- इंटीग्रेटेड सिस्टम न होने की वजह से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी)<- इंटीग्रेटेड सिस्टम न होने की वजह से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के नाम पर हो रही जालसाजी

- फर्जी ई-वे बिल बनाकर करोड़ों का राजस्व चोरी कर चुके हैं शातिर

- 13 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का सूबे में खुलासा हुआ था शनिवार को

- 25 हजार करोड़ चोरी के मामले आ चुके सामने पूरे देश में

<के नाम पर हो रही जालसाजी

- फर्जी ई-वे बिल बनाकर करोड़ों का राजस्व चोरी कर चुके हैं शातिर

- क्फ् करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का सूबे में खुलासा हुआ था शनिवार को

- ख्भ् हजार करोड़ चोरी के मामले आ चुके सामने पूरे देश में

pankaj.awasthi@inext.co.in

LUCKNOW

pankaj.awasthi@inext.co.in

LUCKNOW : पूरे देश को एक टैक्स के दायरे में लाने के लिये 'वन नेशन-वन टैक्स' स्कीम के तहत लागू की गई जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) प्रणाली को टैक्स चोरों ने अपने निशाने पर ले लिया है. आनन-फानन लागू की गई इस प्रणाली में मौजूद खामियों का लाभ उठाकर टैक्स चोर हर रोज सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगा रहे हैं. शनिवार को यूपी एसटीएफ और वाणिज्य कर विभाग की टैक्स इनवेस्टिगेशन यूनिट की संयुक्त कार्रवाई में क्फ् करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का खुलासा हुआ. इस मामले में अभी चोरी की रकम का आंकड़ा और भी बढ़ने की संभावना है. हालांकि, इस खुलासे से आगे टैक्स चोरी की घटनाएं रुक जाएंगी, यह कहना अभी बेमानी है. वजह भी साफ है, जब तक सिस्टम की खामियों को दूर नहीं किया जाएगा, ऐसे घोटाले यूं ही जारी रहेंगे.

सारा काम ऑनलाइन

व्यापारियों को वाणिज्य कर के दफ्तरों के चक्कर लगाने से बचाने और पारदर्शिता लाने की नीयत से जीएसटी प्रणाली का सारा काम ऑनलाइन रखा गया. यानी व्यापारी को टैक्स जमा करने से लेकर रिफंड लेने तक किसी भी दफ्तर जाने की जरूरत नहीं है. हालांकि, इस सुविधा को ही टैक्स चोरों ने अपनी करतूत का हथियार बना लिया. प्रणाली की खामियों का लाभ उठाकर टैक्स चोर हर रोज सरकार को करोड़ों के राजस्व का चूना लगा रहे हैं. अब तक देशभर में ख्भ् हजार करोड़ रुपये की टैक्स चोरी के मामले सामने आ चुके हैं. पर, इस मुसीबत से निजात कैसे मिले, इसका तरीका ढूंढने में तमाम अधिकारी अब तक फेल ही साबित हुए हैं. विभाग दावा करता है कि जैसे-जैसे सिस्टम में खामी पकड़ में आ रही है, वैसे-वैसे सुरक्षा के इंतजामों में इजाफा किया जा रहा है. लेकिन, तमाम सुरक्षा इंतजामों के बावजूद टैक्स चोर अपनी करतूतों में लगातार सफल होते जा रहे हैं.

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टैक्स चोरी का खेल

जीएसटीआर-क्

व्यापारी माल सप्लाई या बिल बनाता है तो हर बिल की जानकारी पोर्टल पर जीएसटीआर-क् भरता है. इसमें बिल के आधार पर दूसरा या सामने वाला व्यापारी माल खरीदता है.

जीएसटीआर-ख् ए

जीएसटीआर-क् में दर्शाई गई जानकारी जीएसटीआर-ख् में नजर आती है. इस आधार पर व्यापारी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) लेता है. यानी क्रेडिट उसके खाते में आ जाता है. क्रेडिट लेने वाला व्यापारी माल बेचता है तो जीएसटीआर-फ्बी भरना पड़ता है. उसमें सरकार को टैक्स का भुगतान बता क्रेडिट पासऑन करता है. इसमें शातिर व्यापारी माल नहीं देकर केवल बिल जारी करते हैं.

यह है लोचा..

जीएसटीआर-क् भरने के बाद जीएसटीआर-ख् ए में क्रेडिट नजर नहीं आने पर भी क्रेडिट लिया जा सकता है. इसी का जालसाज फायदा उठा रहे हैं. वे ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि, अब तक जीएसटीआर-ख् व फ् लागू नहीं हुआ है. इस गड़बड़ी की विभाग को पोर्टल पर भी पूरी जानकारी नहीं मिल पाती. यही वजह है कि वे मिस मैचिंग नहीं पकड़ पा रहे.

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फर्जी ई-वे बिल भी बना सिरदर्द

ई-वे बिल व्यवस्था को टैक्स चोरी पर रोक लगाने वाला कदम बताया गया था. भ्0 हजार से अधिक की कीमत के सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिये एक अप्रैल ख्0क्8 को यह व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन, कुछ समय बाद ही टैक्स अधिकारियों को पता चला कि कुछ ट्रांसपोर्टर एक ही ई-वे बिल पर एक से अधिक बार माल की ढुलाई कर रहे हैं. या फिर बिक्री का रिटर्न दाखिल करते वक्त ई-वे बिल का चालान नहीं दिखाते. साथ ही यह देखने को मिला कि कुछ व्यापारी सप्लाई के बावजूद ई-वे बिल नहीं काटते. इस खुलासे के बाद ई-वे बिल में बदलाव के लिये नए नियम जारी किये गए हैं, इसके तहत एक एक ई-वे बिल से एक ही बार सामान ट्रांसपोर्ट हो सकेगा. वहीं, रूट की गिनती भी ऑटोमेटिक तरीके से होगी. एक बिल पर एक ही ई-वे बिल जेनरेट होगा. हालांकि, नये नियम का तोड़ शातिर किस तरह निकालते हैं यह देखने वाली बात होगी.

वर्जन.....................

जीएसटी पोर्टल फुलप्रूफ है. बावजूद इसके अगर कोई खामी सामने आती है तो डाटा एनालिटिकल टूल्स के जरिए इन खामियों को पकड़ा जाता है. इनकी मदद से टैक्स चोरी के कई मामले पकड़े जा चुके हैं.

- संजय कुमार पाठक, ज्वाइंट कमिश्नर, टैक्स इनवेस्टिगेशन यूनिट

वर्जन...................

जीएसटी में आवेदन करने के बाद भौतिक सत्यापन नहीं होता. आवेदन के साथ ही अस्थाई जीएसटी नंबर मिल जाते हैं. होना यह चाहिये कि आवेदन के बाद व्यापारी का भौतिक सत्यापन हो और इसके बाद स्थायी जीएसटी नंबर जारी किया जाए. इससे बोगस कंपनियां बनने से पहले ही खुलासा हो सकेगा.

- एके मिश्र, चार्टर्ड अकाउंटेंट