साल 2000 की बात है

यह बात उन दिनों की है, जब जिंबाब्वे टीम का विश्व क्रिकेट में काफी रुतबा हुआ करता था। उस वक्त टीम में एंडी फ्लॉवर और ग्रैंट फ्लॉवर भाईयों की जोड़ी किसी भी गेंदबाजी आक्रमण को तहस-नहस कर देती थी। वहीं गेंदबाजी की बात करें तो टीम में हीथ स्ट्रीक, हेनरी ओलंगा और केपेबल जैसे धुरंधर गेंदबाज हुआ करते थे। दिसंबर 2000 में यही जिंबाब्वे की टीम भारत दौरे पर आई। पांच मैचों की वनडे सीरीज का आखिरी मैच रजकोट में खेला गया।

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अगरकर की सबसे तेज हॉफसेंचुरी

जिंबाब्वे ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला लिया। भारतीय टीम में सचिन, द्रविड़, सहवाग और युवराज जैसे धुरंधर बल्लेबाज थे। सभी को लगा कि भारत एक बड़ा स्कोर बना देगा, स्कोर तो बना लेकिन इन धुरंधर खिलाड़ियों के बल्ले से नहीं। उस वक्त भारतीय टीम में हेमंग बदानी खेला करते थे, कुछ लोगों ने यह पहली बार नाम सुना होगा। लेकिन बदानी ने इस मैच में 77 रन बनाए। इसके बाद क्रीज पर उतरे दो गेंदबाज आर सोढ़ी और अजीत अगरकर, सोढ़ी ने 53 रन बनाए लेकिन चर्चा तो हुई सिर्फ अगरकर की। इस तेज गेंदबाज ने मैच में 21 गेंदों में पचासा ठोंक दिया। यह देख हर कोई हैरान था, क्योंकि एक गेंदबाज का इस तरह की धुंआंधार पारी खेलना वाकई अचरज था।

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17 सालों से कोई नहीं तोड़ पाया

अगरकर का यह रिकॉर्ड आज भी बरकरार है, पिछले 17 सालों में इस रिकॉर्ड को कोई नहीं तोड़ पाया। भारत की तरफ से सबसे तेज वनडे फिफ्टी की बात आती है तो सबसे ऊपर अजीत अगरकर का नाम आता है। आपको बता दें कि अगरकर और सचिन के गुरु एक ही रहे हैं, रमाकांत आचरेकर। अजीत ने जूनियर लेवल पर क्रिकेट की शुरुआत बतौर बल्लेबाज शुरु कर थी। स्कूल क्रिकेट में तो वह तिहरा शतक तक जड़ चुके थे। नेशनल क्रिकेट टीम में आते-आते वह एक तेज गेंदबाज बन गए और विश्व क्रिकेट में बतौर गेंदबाज खूब नाम कमाया।

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सबसे तेज 50 विकेट लेने वाले गेंदबाज

अजीत अगरकर के नाम वनडे क्रिकेट में सबसे तेज 50 विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज था। हालांकि उनके इस रिकॉर्ड को 2008 में श्रीलंका के अजंता मेंडिस ने तोड़ दिया। अगरकर ने 23 मैचों में 50 विकेट झटके थे जबकि मेंडिस ने यह कारनमा 19 मैचों में ही कर दिया था।

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