क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: मिलेनियल्स स्पीक जनरल इलेक्शन 2019 का सफर तेजी से युवा वोटरों की नब्ज टटोल रहा है. शनिवार को सिटी के सेंट्रल लाइब्रेरी में स्टूडेंट्स ने चुनावी मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी. मिलेनियल्स को शिक्षा में सुधार और रोजगार चाहिए, उनका वोट उसी को मिलेगा जो ये दोनों चीजें उपलब्ध कराएगा. शिक्षा के क्षेत्र में फैली अव्यवस्था और सुधार की धीमी गति से मर्माहत स्टूडेंट्स इसमें क्रांति लाना चाहते हैं. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट, रेडियो सिटी व सतमोला प्रेजेंट्स राजनी-टी में मिलेनियल्स ने अपनी राय रखते हुए बताया कि राजधानी के 90 प्रतिशत स्कूलों में हेडमास्टर ही नहीं हैं और अन्य शिक्षकों के भी करीब 38.39 प्रतिशत पद रिक्त हैं. हर साल शिक्षकों के रिटायर होने का सिलसिला चल रहा है लेकिन बहाली की गति काफी धीमी है. आंकड़े बताते हैं कि छह राज्यों में प्राथमिक स्कूलों में 5 लाख से अधिक शिक्षक नहीं हैं. इनमें से 4 लाख से अधिक तो सिर्फ बिहार झारखंड और यूपी में नहीं हैं. एक लाख ऐसे स्कूल चलते हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं. फोकस इस बात पर भी होता है कि कितने बच्चे स्कूल में है और कितने बाहर रह गए हैं. जब पढ़ाई का स्तर ही घटिया है तो बाहर और भीतर वाले में फर्क क्या करना. जो भीतर है वह भी अशिक्षित है. ऐसे में रोजगार सृजन के लिए तमाम उपाय करने के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार लाया जाना चाहिए.

मैट्रिक में 40 परसेंट स्टूडेंट्स फेल

झारखंड सरकारी स्कूलों की यह स्थिति है कि विगत सेशन के 40 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हो गए. फेल होने वालों की संख्या एक लाख से अधिक थी. रिजल्ट को लेकर काफी बवाल हुआ कई सुधार के दावे किए गए लेकिन इन स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ही नहीं बल्कि अन्य भी कई ऐसे मामले हैं जिनपर सवाल उठाया जाना चाहिए. लाइब्रेरी है या नहीं, है तो उसका इस्तमाल होता है या नहीं. लड़कियों के लिए अलग से कितने शौचालय हैं, कितने टॉयलेट इस्तमाल होते हैं और कितने में ताले लगे रहते हैं. टॉयलेट में पानी है या नहीं. स्टेट की बात करें तो 66 प्रतिशत स्कूलों में बिजली का कनेक्शन है.

भोजन से पोषक तत्व हो रहे हैं गायब

स्कूलों में बच्चों को एमडीएम और पूरक पोषाहार में अंडा नहीं दिया जाता. स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन में कमी दिखी. बच्चों को पूरक पोषाहार में अंडा कई स्कूलों में नहीं दिया जा रहा. अधिकतर जिलों में टीचर्स स्कूल में देर से पहुंचते हैं, इस कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है. शिक्षाविभाग द्वारा भी कई बार निर्देश जारी किया गया है कि अच्छा करने वाले टीचर्स को पुरस्कृत किया जाएगा. जो टीचर काम नहीं करेंगे उन्हें दंडित भी किया जाएगा. विभाग ने इसकी शुरुआत कर दी है. निरीक्षण का काम शुरू हो चुका है. रांची की गाइडलाइन को सभी जिलों में फॉलो करने की तैयारी की जा रही है. स्कूलों में बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस किया जाए, ताकि यहां से जब बच्चे निकलें तो आगे की पढ़ाई में परेशानी हो.

मेरी बात

एकेडमिक ईयर 2019-20 से निजी शिक्षण संस्थाओं में नया कोटा लागू होने की बात सामने आ रही है. आर्थिक रूप से कमजोर स्टूडेंट्स को 10 परसेंट कोटा का लाभ मिलेगा. इसके लिए इन संस्थाओं में सीटों की संख्या बढ़ाई जाएगी. 900 यूनिवर्सिटी और 40,000 कालेजों में यह लागू हो जाएगा. इसमें प्राइवेट भी हैं और सरकारी संस्थान भी. काम हो रहा है और हमें सही सरकार का चुनाव करना चाहिए.

अमिताभ

कड़क मुद्दा

मंत्री और राजनेता, अधिकारियों के बच्चे किसी सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते. बड़े-बड़े निजी संस्थान राज्य से बाहर भेजकर पढ़ाई कराते हैं. सरकारी स्कूल कॉलेजों को गरीबों की पढ़ाई के लिए रख छोड़ा है तो सुधार क्या होगा. नियम बनाया जाना चाहिए कि सरकार में मंत्री और सरकारी अधिकारियों के बच्चों को सरकारी शिक्षा ही ग्रहण करना अनिवार्य है.

दीपक

वर्जन

निजी संस्थानों से कॉम्पटीशन की भावना डेवलप करते हुए सरकारी शिक्षण संस्थानों को अपग्रेड करना चाहिए. कोई सरकारी संस्थान में पढ़ने को तैयार नहीं है क्योंकि यहां सुधार नहीं दिखाई देता. जरूरत है बेहतर तरीके से सुधार का सकारात्मक प्रयास करने का.

प्रभात

शिक्षक शिक्षित तो हैं लेकिन अपनी योग्यता का 100 प्रतिशत नहीं देते. इस कारण बच्चे उपेक्षित हो रहे हैं. शिक्षकों को भी सही समय पर प्रोन्नति मिले और शिक्षा के स्तर में सुधार हो.

सिद्धान्त

सरकार के स्तर पर शिक्षा जगत से जुड़े मामलों में तेजी से कार्रवाई की जा रही है. बात मिड डे मील की कीजिए या बच्चों को फ्री किताब बांटने की, हर तरह से सकारात्मक प्रयास किया जा रहा है.

रणधीर

टीचर्स की रिक्तियों को जल्द भरा जाना चाहिए और नियुक्ति तेज करनी चाहिए. हर साल हजारों टीचर्स रिटायर हो रहे हैं लेकिन उसकी तुलना में नए टीचर्स को बहाल नहीं किया जा रहा. हालात गंभीर हो रहे हैं कि स्कूल में बच्चे तो हैं लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए टीचर्स ही नहीं हैं.

रोहित

सरकारी स्कूलों में बच्चों को केवल नाम के लिए पढ़ाया जाता है. स्थिति इतनी विकराल है कि क्लास 2 का स्टूडेंट ढंग से एक एस्से नहीं लिख सकता या पढ़ सकता. जब शिक्षा ही नहीं दे पा रहे तो और क्या करेगी सरकार.

बीरसिंह महतो

आने वाले चुनावों में सभी दलों से उम्मीद है और डिमांड है कि शिक्षा की स्थिति में सुधार करें. नई रणनीति बनाएं जो कारगर हो, केवल नाम के लिए पढ़ाई कराने से क्या फायदा.

मिसीर मंडल

शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार है, इसकी गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए. इसके लिए सख्त से सख्त कानून बनाया जाना चाहिए. रोजगार का अधिकार भी युवाओं तक सही मायने में पहुंचना चाहिए. केवल लोक लुभावने वादे करने से काम नहीं बनते, उन्हें पूरा भी करना पड़ता है.

विक्की कुमार

बच्चों को लुभावने आश्वासनों पर स्कूल में दाखिला नहीं देना चाहिए, बल्कि उन्हें ठोस शिक्षा व्यवस्था देनी चाहिए, ताकि उनका भविष्य बेहतर बन सके और नए आयामों को छूएं.

उत्पल