अलग-अलग नाम:

वायुमण्डलीय दाब के चारों ओर जब गर्म हवाओं की तेज़ आंधी आती है तो उसे साइकोलोन यानि की 'चक्रवात' कहा जाता है। इन तूफानों को  'हरिकेन' या 'टाइफून' आदि कहा जाता है। हालांकि यहां पर एक बात यह बताना जरूरी है कि 'चक्रवात' 'हरिकेन' 'टाइफून' सभी एक ही जैसे हैं। बस इनके नामों में अंतर यह दुनिया के अलग-अलग भागों में आने की वजह से है। अंटलांटिक महासागर की ओर आने वाले तूफानों की पहुंच काफी ज्यादा होती है। यहां पर यह करीब 39 मील पर घंटे की गति से फैलते हैं। अंटलांटिक में इन तूफानों को हुरिकेन, प्रशांत में टाइफून और हिंदमहासागर की ओर आने वाले तूफान चक्रवात कहे जाते हैं।

ऐसे होता था नामकरण:

अंटलांटिक तूफान को यह नाम करीब 100 साल पहले दिया गया था। उस समय कैरेबियन द्वीप समूह के लोंगो ने एक दिन आए भयानक तूफान के बाद वहां के संत के नाम पर तूफान का नाम रखने का निर्णय लिया। जिससे इसके बाद उन्होंने रोमन कैथोलिक कैलेंडर के हिसाब से उसका नाम हरिकेन रखा क्योंकि जिस दिन चक्रवात आया था उस दिन वही दिन था। यह पद्धति करीब द्वितीय विश्वयुद्ध तक लगातार चलती रही। इसके बाद जब अर्थव्यवस्था और मौसम संबंधी भविष्यवाणियां शुरू हुई तो इन तूफानों का नाम महिलाओं के नाम से पहचाना जाने लगा।

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बदलाव शुरू हुए:

वहीं इस सबके बाद 1953 में यूएस के मौसम विभाग ने अधिकारिक रूप से एक नया फोनेटिक अल्फाबेट तैयार किया और उसकी घोषणा की। जिससे इनके नाम महिलाओं के  A से W पर रखने शुरू किए। इस दौरान इस फोनेटिक अल्फाबेट से Q, U, X, Y Z को बाहर निकाल दिया। हालांकि इस दौरान 60 और 70 के दशक में महिलाओं इन नामों का कड़ा विरोध किया था। जिसके बाद 1978 में महिलाओं और पुरुषों दोनों के नाम पर इन तूफानों के नाम रखे जाने लगे। जिससे इसकी शुरुआत में पहले तो अंग्रेजी वर्णमाला के शुरुआती अक्षरों A और B पर नाम रखे गए। इसके बाद फिर कुछ वर्षों तक तूफानों के नाम महिलाओं और पुरुषों के नाम पर अजीबो गरीब रखे गए।

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अब वैश्िवक स्तर पर:

इसके बाद फिर बस महिलाओं के नाम पर भी इन तूफानों के अजीबोगरीब नाम रखे जाने लगे। हालांकि अब समय के साथ काफी कुछ बदल चुका है। चक्रवातों के नामकरण की प्रक्रिया दुनिया के अनेक देशों में नियमानुसार निभाई जाती है। अब यह नामकरण का कार्य विश्व मौसम विज्ञान संगठन के तत्वावधान में किया जाता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नाम अभी हाल ही में रखा गया है। हिंद महासागर क्षेत्र के लिए रखे गए चक्रवात नाम के लिए विचार-विमर्श 2000 मेंशुरू हुआ। इस दौरान 2004 में आठ देशों पर सहमति हुई। जिसमें बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हुए। जिसमें पाकिस्तान की ओर से नीलम नाम दिया गया। वहीं पिछली बार ओमान में मुरजन नाम दिया गया।

परिवर्तन होता रहता:

वहीं श्रीलंका और थाईलैंड अब आगे वाली लिस्ट में शामिल होंगे। वहीं 2004 में भारत की ओर अग्नि, आकाश, बिजली, जल आदि को देखते हुए चक्रवात नाम दिया गया। वहीं भारत के इस नाम को पाकिस्तान ने नीलोफर नाम रखने का सुझाव दिया।  गौरतलब है कि इन तूफानों के आने से बड़ी संख्या में जनहानि और धनहानि होती है। वहीं इनके नामों में में भी समय के साथ परिवर्तन होता रहता है। लगभग हर 10 साल में इन तूफानों का नाम बदल जाता है। 1972 के बाद से अब तक करीब तक करीब 50 नाम रखे जा चुके हैं। हालांकि इस दौरान तूफान नया नाम रखते समय पुराने नाम का ख्याल रखा जाता है। जिस अक्षर से पुराने तूफान का नाम समाप्त होता है उस अक्षर उस नए नाम में शामिल किए जाने पर जोर दिया जाता है।

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