जमींदोज हो गए गांव के गांव

- गोरखपुर से नेपाल के दुर्गम इलाकों में गया अध्ययन दल

- आई नेक्स्ट से शेयर की एक्सक्लूसिव फोटोज और रिपोर्ट

<जमींदोज हो गए गांव के गांव

- गोरखपुर से नेपाल के दुर्गम इलाकों में गया अध्ययन दल

- आई नेक्स्ट से शेयर की एक्सक्लूसिव फोटोज और रिपोर्ट

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kumar.abhishek@inext.co.in

GORAKHPUR :i exclusive

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GORAKHPUR : नेपाल में आए भूकंप की तबाही को पूरे विश्व ने देखा। किस तरह धरती हिली और एक पल में सब कुछ तबाह हो गया। सैकड़ों लोगों की जान चली गई और न जाने कितने घायल हो गए, मगर अभी भी कई तस्वीरें ऐसी हैं, जो अनसुनी और अनसुलझी हैं। जिसे न तो विश्व भर के टीवी चैनल ने दिखाया और न ही किसी टूरिस्ट ने देखा। गोरखपुर से गए अध्ययन दल ने जब यह मंजर देखा तो उनकी रुह कांप उठी। चाइना बॉर्डर के पास नेपाल के एक जिले के कई गांव जमींदोज हो गए। अध्ययन दल का कहना है कि भूकंप से सबसे अधिक तबाही नेपाल-चाइना बॉर्डर पर हुई है जिसके बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं है। इन गांव में अब तक कोई खास मदद भी नहीं पहुंच सकी है। नेपाल से अध्ययन दल ने उस तबाही के मंजर की एक्सक्लूसिव तस्वीर और रिपोर्ट आई नेक्स्ट से शेयर की जिसे देख उस तबाही का अंदाजा लगाया जा सकता है।

एक नहीं कई गांव हो गए जमींदोज

राहत सामग्री के साथ गोरखपुर से एक अध्ययन दल भी नेपाल गया है। 'पहला कदम' के गजेंद्र बघेल, मनोज जायसवाल और पवन शुक्ला अध्ययन दल के मेंबर बन कर पांच दिन पहले नेपाल गए। टीम के मेंबर ने थर्सडे को सीधे नेपाल से आई नेक्स्ट को बताया कि चाइना बॉर्डर पर धाधीन डिस्ट्रिक्ट है जहां भूकंप का सबसे अधिक इफेक्ट था। इस जिले के कई गांव जमींदोज हो गए। जहां हंसता-खेलता पूरा गांव था, वहां अब सिर्फ खंडहर है। सभी घर इस भूकंप में मिट्टी में मिल गए। इसके बावजूद अब तक वहां मदद के नाम पर कुछ खास नहीं पहुंचा है क्योंकि रास्ते टूट गए हैं और साधन का वहां तक पहुंचना मुश्किल नहीं बल्कि नामुमकिन सा है। इन गांव में पहुंचने के लिए कई किमी पैदल यात्रा कर पहाडि़यों से होते हुए जाना पड़ रहा है। नतीजा इन गांव तक मदद पहुंचने के बजाए वहां के बचे हुए लोग ही सुरक्षित स्थान के लिए पलायन कर रहे हैं।

गांव तक नहीं पहुंच रही मदद

अध्ययन दल के मेंबर गजेंद्र ने नेपाल से बताया कि जो भी राहत सामग्री या मदद की जा रही है, वह सिर्फ बड़े शहरों या सड़कों के आसपास वाले गांव तक पहुंच रही है। काठमांडू से करीब फ्0 से फ्भ् किमी दूर स्थित गांव तक महज टेंट या तिरपाल ही पहुंचाया जा सका है, वह भी हेलीकॉप्टर की मदद से। धाधीन के अधिकांश गांव जमींदोज हो गए हैं हालांकि अधिकांश गांव में मकान कच्चे बने थे, इससे कैजुअल्टीज कम है मगर घायलों की संख्या बहुत अधिक है। भूकंप के करीब 8 दिन बाद इन गांव के आसपास तक मेडिकल फैसल्टी पहुंची, तब जाकर इनका कुछ इलाज हुआ। गजेंद्र ने बताया कि नेपाल के अधिकांश इलाके पूरी तरह उजड़ चुके हैं। वहां न तो कुछ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर बचा है और न ही देखने में प्रतीत हो रहा है कि कभी यहां चहल-पहल होती होगी।

ब् किमी पहाड़ी चढ़ पहुंचा अध्ययन दल

मनोज ने बताया कि थाडा गांव पहुंचने के लिए जब वहां साधन के बारे में पूछा गया तो पता चला कि सड़क खत्म हो गई है। अब सिर्फ पहाड़ी का रास्ता बचा है। इसी कारण वहां राहत सामग्री भी नहीं भेजी गई है। अध्ययन दल ब् किमी पहाड़ी की यात्रा करते हुए थाडा गांव पहुंचा जहां की स्थिति भयावह थी। वहां अधिकांश मकान मिट्टी में मिल चुके थे। जो मकान खड़े नजर आ रहे थे, उनकी हालत ये थी कि एक हल्का सा झटका भी उसे मिट्टी में मिलाने के लिए काफी होगा। लोग डर के मारे खुले आसमान के नीचे रह रहे थे, खाना बना रहे थे। मदद के नाम पर कुछ नहीं था। सबसे अधिक तबाही वाले गांव जाने के लिए दल ने कोशिश की तो लोकल प्रशासन ने मना कर दिया। उसका कहना था कि आगे गांव जाने के लिए करीब फ्0 से फ्भ् किमी पैदल चलना पड़ेगा। साथ ही रास्ते में जंगल है और जंगली जानवर का खतरा है। उन गांवों में कुछ नहीं बचा है।

जमींदोज हुए कुछ गांव

गांव - मकान - स्टेटस

टिकलिंग - 700 - 90 परसेंट खत्म

शेरतुंग - 800 - पूरा खत्म

लाडा - 7भ्0 - 80 परसेंट खत्म

री - 7भ्0 - 7भ् परसेंट खत्म

थाडा - 80 - पूरा खत्म

गोरखपुर से अध्ययन दल के रूप में गए पहला कदम संस्था के गजेंद्र, मनोज और पवन ने नेपाल के विभिन्न गांव का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि कई गांव जमींदोज हो गए हैं। कई गांवों में भूकंप ने ऐसी तबाही मचाई है कि वहां न तो कुछ बचा है और न ही वहां तक पहुंचा जा सकता है। टीम दो दिन में गोरखपुर लौट आएगी, इसके बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार करेगी।

गौतम गुप्ता, प्रोजेक्ट मैनेजर, आपदा प्रबंधन