एक दौर था जब सेलफोन और स्मार्टफोन एक लग्जरी प्रोडक्ट के तौर पर कुछ खास और रईस लोगों के हाथों में थे पर आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है लोगों के लिए सेलफोन उतना ही जरूरी हो गया है जैसे कि उनके जूते चप्पल या रोज के कपड़े। हर घर में कई कई मोबाइल फोन, स्मार्टफोन, राउटर, वाईफाई डिवाइस आदि मौजूद हैं। इनके ऊपर भी हर गली मोहल्ले में एक दो या ज्यादा मोबाइल टावर्स दिखाई दे जाते हैं। अब ऐसे में तमाम लोग सवाल करते हैं कि एक्सरे या परमाणु रेडिएशन की ही तरह क्या मोबाइल टावर का रेडिएशन भी हमारे लिए खतरनाक है तो इसका जवाब ऐसे समझा जा सकता है।

 

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इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के अंतर्गत 7 तरह के रेडिएशन मान जाते हैं। जिन्हें दो मुख्य कैटेगरी में डिवाइड किया जाता है Ionizing और Non-Ionizing रेडिएशन। Ionizing रेडिएशन में हाई फ्रीक्वेंसी वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स शामिल की जाती हैं, जिनमें हाई फ्रीक्वेंसी अल्ट्रावायलेट तरंगे, एक्स-रे, गामा तरंगे और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों या परमाणु विस्फोट से होने वाली तरंगे शामिल होती हैं। इन तरंगों के संपर्क में आने या ज्यादा देर तक रहने से कैंसर समेत कई घातक बीमारियां हो सकती हैं। इसकी वजह यह है कि इन तरंगों की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पावर और फ्रीक्वेंसी बहुत ज्यादा होती है। इनके संपर्क में आने से किसी भी इंसान या जानवर के DNA में विघटन या बदलाव हो सकता है। इसके असर से एक इंसान ही नहीं उसकी आने वाली पीढियां भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं। खैर इतने सारे खतरनाक परिणाम जानकर आपको डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सेलफोन टॉवर का रेडिएशन दूसरी कैटेगरी में आता है, लेकिन वो हम पर क्या असर डालता है, जरा यह भी जान लीजिए।

 

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मुद्दे की बात यह है दूसरे प्रकार के यानि Non-Ionizing रेडिएशन कैटेगरी में लो फ्रीक्वेंसी वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन को शामिल किया जाता है, जिनमें रेडियो वेब्स, माइक्रोवेव, इंफ्रारेड और प्रकाश की तरंगे शामिल होती हैं। ये सभी तरंगें बहुत लो लेवल की एनर्जी के साथ वातावरण में ट्रैवल करती हैं। इन तरंगों के टकराने से किसी भी निर्जीव और सजीव चीज के मॉलिक्यूल स्ट्रक्चर में बदलाव पॉसिबल नहीं है।

 

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वैज्ञानिक तथ्यों के मुताबिक किसी भी तरह की लो फ्रीक्वेंसी वेव्स में इतनी उर्जा नहीं होती कि वह किसी जीव के DNA मॉलिक्यूल्स को प्रभावित कर सके और उसकी बॉडी में कैंसर समेत कई बीमारियों को जन्म दे सके। फिर भी मोबाइल टॉवर से 24 घंटे निकलने वाली रेडियो वेव्स हमारे शरीर पर कुछ तो असर डालती ही होंगी। कई बार किसी इलाके में अधिक दूर तक मोबाइल नेटवर्क को अटूट बनाए रखने के लिए मोबाइल कंपनियां अपने टॉवर के रेडियो सिग्नल को ज्यादा बूस्ट कर देती हैं। ऐसे में उसके नजदीक रहने वालों में बैचेनी यानि Uncomfortable होने की शिकायत हो सकती है।

 

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक मोबाइल टावर से जो रेडियो वेव्स निकलती हैं, सिर्फ उन्हीं को लेकर हमें चिंतित नहीं होना चाहिए बल्कि स्मार्टफोंस और वाईफाई राउटर भी उनके जैसे ही तरंगें पैदा करते हैं और सच तो यह है कि मोबाइल टावर्स की तुलना में वाईफाई राउटर्स की संख्या हमारे आस-पास सबसे ज्यादा हो गई है। यह सभी माइक्रोवेव Non-Ionizing रेडिएशन का हिस्सा हैं, इसलिए यह हमारे लिए न के बराबर नुकसानदायक है, लेकिन लगातार इन तरंगों के संपर्क में रहने के कारण हमारी त्वचा पर कुछ वैसा ही असर पड़ सकता है जैसा कि ओवन के भीतर रखे हुए किसी खाने की चीज पर। इस मामले में आजकल खासतौर पर पेरेंट्स स्मार्टफोंस के ज्यादा यूज और मोबाइल फोन टॉवर्स के कारण अपने छोटे बच्चों के दिमाग और शरीर पर होने वाले बुरे असर को लेकर ज्यादा परेशान दिखाई देते हैं।

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की कैंसर रिसर्च से जुड़ी इंटरनेशनल एजेंसी के मुताबिक मोबाइल टावर भले ही हमारे लिए नुकसानदायक ना हों लेकिन इन टॉवर्स से घिरे हम आप पर ये कुछ तो असर डालते ही हैं। मोबाइल टावर आमतौर पर किसी बिल्डिंग की छत पर लगे होते हैं। तकनीकि तौर पर उनसे निकलने वाली रेडियो एनर्जी जमीन तक पहुंचते पहुंचते करीब 1000 गुना कम हो जाती है। फिर भी एक्सपर्ट कहते हैं कि वो लोग जो कि मोबाइल टावर के बहुत नजदीक या उनके सीधे संपर्क में रहते हों, उन पर ही इसका प्रभाव देखने को मिलता है। जैसे कि मोबाइल टावर बिल्डिंग में रहने वाले या उस टावर के सामने बहुत नजदीक घरों में रहने वाले लोग मोबाइल टावर के रेडिएशन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। हालांकि फिर भी एक्सपर्ट यही मानते हैं कि हर बिल्डिंग और घर में मौजूद सीमेंट, लकड़ी और ऐसे तमाम पदार्थ इन रेडियो सिग्नल को रिफ्लेक्ट करने या सोखने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में उन रेडियो वेव्स का भी प्रभाव बहुत कम हो जाता है। इन सब बातों के बावजूद एक्सपर्ट ये सलाह देते हैं कि किसी भी मोबाइल टावर के एंटीने के बिल्कुल नजदीक ज्यादा वक्त तक रहने से बचें, क्योंकि उस जगह पर टॉवर का रेडिएशन लेवल सबसे ज्यादा होता है। इसके बावजूद मोबाइल टावर के नजदीक और दूर कहीं पर रहने वाले लोगों को टावर से निकलने वाली तरंगों से कैंसर हो सकता है इस बारे में अभी तक पूरी दुनिया में कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

 

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आखिर में एक बात जरूर कही जा सकती है कि भले ही मोबाइल टॉवर से निकलने वाले रेडिऐशन से कैंसर होने का खतरा न के बराबर हो, फिर भी एक्सपर्ट इस बात पर जोर देते हैं कि ज्यादातर वक्त कान पर मोबाइल लगाकर बातें करने या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहने की आदत बदल डालिए, वर्ना आपकी आंखों और दिमाग पर इसका बुरा असर जरूर पड़ेगा और यह फैक्ट प्रमाणित हो चुका है।

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