फैक्ट फाइल
05 सरकारी हॉस्पिटल्स हैं शहर में
10 हजार मरीज हर रोज पहुंचते हैं
200 स्पेशल केसेज के मरीज आते हैं रोज
डॉक्टर्स डे स्पेशल
-हॉस्पिटल्स में स्पेशलिस्ट्स का रोना, प्राइवेट में जाने को मजबूर मरीज
-बेली में केवल एक न्यूरोलॉजिस्ट, काल्विन में पद खाली
PRAYAGRAJ: डॉक्टर्स को धरती का भगवान कहा जाता है। लेकिन यह डॉक्टर्स ऊंची डिग्री पाने के बाद सरकारी सेवा में नहीं आना चाहते। गरीब व मजबूरों की सेवा करने के बजाय वह प्राइवेट प्रैक्टिस पर अधिक यकीन रखते हैं। उनका अपना तर्क है। कहते हैं कि सरकारी तंत्र में सुविधाओं के अभाव में काम करना मुश्किल है।
महज एक न्यूरोलाजिस्ट पर हजारों मरीज
एग्जाम्पल के तौर पर न्यूरोलाजिस्ट की सरकारी तंत्र में बहुत अधिक जरूरत है। लेकिन इस प्रॉब्लम के लिए पर्याप्त संख्या में डॉक्टर्स मौजूद नहीं हैं। सरकारी हॉस्पिटल्स के आंकड़ों पर जाएं तो महज एक न्यूरोलाजिस्ट के भरोसे शहर में हजारों मरीजों का इलाज चल रहा है। बेली हॉस्पिटल में केवल एक डॉक्टर है और काल्विन में पद खाली पड़ा है।
कार्डियोलाजिस्ट का भी टोटा
शहर के सरकारी हॉस्पिटल्स में स्पेशलिस्ट कार्डियोलाजिस्ट का जबरदस्त अभाव है। बेली और काल्विन हॉस्पिटल में किसी तरह काम चलाया जा रहा है। मरीजों का इलाज फिजीशियन के भरोसे है। अधिक सीरियस होने पर मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल जाना पड़ता है। एसआरएन हॉस्पिटल में आईसीयू वार्ड है लेकिन वहां वार्ड अक्सर फुल रहता है। काल्विन हॉस्पिटल में आईसीयू वार्ड बन जरूर रहा है। लेकिन यहां कार्डियोलाजिस्ट अपाइंट करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
यूरो और नेफ्रो स्पेशलिस्ट भी नहीं
सरकारी हॉस्पिटल्स में यूरोलाजिस्ट और नेफ्रोलाजिस्ट जैसे पदों का बोझ भी फिजीशियन के भरोसे ही है। इसके स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स मौजूद नहीं हैं। जिन मरीजों को प्रोस्टेट या गुर्दे की शिकायत होती है उन्हें प्राइवेट तंत्र का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। यहां पर उनका अधिक खर्च होता है लेकिन मजबूरी यही है। हॉस्पिटल्स में पद होने के बावजूद डॉक्टर्स ज्वॉइन नहीं करते हैं।
गैस्ट्रो के मरीजों का तुक्का इलाज
लगभग यही हाल पेट के रोगियों के इलाज में भी लागू होता है। सरकारी हॉस्पिटल्स में गैस्ट्रोएंट्रोलाजिस्ट की बेहद कमी है। इस समय एक भी स्पेशलिस्ट मौजूद नहीं है। पेट के गंभीर रोगियों को अंत में शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल्स में जाकर इलाज कराना पड़ता है। यहां पर डॉक्टर्स की फीस 500 से 1000 रुपए तक निर्धारित है।
बॉक्स
ओटी और उपकरण की दिक्कत
डॉक्टर्स कहते हैं कि सरकारी हॉस्पिटल्स में आपरेशन थिएटर और उपकरण अपडेट नहीं है। मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के लिए संसाधनों की कमी होने से मजबूरन स्पेशलिस्ट्स को प्राइवेट सेक्टर में जाना पड़ता है।
वर्जन
मरीज को जल्द आराम पहुंचाने के लिए अच्छी जांच और उपकरणों की जरूरत होती है जो केवल प्राइवेट सेक्टर में उपलब्ध हैं।
-डॉ। आशुतोष गुप्ता, स्लीप एंड चेस्ट स्पेशलिस्ट
सरकारी हास्पिटल में बड़ी सर्जरी नहीं की जा सकती। इससे मरीजों को निराशा होती है।
-डॉ। आरपी पांडेय, न्यूरोलॉजिस्ट