कानपुर।  दीपावली पर देवी लक्ष्मी व भगवान गणेश की पूजन के दाैरान कुछ बातों का ध्यान जरूरी होता है। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में समृद्धि और खुशियां आती है।  

लक्ष्मी पूजन से वैभव प्राप्ति

लक्ष्मी पूजन से वैभव मिलता है। जीवन यदि वैभव से विहीन है तो उसका कोई मान-सम्मान नहीं है। वैभव के लिए वास्तु का अच्छा होना आवश्यक है। वास्तु मतानुसार महालक्ष्मी पूजन से घर-परिवार में वैभव की प्रतिष्ठा की जा सकती है। दीपावली में गजाभिषिक्त देवी लक्ष्मी की अराधाना करना चाहिए।

शास्त्रों में कार्तिक मास को जागरण, प्रात:स्नान, तुलसी सेवन, उद्यापन और दीपदान का उत्तम अवसर कहा गया है-

हरिजागरणं प्रात: स्नानं तुलसिसेवनम्।

उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।

लक्ष्मी की आराधना से इष्ट सिद्धि होती

इन उपायों से सत्यभामा ने अक्षय सुख, सौभाग्य और सम्पदा के साथ सर्वेश्वर को सुलभ किया था। यदि  दीपावली में लक्ष्मी मंत्र की माला की जाय तो वैभव की सिद्धि से इन्कार नही किया जा सकता है। अर्थ जीवन का बड़ा सच है। यह कामादि तीन अन्य पुरुषार्थों की सिद्धि में सहायक है। घर की शुद्धता के मूल में सुख, स्वास्थ्य, सौभाग्य और सम्पदा की सिद्धि ही है। दीपावली में गजाभिषिक्त देवी लक्ष्मी की आराधना से इष्ट सिद्धि होती है।

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ऐसी होनी चाहिए देवी लक्ष्मी की प्रतिमा

वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों में पूजा के लिए गजाभिषिक्त लक्ष्मी की प्रतिमा बनवाकर घर या देवालय में पूजन करने का विधान किया गया है। यह प्रतिमा 11 अंगुल से कम होनी चाहिये। कमल के आसन पर विराजित और दोनो ही ओर हाथियों द्वारा जलाभिषेक वाली निश्चला लक्ष्मी की पूजा करने से घर में स्थायी वैभव की प्रतिष्ठा होती है। इसके लिए आगमोक्त विधान को स्वीकार किया जाना चाहिए। लक्ष्मी गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है। मंत्र यह है-

ऊँ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

दीपावली के अवसर पर जाप करने से यह शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।

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मनुष्यालय चंद्रिका में स्पष्ट किया गया है कि घर के द्वार की चौखट पर गणेश के साथ ही पद्मालया या लक्ष्मी की प्रतिष्ठा कर पूजन करना चाहिये। इससे वास्तुदोषों, वेध का निवारण होकर यश व वैभव की वृद्धि होती है। गृहस्थ को सदा ही कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये। देवी भागवत में कहा गया है कि कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा से इन्द्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था। इन्द्र ने लक्ष्मी की आराधना "ऊँ कमलवासिन्यै नम:" मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।

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