वर्ष 2004 में हुआ था मामला

गुजरात पुलिस के आतंक निरोधक दस्ते (एटीएस) के प्रमुख रहे वंजारा सोहराबुद्दीन शेख, तुलसीराम प्रजापति और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ कांड के अभियुक्त हैं. वह सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में 24 अप्रैल 2007 से जेल में हैं. वंजारा निलंबन अवधि में जेल से ही सेवानिवृत्त हो गए हैं. इस कांड में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए निकले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी बताकर पुलिस ने इशरत सहित चार लोगों को मार डाला था. सीबीआई अदालत के विशेष जज केआर उपाध्याय ने दोनों को सशर्त जमानत दी .

शहर में घुसने पर रोक

वंजारा के शहर में घुसने पर रोक है लेकिन यह भी आदेश दिया गया है कि कामकाज वाले हर शनिवार को वह अदालत के समक्ष पेश हों. उनके देश से बाहर जाने पर रोक रहेगी. जमानत के लिए उन्हें दो लाख रुपये का बांड भरना होगा. वंजारा ने पिछले साल ही जमानत याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान वंजारा के वकील वीडी गज्जर ने कहा कि जांच एजेंसी सीबीआई ने उनके मुवक्किल के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर काम किया है. उन्होंने कहा कि वंजारा ने तो महज वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन किया.

 कोर्ट में समर्पण के बाद से जेल में थे एडीजी पांडेय अपर पुलिस महानिदेशक पांडेय को एक लाख रुपये के निजी बांड और दो जमानती प्रतिभूति पर जमानत दी गई है.

पांडेय के भी देश से बाहर जाने पर रोक

वर्ष 2013 की जुलाई में जब एडीजी पांडेय ने अदालत में समर्पण किया था तभी से जेल में थे. इशरत जहां कांड के समय पांडेय शहर के संयुक्त पुलिस आयुक्त थे. कोर्ट ने उन्हें अपना पासपोर्ट जमा करने और पूर्व सूचना दिए बगैर देश नहीं छोड़ने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी शर्त रखी है कि पांडेय वैसा कोई प्रयास नहीं करेंगे जिससे इस मामले की जांच में बाधा पड़ सकती है. वह इस मामले से जुड़े किसी गवाह को प्रभावित करने की कोशिश भी नहीं करेंगे. आदेश में कहा गया है कि पांडेय हर बृहस्पतिवार को सीबीआइ की अदालत में पेश होंगे और मुकदमे की सुनवाई के दौरान भी मौजूद रहेंगे. क्या है घटना मुंबई के एक कॉलेज में पढ़ने वाली इशरत जहां, प्राणेश पिल्लई उर्फ जावेद शेख, अमजद अली राणा और जीशान जोहार को अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा के दस्ते ने 15 जनवरी 2004 के बाहरी इलाके में यह कहकर मार गिराया था कि ये लश्कर आतंकी दस्ता था जो प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने निकला था.

साजिश का हिस्सा थे पांडेय

सीबीआई के अनुसार, वह मुठभेड़ फर्जी थी और खुफिया ब्यूरो और गुजरात पुलिस ने संयुक्त रूप से गढ़ी गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान पांडेय की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता निरुपम नानावती ने कहा कि उनके मुवक्किल को अन्य आइपीएस अधिकारी सतीश वर्मा के आदेश पर गिरफ्तार किया गया. आईबी के अधिकारियों को गिरफ्तार नहीं करने की शिकायत नानावती ने यह भी कहा कि सीबीआई ने आईबी के अधिकारियों को गिरफ्तार नहीं कर केवल गुजरात पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की. सीबीआई की ओर से पेश लोक अभियोजक एलडी तिवारी ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि पांडेय इस पूरी साजिश के हिस्सा थे जिसमें चार लोगों की जीवनलीला समाप्त हुई.

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