भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी दिसंबर में देहरादून में एक बड़ी रैली कर चुके हैं. उसके मुकाबले राहुल की रैली को सफल बनाने के लिए कांग्रेस ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया है.
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप का कहना है कि, "रैली अभूतपूर्व होगी. रैली में शामिल होने के लिए नेपाल सीमा से सटे धारचूला से लेकर चीन सीमा से सटे नीती-माणा जैसे दूरस्थ इलाकों से हजारों की संख्या में लोग देहरादून आएंगे."
विभाग बंटवारे की दिक़्क़त
इस बीच देहरादून में जिस मंच से आमतौर पर राजनैतिक दलों के बड़े लीडर रैलियों को संबोधित करते हैं, उसे राहुल गांधी की सुरक्षा में लगे एसपीजी के दस्ते ने खारिज कर दिया है.
राहुल हेलीकॉप्टर से सीधे परेड मैदान पर उतरेंगे जहां उनके लिए नया मंच तैयार किया गया है. पहले यह रैली एक दिन पहले यानी शनिवार को होनी थी लेकिन ख़राब मौसम की भविष्यवाणी की वजह से इसे एक दिन बढ़ा दिया गया.
उत्तराखंड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए भी यह रैली एक कड़ी परीक्षा होगी. उन्हें खुद को कई मोर्चों पर साबित करना होगा. उनके सामने पहले से ही चुनौतियों का अंबार है.
ताज़ा मामले में प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने कांग्रेस की मंत्री और सांसद सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत पर पॉली हाउस में अपने पति और बेटे को लाखों की सब्सिडी दिलाने में पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया है.
विपक्ष के सवाल
नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट कहते हैं, "सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों को मिलना चाहिए, न कि कैबिनेट मंत्री के परिजनों को. इस मामले की सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए."
आरोप है कि अमृता के पति यानी सतपाल और उनके बेटे सुयश के नाम कुल मिलाकर 14 लाख के कर्ज में सात लाख की सब्सिडी दी गई.
इस आरोप पर अमृता रावत का कहना है, "सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई सदस्यों समेत अफसरों को भी इस योजना का लाभ मिला है. इसमें कुछ गलत नहीं हैं. उनका परिवार भी किसान है और उसे भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का अधिकार है."
इस मामले ने हरीश रावत की सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. रावत के लिए दूसरी मुसीबत है, अपने घर को एक रखना.
राज्य में कांग्रेस खेमों में बंटी हुई है और इसके चलते मची खींचतान में वो मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा नहीं कर पा रहे हैं.
कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश में मुख्यमंत्री को बदल दिया, लेकिन कैबिनेट नहीं. सबके हित साधना हरीश के लिए टेढ़ी खीर होगा.
सूत्रों के मुताबिक हरीश ने राज्यपाल से मुलाकात के बाद रैली से पहले विभाग बांट देने का दावा किया है.
आचार संहिता की बंदिश
हरीश रावत की एक और चुनौती है आपदा प्रभावित इलाकों में हालात को जल्द से जल्द सामान्य बनाना. राहुल से उन्होंने एक साल का समय मांगा है.
हो सकता है कि राहुल अपनी रैली में उन्हें इस बात की याद दिलाएं.
प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव भी होने वाले हैं और एक तरह से आगामी तीन महीनों तक हरीश रावत को चुनाव आचार संहिता के तहत काम करना है.
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र ये बहुत महत्त्वपूर्ण है कि राहुल गांधी इस रैली में किन मुद्दों को उठाते हैं और क्या कहते हैं. इस पर सबकी निगाहें होंगी.
उन्हें न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के बारे में लोगों को आश्वस्त करना है बल्कि राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री को बदलने की कवायद, अस्थिरता और आपदा प्रबंधन के कार्यों के बारे में भी जनता को भरोसा दिलाना होगा.
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