजार से पांच हजार रुपए दवाइयों पर खर्च होने की बात कही।

ये कैसी लापरवाही?
 डॉक्टर्स का काम पेशेंट्स को सही इलाज और सही सलाह देना होता है पर यहां बात कुछ अलग है। डॉक्टर्स पेशेंट्स को ऐसी सलाह देते हैं, जो आम आदमी की नजर में भी गलत है। इसका नजारा हमें सैटरडे को देखने को मिला। गायनिक वार्ड में एडमिट मीना देवी को हॉस्पिटल द्वारा क्वालिकेल नाम का विटामिन सीरप दिया गया, इस सीरप पर एक्सपायरी डेट मई 2014 का था। दवा के एक्सपायरी में महज पांच दिन होने की बात देख मीना देवी के पति नंदलाल कर्माकर राउंड लगा रही डॉक्टर के पास गए। उन्होंने ये बात डॉक्टर के साथ मौजूद नर्स को बताई, तो नर्स ने कहा कि पूरे मई इस दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है। डॉक्टर तो एक कदम और आगे निकल गई। उनसे जब एक्सपायरी डेट के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि अभी एक-दो महीने इस सीरप का इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है। इस संबंध में हमने जब ड्रग इंस्पेक्टर सुमंत कुमार तिवारी से बात की, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर दवा मई में एक्सपायर हो रही है, तो एक मई से उस देवा को देना गलत है।

नहीं हैं सुविधाएं
स्टेट के तीन गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल होने के बावजूद एमजीएम हॉस्पिटल के ओबीजी डिपार्टमेंट कई तरह की कमियों से जूझ रहा है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार डिपार्टमेंट में मौजूद ऑपरेशन थियेटर में प्री-ऑपरेटिव, रिकवरी रूम, नर्सेज रूम, सर्जन एनेस्थेटिस्ट रूम, वाशिंग रूम तक मौजूद नहीं है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड मशीन, सीटीजी मशीन, मल्टीचैनल मॉनिटर, एनएसटी मशीन सहित कई इक्वीपमेंट्स डिपार्टमेंट में मौजूद नहीं है।

किसी भी ऑपरेशन से पहले प्रक्रिया के तहत रिस्क बांड पर साइन करवाया जाता है। पढ़े-लिखे लोग पेपर पर खुद से लिख कर साइन कर देते हैं, जो ऐसा नहीं कर पाते, उसे पेपर पर शर्त लिखकर बता दिया   जाता है।
-डॉ एस के चौधरी, सुपरिंटेंडेंट, एमजीएम हॉस्पिटल

Report by : abhijit.pandey@inext.co.in