इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं

वे शेषनाग की शैया पर चार माह के लिये योग निद्रा में शयनस्थ हो जाते हैं, इस दिन श्री विष्णु शयनोत्सव भी होता है पुराणों के अनुसार श्री हरि विष्णु इस दिन से चार मास पर्यन्त पाताल में राजा बलि के द्वार निवास करके कार्तिक शुक्ल एकदशी को लौटते हैं।इस बार 12 जुलाई 2019 शुक्रवार आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी ’’देवशयनी’’ ऐकादशी हैं। इस दिन विशाखा नक्षत्र, मातंग योग में श्री हरि विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में बलि के द्वार पर निवास करेंगे। यह चतुर्थ मास 08 नवम्बर कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थापनी एकादशी को समाप्त होगा।

इस दिन से चार माह में बन्द सभी शुभ कार्य

आदि का पुनः श्री गणेश होगा। ऐसा नियम है कि चातुर्मास में प्रतिदिन स्नान कर जो भगवान विष्णु के आगे खड़ा हो ’पुरूषसूक्त’ का जप करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है। जो अपने हाथ में फल लेकर मौन भाव से भगवान विष्णु की एक सौ आठ परिक्रमा करता है, वह पाप से लिप्त नहीं होता। जो अपनी शक्ति के अनुसार चारों माह विशेषतः कार्तिक मास में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निष्ठान भोजन कराता है वह अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता है। माना गया है कि वर्ष के चार महीने तक नित्य प्रति वेदों के स्वाध्याय से जो भगवान विष्णु की अराधना करता है। वह सर्वदा विद्वान होता है। जो पूरे चातुर्मास में भगवान के मन्दिर में रात-दिन नृत्य गीत आदि का आयोजन करता है वह गन्घर्व भाव को प्राप्त करता है चातुर्मास में व्रतोपवास, नियमबद्वता, ब्रह्मचर्य अपने गुरूदेव से या सत्संग, प्रवचनों के आयोजन के लिए एकाग्रचित से ज्ञान श्रवण आदि जीवन के उत्थान विकास के श्रेष्ठ मार्ग प्राप्त करता है। इस दिन पूजन के साथ ’रूद्रव्रत’ करने के प्रभाव से साधक को शिवलोक की प्राप्ति होती है। वामनपुराण के अनुसार ’देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु चार माह के लिए जहां शयनस्थ भाव में होते हैं तो इस आषाढ़ माह की गुरू पूर्णिमा के दिन ही देवाधिदेव भगवान श्री शिव अपने सिर की जटा, उलझे केशों को सुव्यवस्थित करने, संवारने की दृष्टि से व्याघ्र अर्थात् सिंह की चर्म शैया पर लेटते है।

यह समय भगवान विष्णु का शयनकाल कहलाता है

इस दौरान विवाह आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न नहीं किये जाते हैं। चार्तुमास ईश वन्दना का विशेष पर्व है, इस अवधि में उपवास का विशेष महत्व है, जिनसे अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। चार्तुमास में व्रत के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये जैसे- श्रावण मास में शाक, भाद्रपद महीने में दही, आश्विन महीने में दूध एवं कार्तिक माह में दाल ग्रहण नहीं करना चाहिये। चार्तुमास का व्रत करने वाले व्यक्तियों को मांस, मधु, शैया शयन का त्याग करना चाहिए। इस दौरान गुड़, तेल, दूध दही और बैगन का सेवन नहीं करना चाहिये। पुराणों के अनुसार जो भी व्यक्ति चार्तुमास में गुड़ का त्याग करता है, उसे मधुर स्वर प्राप्त होता है। तेल का त्याग करने से पुत्र-पौत्र की प्राप्ति होती है। कड़वे तेल के त्याग से शत्रुओं का नाश होता है। धृत के त्याग से सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। शाक के त्याग से बुद्धि में वृद्धि होती है, दही एवं दूध के त्याग से वंश वृद्धि होती है, नमक के त्याग से मनोवांछित कार्य पूर्ण होता है। चार्तुमास में भगवान विष्णु की आराधना विशेष रूप से की जाती है, इस अवधि में पुरूष सूक्त, विष्णु सहस्त्रनाम अथवा भगवान विष्णु के विशेष मंत्रों के द्वारा उनकी उपासना करनी चाहिये।

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कैसे करें शयन पूजन

देवशयन एकादशी पर भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराकर चन्दन, धूप-दीप आदि से पूजन करना चाहिये, तदुपरान्त यथासामथ्र्यअनुसार चांदी, पीतल आदि की शैया के ऊपर बिस्तर बिछाकर उस पर पीले रंग का रेशमी कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु को शयन करवाना चाहिये।

ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा

बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली