- नियमों को ताख पर किए गए ट्रांसफर के खिलाफ सीएम हाउस में भी नहीं हुई सुनवाई

- छुट्टियां बढ़ाने को लेकर डीजीएमई ने खड़े किए हाथ, शासन को भेजी अर्जी

- प्रो. आरती ने कहा कई विकल्प खुले, ज्यादती नहीं सहेंगी, नौकरी रहे या न रहे

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KANPUR: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में अब कौन सा डॉक्टर कहां जाएगा? किस डॉक्टर को कितने की छुट्टी देनी है? यह अब चिकित्सा शिक्षा विभाग नहीं बल्कि सीएम हाउस तय करेगा. फिर चाहे उससे मेडिकल स्टूडेंट्स और उस शहर के लोगों को कितनी ही समस्या उठानी पड़े. मेडिसिन विभाग की एचओडी और जूनियर डॉक्टर्स पर बर्बर लाठीचार्ज के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व करने वाली डॉ. आरती लाल चंदानी के मामले से कम से कम यही साबित होता है. आखिर ऐसी क्या वजह है कि एक डॉक्टर के ट्रांसफर और रिलीव ऑर्डर से लेकर उसकी छुट्टियों तक मसले में शासन इतनी रुचि ले रहा है.

लखनऊ में भी कोई सुनने वाला नही

सोमवार को सीनियर डॉक्टर प्रो. आरती लालचंदानी अपने बिना कोई पूर्व सूचना के किए गए ट्रांसफर की शिकायत को लेकर सीएम हाउस, लखनऊ पहुंचीं. लेकिन वहां पर कोई सुनवाई नहीं हुई. सीएम हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बातचीत में इसे बेहद सामान्य बताया. जिससे शासन को कोई फर्क नहीं पड़ता है. इस रवैए के बाद डॉ. चंदानी सीधे कानपुर लौट आई.

शासन को आखिर इतनी रुचि क्यों

प्रो. आरती लालचंदानी के छुट्टियों के दौरान किए गए ट्रांसफर को लेकर मामला और भी पेचीदा हो गया है. क्योंकि छुट्टी बढ़ाने को लेकर दी गई अर्जी को डायरेक्टर जनरल ऑफ मेडिकल एजुकेशन(डीजीएमई)ने शासन को भेज दिया है. इसका सीधा सा मतलब यही है कि डीजीएमई अपने विभाग में काम करने वाली एक प्रोफेसर की छुट्टी बढ़ाने को लेकर भी दबाव में है जिससे बचने के लिए उन्होंने शासन के पाले में गेंद डाल दी है.

एक अधिकारी के इशारे पर..

हालात पर गौर करें तो इतना तो साफ है कि डॉ. आरती के मामला सीधे तौर पर शासन स्तर से हैंडल किया जा रहा है. सवाल ये है कि ख्0 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला प्रदेश बिजली, पानी, अपराध जैसी कितनी ही मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है..इसके बावजूद सीएम हाउस या शासन को एक डॉक्टर के ट्रांसफर में इतना इंट्रेस्ट लेना पड़ रहा है. डॉ. आरती का कहना है कि सब कुछ एक अधिकारी के इशारे पर किया जा रहा है. इसके पीछे वजह इतनी है कि उन्होंने अपने बच्चों(जूनियर डॉक्टर्स)पर बेवजह किए गए लाठीचार्ज के खिलाफ आवाज उठाई थी.

मुश्किलें तो पेशेंट्स की बढ़ेंगी

प्रो. आरती लालचंदानी ने कहा कि अगर शासन उनके जबरन किए गए ट्रांसफर को नहीं रोकता है तो उनके पास कई ऑप्शन खुले हैं. इनमें नौकरी छोड़ने का ऑप्शन भी है. वो सभी विकल्पों पर विचार कर रही हैं लेकिन उनका कोई भी फैसला पेशेंट्स के खिलाफ नहीं होगा. डॉ. आरती ने कहा कि एक आईपीएस के इशारे पर नियमों को ताक पर रखकर किए गए ट्रांसफर से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन मेडिकल स्टूडेंट्स और पेशेंट्स की प्रॉब्लम्स ही बढ़ेगी. उनके रिटायरमेंट को अब एक साल से भी कम समय बचा है लेकिन इन हालात में वह रिटायरमेंट से पहले भी नौकरी छोड़ सकती हैं.