यद्यपि भगवान क्षणभर भी सोते नहीं, फिर भी भक्तों की भावना-'यथा देहे तथा देवे' के अनुसार भगवान चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीरशयन के विषय में यह कथा प्रसिद्ध है कि भगवान ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गये। वे वहां चार मास तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इस एकादशी का नाम 'देवोत्थापनी' या 'प्रबोधनी एकादशी' पड़ गया। ये इस वर्ष शुक्रवार 8 नवम्बर 2019 को पड़ रही है।

इस दिन उपवास व पूजन का विशेष महत्व

इस दिन व्रत के रूप में उपवास करने का विशेष महत्व है। उपवास न कर सके तो एक समय फलाहार करना चाहिए और समय -नियमपूर्वक रहना चाहिए। एकादशी को भगवन्नाम जप- कीर्तन की विशेष महिमा है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवत्प्राप्ति के लिए पूजा -पाठ, व्रत उपवास आदि किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्सम्बन्धी कीर्तन,वाद्य,नृत्य,और पुराणों का पाठ करना चाहिए। धूप,दीप,नैवेद्य,पुष्प,गन्ध,चन्दन,फल और अर्घ्य आदि से भगवान की पूजा करके घंटा, शंख,मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मंत्रों द्वारा भगवान से जागने की प्रार्थना करे-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्प अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तवप्रभो ।

न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रासादाज्जनार्दन।।

वामन भगवान का सारथी बनने पर यज्ञ समान फल मिलता है

तदनन्तर प्रह्लाद, नारद, परशुराम,पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक,शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करना चाहिए। इसके पीछे एक रथ मे भगवान को विराजमान करके नरवाहन द्वारा उसे संचालित कर नगर, ग्राम या गलियों मे भ्रमण कराये। जो मनुष्य उस रथ के वाहक बनाकर उसको चलाते हैं,उनको प्रत्येक पद पर यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे,उस समय सर्वप्रथम दैत्यराज बलि ने वामन जी को रथ मे विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। अतः इस प्रकार करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रिया: सर्वा: प्रवर्तयेत्।' मंत्र के अनुसार विष्णु भगवान योगनिद्रा को त्याग कर प्रत्येक प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं और प्राणिमात्र का पालन- पोषण और संरक्षण करते हैं।

-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र