कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Dev Deepawali 2021 : हमारा देश त्योहारों से भरा है और दिवाली के पंद्रह दिनों के बाद देव दीपावली मनाई जाती हैं। यह आध्यात्मिक रूप से एक महत्वपूर्ण त्योहार है। देव दीपावली, जैसा कि नाम से पता चलता है, देवताओं की दिवाली है और कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो मुख्य रूप से वाराणसी में मनाया जाता है। यह रोशनी के त्योहार दिवाली के पंद्रह दिनों के बाद आता है। दृक पंचांग के मुताबिक पूर्णिमा तिथि 18 नवंबर को दोपहर 12:00 बजे से 19 नवंबर को शाम 2:26 नवंबर तक है।

देव दीपावली महत्व
देव दीपावली के इस भव्य त्योहार को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरा पूर्णिमा स्नान के रूप में भी मनाया जाता है। यह त्योहार असुर त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हिंदुओं का मानना ​​है कि देव दीपावली के दिन भगवान वाराणसी में गंगा घाटों पर पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। गंगा देवी का सम्मान करने के लिए कई मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं। दीप जलाने की इस परंपरा की शुरुआत 1985 में पंचगंगा घाट पर हुई थी।

देव दीपावली पर सजते हैं घाट
देव दीपावली के दौरान पवित्र गंगा नदी के तट पर सभी घाटों की सीढ़ियों पर लाखों मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं। पत्तों पर भी दिए जलाकर प्रवाहित किए जाते हैं। लोग अपने घरों को तेल के दीयों से सजाते हैं। महान भव्य गंगा आरती 21 ब्राह्मण पुजारियों और 24 महिलाओं द्वारा की जाती है। यह हजारों की संख्या में भक्तों और पर्यटकों द्वारा देखा जाता है। घाटों की रोशनी और तैरते हुए दीये मनमोहक दृश्य पैदा करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गुरु नानक जयंती और जैन प्रकाश उत्सव भी मनाया जाता है।

देव दीपावली अनुष्ठान
- पांच दिवसीय उत्सव देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है।
- मुख्य अनुष्ठान कार्तिक स्नान है, भक्त पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं।
- शाम को तेल से दीप जलाकर गंगा नदी में प्रवाहित किया जाता है।
- शाम को दशमेश्वर घाट पर भव्य गंगा आरती की जाती है।
- आरती के दौरान भजन-कीर्तन, लयबद्ध ढोल-नगाड़ा, शंख बजाया जाता है।
- विभिन्न देवताओं की श्रद्धा में जुलूस निकाले जाते हैं।
- भक्त रात भर भक्ति गीतों में लिप्त रहते हैं।

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