ALLAHABAD: पांच पर्वो का पर्व दीपावली केवल त्यौहार नहीं, बल्कि परिवार को जोड़ने और रिश्तों को मजबूत बनाने का माध्यम भी है। ऐसे में करियर के लिए अपनों से दूर रहने वाले भला घर कैसे नहीं पहुंचते। कोई ट्रेन में धक्का खाते हुए आया तो किसी ने कोई रास्ता न देख फ्लाइट को माध्यम बनाया, लेकिन अपनों के बीच आए सभी। कोई मुश्किल इनका रास्ता नहीं रोक सकी। दिवाली पर घर पहुंचने वालों से दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बात की तो उन्होंने भी दिल खोलकर सामने रख दिया।

 

फैमिली-1

ट्रेन में जगह नहीं फ्लाइट से आया

यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी में इलाहाबाद में तैनात सीनियर मैनेजर मुकुल श्रीवास्तव के पुत्र मिसाल श्रीवास्तव दिल्ली में रहकर बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं। फेस्टीवल रश में ट्रेन में सीट नहीं मिली तो हजारों रुपये खर्च कर बुधवार को गोविंदपुर स्थित अपने घर पहुंचे। मिसाल ने बताया कि कई दिन पहले प्रयागराज एक्सप्रेस में टिकट कराया था, लेकिन सीट नहीं मिली। दिल्ली से इलाहाबाद की फ्लाईट में ट्राई किया, उसमें भी टिकट नहीं मिली। तो फिर दिल्ली से वाराणसी की फ्लाईट पकड़ी। इसके लिए नौ हजार का टिकट लेना पड़ा। मंगलवार की रात ढाई बजे वाराणसी पहुंचा। इलाहाबाद आने के लिए बस में ट्राई किया, लेकिन एक भी सीट खाली नहीं थी। इसलिए 3000 रुपये में कैब कर इलाहाबाद आया। इतनी दिक्कतों के बाद भी इस बात का सुकून है कि फैमिली के साथ दीपावली का आनंद बांट सकूंगा।

 

'क्या है सबसे खास, जो अपनों के बीच आने के लिए प्रेरित करता है?

पूरे परिवार का साथ और प्यार भरा अहसास

ट्रेडिशनल आउट फीट में तैयार होकर गणेश-लक्ष्मी पूजन

पूजन के बाद पूरे घर को दीपक से सजाना और आतिशबाजी का आनंद

 

फैमिली-2

एक सीट पर ले आए पूरी फैमिली

दरभंगा कॉलोनी निवासी रिटायर्ड बैंक कर्मचारी केशव वर्मा के पुत्र गौरव वर्मा मेरठ में पत्‌नी पूजा वर्मा और तीन साल की बेटी के साथ रहते हैं। वे एक प्राइवेट कॉलेज में टीचर हैं।

बुधवार की शाम करीब चार बजे गौरव फैमिली के साथ घर पहुंचे। उन्होंने एक माह पहले संगम एक्सप्रेस में टिकट कराया था जो वेटिंग से कनफर्म नहीं हुआ। तब उन्होंने किसी तरह टीटी को मनाया और एक सीट पर ही पूरे परिवार को लेकर घर पहुंचे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्टर के इस सवाल की इतनी दिक्कत थी प्रोग्राम कैंसिल क्यों नहीं कर दिया के जवाब में कहा कि दीपावली का त्योहार तो परिवार के साथ ही मजा देता है।

 

फैमिली-3

खींच लाता है रिश्तों का डोर

अलोपीबाग निवासी रिटायर्ड कर्मचारी अशोक कुमार दुबे के पुत्र दीपांशु गाजियाबाद में जॉब करते हैं। ट्रेन में सीट नहीं मिली तो वेटिंग टिकट पर ही धक्का खाते हुए बुधवार की शाम इलाहाबाद पहुंचे। दीपांशु ने कहा पूरे साल हम घर से दूर रहते हैं। करेंट और फ्यूचर की भागमभाग में बिजी रहते हैं। लेकिन जब दीपावली का त्योहार आता है तो घर जरूर पहुंचते हैं। ट्रेन में सीट मिले या न मिले या हजारों रुपया एक्स्ट्रा ही खर्च क्यों न करना पड़े दीवाली ऐसी डोर है जो हमें अपनों के बीच पहुंचने के लिए मजबूर कर देती है।