मोहित शर्मा

आई एक्सक्लूसिव

-एक माह से जिला अस्पताल में दवाएं चल रही शॉर्ट

-अस्पताल प्रशासन ने अधिक दवा देने पर लगाया बैन

मेरठ। जिला अस्पताल में भी बेसिक दवाओं का टोटा इस कदर पड़ा है कि डॉक्टर्स को अब मरीजों की खुराक पर कैंची चलाकर दवाओं का बैलेंस बनाना पड़ रहा है। दवाइयों की किल्लत के चलते हाल ही में अस्पताल प्रशासन ने डॉक्टर्स को सख्त दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। डॉक्टर्स से स्पष्ट कहा गया है कि वो न तो मरीजों को सपलीमेंट्री दवाई लिखें और न ही तीन दिन से अधिक दवाई प्रिस्क्राइब करें।

दवाओं का पड़ा अकाल

दरअसल, जिला अस्पताल में पिछले एक माह से दवाओं का अकाल पड़ा है, जबकि सामान्य और जरूरत की दवाओं को तो हाल बुरा है। हाल यह है कि जनरल ओपीडी वाले नजला और जुकाम के मरीजों को भी दवाई नहीं मिल रही है। ऐसे में डॉक्टर्स द्वारा लिखी गई दवाई के लिए मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। यहां तक कि मरीजों को दवाई के लिए प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स का सहारा लेना पड़ रह है।

मरीजों को आधी डॉज

अस्पताल में दवाओं का स्टॉक खत्म हो गया है। ऐसे में अस्पताल प्रशासन को दवाओं का बैलेंस मेंटेन रखने में एडी-चोटी का जोर लगाया पड़ रहा है। यही वजह है कि हॉस्पिटल सीएमएस डॉ। पीके बंसल ने डॉक्टर्स को दवाई लिखने में अहतियात बरतने के सख्त निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि मरीजों को जरूरत से अधिक दवाई न लिखी जाए यानी सप्लीमेंट्री दवाई पर रोक लगे। इसके साथ मरीज को केवल 2 या 3 तीन की ही दवाई एक बार में दी जाए।

ये है फॉर्मूला

अस्पताल प्रशासन का मानना है कि अक्सर देखने में आया है कि अपेक्षाकृत लाभ न मिलने पर मरीज हॉस्पिटल से मिली दवाई को डस्टबीन में फेंक देता है। इस तरह से बड़ी मात्रा में दवाई का नुकसान होता है। ऐसे में मरीज द्वारा वेस्ट की गई दवाई किसी अन्य मरीज के काम आ सकता है। नए फॉर्मूले के अंतर्गत अब मरीज को 2 या 3 दिन की दवाई दी जाएगी। यदि मरीज को लाभ नहीं मिलता तो दवाई कम मात्रा में वेस्ट होगी, जबकि लाभ मिलने पर मरीज पुन: अस्पताल आकर दवाई ले सकता है।

ओटी की दवाएं भी शॉर्ट

सिफेटेक्सिन वन एमजी, मैट्रोजिल आईबी, और सिप्रॉफ्लैक्सिन फ्लूड इत्यादि। इन सभी दवाईयों का ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल होता है। इन दवाईयों का जिला अस्पताल और मेडिकल में पिछले एक माह से टोटा चल रहा है। जिसके चलते मरीजों प्राइवेट अस्पतालों में जाकर उपचार कराने को मजबूर होना पड़ रहा है।

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बजट के अभाव में दवाइयां शॉर्ट चल रही हैं। ऐसे में मरीज को जरूरत के अनुसार ही दवाई देने का फैसला किया गया है। इससे जहां दवाओं का वेस्टेज रुकेगा, वहीं बचाई गई दवाई से अन्य मरीजों का भला किया जा सकेगा।

-डॉ। पीके बंसल, एसआईसी जिला अस्पताल