मुंबई (पीटीआई)। पेशावर में 11 दिसंबर, 1922 को पठान परिवार में जन्में दिलीप कुमार के 11 भाई-बहन थे। उनका असली नाम मोहम्मद यूसुफ खान था मगर उन्हें पहचान मिली दिलीप कुमार नाम से। उनका नया नाम और नई पहचान उन्हें देविका रानी ने दी, जो उस समय बॉम्बे टॉकीज की प्रमुख थीं और उनका विचार था कि एक स्क्रीन नाम दर्शकों को उनसे जुड़ने में मदद करेगा और यह कामयाब भी हुआ। हालांकि उनकी पहली फिल्म, बॉम्बे टॉकीज की "ज्वार भाटा" को ज्यादा प्रशंसा नहीं मिली मगर दिलीप ने हिम्मत नहीं हारी।

छुपकर की पहली फिल्म
दिलीप कुमार के पिता फल व्यापारी थे, ऐसे में वह चाहते थे कि उनका बेटा भी बिजनेस में हाथ बंटाए। कुछ समय तक दिलीप ने यह काम भी किया मगर उनके अंदर एक्टर बनने का कीड़ा काट रहा था। ऐसे में घर में बिना बताए फिल्मों में ऑडिशन देने चले गए और पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' की रिलीज के बाद भी परिवार वालों को नहीं पता था कि उनका बेटा एक्टर बन गया है। यह राज तो तब खुला तब पृथ्वीराज कपूर के पिता और राज कपूर के दादा बशेश्वरनाथजी ने दिलीप की दूसरी फिल्म 'जुगुनु' में कुमार को देखा और उनके पिता को होर्डिंग की ओर इशारा किया।

ऐसे खुला था राज
दोनों परिवार पेशावर में पड़ोसी और सालों से दोस्त थे। ऐसे में दिलीप के घर जब पता चला कि, वह एक्टिंग कर रहे हैं तो उनके पिता काफी नाराज हुए। जब यूसुफ के निराश पिता ने उससे बात करने से इनकार कर दिया तो यूसुफ ने राज की ओर रुख किया। फिल्मी गलियारे में एक किस्सा काफी चर्चा में है कि, राज ने अपने पिता पृथ्वीराज को इस मामले में मध्यस्थता के लिए कहा। और आखिरकार सब ठीक हो गया। बाद में पेशावर के दोनों लड़के भारत के सबसे प्रिय और सम्मानित अभिनेताओं में से एक बन गए।

बन गए बाॅलीवुड के ट्रेजडी किंग
जैसे-जैसे साल बीतते गए और उम्र बढ़ती गई, कुमार लोगों की नजरों से हटते गए लेकिन ज्यादातर सितारों की तरह कभी फीके नहीं पड़े।
वह व्यक्ति, जिसने नसीरुद्दीन शाह, अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की पसंद को प्रेरित किया, वह हमेशा उनकी फिल्मों के प्रशंसक बने रहे।। दिलीप कुमार ने करीब 60 फिल्मों में काम किया है, जिसमें सबसे ज्यादा क्लासिक फिल्में हैं। इनमें "देवदास" टाॅप पर है, जिसमें एकतरफा प्यार की एक दुखद कहानी है। इसके अलावा "मधुमती", "मुगल-ए-आज़म" और "नया दौर" जिसने 50 के दशक में आदमी बनाम मशीन संघर्ष को प्रतिबिंबित किया। दूसरी पारी में उन्होंने "क्रांति", "कर्मा" और "शक्ति" जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं। अक्सर यह कहा जाता है कि कुमार खानों में सबसे पहले थे।

चले गए थे डिप्रेशन में
बुलंदियों के शिखर पर पहुुंचने के बाद खुद को संभाले रखना आसान नहीं होता। दिलीप कुमार के साथ भी ऐसा ही हुआ। फिल्मी दुनिया ने अब उनकी निजी जिंदगी को प्रभावित करना शुरु कर दिया था। 1950 के दशक में वह अवसाद के दौर से गुजरे और उन्होंने "राम और श्याम" और "गोपी" जैसी फिल्मों में हल्की भूमिकाओं को चुनने का फैसला किया। अपने जीवन के इस हिस्से के बारे में बात करते हुए दिलीप ने एक बार लिखा था, "मैं ऐसे किरदार निभा रहा था जो बदकिस्मत थे और उस वक्त समझ नहीं आता था कि मैं क्या करूं।'

सायरा बानो का मिला प्यार
दिलीप कुमार के बाॅलीवुड में अफेयर भी रहे। सबसे अधिक चर्चा अभी भी मधुबाला के साथ उनके रिश्ते की थी जो 1957 में "नया दौर" के निर्माण के दौरान एक अदालती मामले के कारण समाप्त हो गई थी। कई साल बाद, उनकी सायरा बानो से एक पार्टी में मुलाकात हुई। वह 22 वर्ष की थी और दिलीप की उम्र उस वक्त 45 वर्ष की थी। जिसके बाद दोनों ने शादी की और दिलीप और सायरा बानो की जोड़ी हमेशा बनी रही।

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