कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। इस दिन घरों में दशहरा पूजन के लिए आटे अथवा गेरू से दशहरा मांडकर उसके ऊपर जल, रोली, चावल, मोली, गुड़, दक्षिण, फूल, जौ के झंवारे अथवा मूली चढ़ायें तथा दीपक, धूप बत्ती लगाकर आरती करें, परिक्रमा करें, तत्पश्चात् दण्डवत् प्रणाम करके पूजा के बाद हाण्डी में से रूपये निकालकर उस पर जल, रोली, चावल चढ़ाकर अलमारी में रख लें। वहियों पर नवरात्र का नवांकुर भी चढ़ायें एवं कलम-दवात का पूजन भी करें। शस्त्र, शास्त्र एवं पुस्तक पूजन भी करें।

अपराजिता पूजन:- अपराजिता देवी यात्रा, कार्यों में सफलता और युद्ध प्रतिस्पद्र्धा में विजय दिलाने वाली देवी हैं। विजयदशमी पर इसकी पूजा सायंकाल की जाती है।

किनकी होगी पूजा:- एक थाली में चन्दन से मध्य में अपराजिता देवी, बाईं ओर उमादेवी और दायीं ओर जया देवी का चित्र बनायें, इन तीनों देवियों की पूजा करें।

पहली पूजा जया देवी की:- निम्न मंत्र से आवाहन करें:-
।। ऊँ क्रियाशक्त्यै नम:।।
। ऊँ जयाये नम:।।

दूसरी पूजा उमा देवी की:- जया देवी के उपरान्त उमा देवी की पूजा निम्न मंत्र से आवाहन कर करें
।।ऊँ उपाये नम:।। और ।।ऊँ विजयाये नम:।। इस मंत्र से पूजन करें।

प्रधान पूजा:- प्रधान पूजा में अपराजिता देवी की पूजा की जाती है। इस हेतु अपराजिता देवी का आवाहन एवं पूजन निम्न मंत्र से करें। ।।ऊँ अपराजितायै नम:।।

अन्त में तीनों देवियों की प्रार्थना निम्न मंत्र से करें:-
इमां पूजा मया देवि यथाशक्ति निवेदिताम्, रक्षार्थ तु समादाय व्रज स्वस्थानपुत्तमम्।।
शमी पूजन:- अमंगल, पाप नाश हेतु, विजय एवं कल्याण के लिए शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है।

प्रदक्षिणा एवं संकल्प:- शमी वृक्ष के पास जाकर उसकी प्रदक्षिणा करें एवं हाथ में अक्षत एवं पुष्पादि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये संकल्प करें:-
।।ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: मम दुष्कृता अमंगलादिनिरासार्थ क्षेमार्थयात्रायां विजयार्थ
च शमीपूजां करिष्ये।।

कैसे करें शमी पूजन:- पूजन हेतु स्वस्तिवाचन, दिक्पाल पूजन एवं वास्तुपूजन करें तथा पंचोपचार या षोडशोपचार से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये शमी वृक्ष का पूजन करें:-
अमंगलानां शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च, दु:स्वप्ननाशिनी धन्यां प्रपद्येहं शमी शुभाम्।
अन्त में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये प्रार्थना करें:-
शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका, धरित्रयर्जुवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकालं सुखम मया, तत्र निर्विघ्नकत्र्री त्वं भय श्रीरामपूजिते।

(शमी पापों का शमन करती है, शमी के कांटे तांबे के रंग के होते हैं, यह अर्जुन के बाणों को धारण करती हैं। हे शमी, राम ने तुम्हारी पूजा की है, मैं यथा काल विजय यात्रा पर निकलूंगा तो मेरी इस यात्रा को निर्विघ्नकारक व सुखकारक करो) इसके पश्चात शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखें फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसके जड़ के पास की मिट्टी व कुछ पत्ते घर ले आयें।

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली।